आयुर्वेदानुसार आचरण कर बिना औषधियों के निरोगी रहें !

आयुर्वेदानुसार आचरण कर बिना औषधियों के निरोगी रहें ! बाढ, विश्वयुद्ध आदि आपदाओं में डॉक्टर, औषधि आदि की अनुपलब्धता की स्थिति में तथा सामान्यत: भी उपयुक्त !

#Ayurved : रात में जागरण क्यों नहीं करना चाहिए ?

रात में जागरण करने से शरीर की धातुओं में सूखापन बढता है । उसके कारण शरीर में स्थित जलीय अंश के अर्थात आप महाभूत के अंश क्षीण हो जाते हैं ।

‘विकीपीडिया’ पर प्रकाशित आयुर्वेद से संबंधित लेखों के विषय की याचिका सर्वाेच्च न्यायालय ने अस्वीकार की !

आयुर्वेद औषध निर्माताओं द्वारा विकीपीडिया जालस्थल पर आयुर्वेद से संबंधित लेखों के विरोध में प्रविष्ट की गई याचिका सर्वाेच्च न्यायालय ने अस्वीकार की । इस याचिका में कहा गया था कि, इस जालस्थल प्रकाशित लेखों के द्वारा आयुर्वेद को बदनाम किया जा रहा है ।

चरकसंहिता के अनुसार गोमांस खाना निषिद्ध ही है !

जो बीमारियां गोमांस खाने से ठीक होती हैं, ऐसा बताया गया है; उन बीमारियों में चरकसंहिता में अन्य असंख्य औषधियां बताई गई हैं । तो उन औषधियों को छोडकर कौन मूर्ख स्वास्थ्य के लिए अहितकारी गोमांस खाएगा ?

मूत्रमार्ग के जलन पर आयुर्वेद का प्राथमिक उपचार

‘चाय का पाव चम्मच सनातन उशीर (वाळा) चूर्ण आधी कटोरी पानी में घोल बनाकर दिन में ४ बार पीना । यदि ७ दिन में लाभ न हो, तो वैद्यों का समादेश (सलाह) लें ।’

शांति से नींद आने लिए ब्राह्मी चूर्ण

चार चम्मच ब्राह्मी चूर्ण ४ कटोरी नारियल तेल में लगभग एक मिनट तक उबालें । ठंडा होने के पश्चात यह तेल छानकर बोतल में डालकर १० ग्राम भीमसेनी कर्पूर का चूर्ण बनाकर डालें तथा बोतल का ढक्कन बंद कर लें । प्रतिदिन रात्रि सोते समय उसमें से १-२ चम्मच तेल सिर पर डालें ।

प्रतिदिन न्यूनतम आधा घंटा व्यायाम करें !

आयुर्वेद के अनुसार उचित समय पर खाना, जितना पचन (हजम) हो, उतना ही खाना, शरीर के लिए अहितकारक पदार्थ टालना, आदि आहार के नियमों का पालन करने से वातादि दोषों के कार्य में संतुलन होकर स्वास्थ्य प्राप्त होता है; किंतु अधिकतर भोजन संबंधी नियम पालन करना संभव नहीं होता ।

राजस्थान में अनुसूचित जाति के लोगों के लिए निःशुल्क आयुर्वेदिक चिकित्सा शिविर का आयोजन !

जब ऐसे शिविर सभी के लिए उपयुक्त हैं, तो फिर वो सभी के लिए क्यों नहीं आयोजित किए जाते हैं ?

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

सच्चिदानंद ईश्वर की प्राप्ति कैसे करें, यह अध्यात्मशास्त्र बताता है । इसके विपरीत ‘ईश्वर हैं ही नहीं’, ऐसा कुछ विज्ञानवादी अर्थात बुद्धिप्रमाणवादी चीख-चीखकर कहते हैं !

कालमेघ वनस्पति और विकारों में उसके उपयोग

कालमेघ वनस्पति संक्रामक रोगों के लिए अत्यंत उपयुक्त है । यह बहुत ही कडवी होती है । इसका उपयोग ज्वर और कृमियों के लिए किया जाता है । यह सारक (पेट को साफ करनेवाली) होने से कुछ स्थानों पर वर्षा ऋतु में और उसके उपरांत आनेवाली शरद ऋतु में सप्ताह में एक बार इसका काढा पीने की प्रथा है । इससे शरीर स्वस्थ रहता है ।