विदेशी आक्रमणों से रुका आयुर्वेद का प्रसार ! – प. पू. सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत
विदेशी आक्रमणों के कारण आयुर्वेद का प्रसार रुक गया था । अब आयुर्वेद को पुनः मान्यता मिल रही है । आयुर्वेद के प्रसार का समय आ गया है ।
विदेशी आक्रमणों के कारण आयुर्वेद का प्रसार रुक गया था । अब आयुर्वेद को पुनः मान्यता मिल रही है । आयुर्वेद के प्रसार का समय आ गया है ।
कोई भी बीमारी शरीर में विद्यमान वात, पित्त अथवा कफ के स्तर में आनेवाले परिवर्तन के कारण होती है । आयुर्वेद के अनुसार कैंसर से लेकर हृदयरोग तक तथा पक्षाघात से लेकर मधुमेह तक सभी रोगों का मूल यही है ।
औषधियों के साथ आयुर्वेद ‘दैवी चिकित्सा’ भी बताता है । अधिकतर किसी भी शारीरिक बीमारी में कुछ स्तर पर आध्यात्मिक तथा कुछ स्तर पर मानसिक भाग होता है ।
प्रज्ञापराध (बुद्धि, स्थैर्य, स्मृति, इनसे दूर जाकर तथा उससे होनेवाली हानि ज्ञात होते हुए भी शारीरिक, वाचिक अथवा मानसिक स्तर पर पुनः-पुनः किया जानेवाला अनुचित कृत्य) होने न देना
स्वास्थ लाभ के लिए देह में विद्यमान अग्नि का (पाचन शक्ति का) महत्त्व !
ति मात्रा में लिया गया आहार तुरंत ही वात, पित्त एवं कफ, इन तीनों दोषों में प्रकोप लाता है । दोषों के प्रकोप का अर्थ है उनकी समानाव्यस्था का बिगडना तथा बीमारी उत्पन्न होने का आरंभ !
झूठी भूख को सच समझकर भोजन करने से शरीर में विष के समान पदार्थ बन जाते हैं । कालांतर में ये पदार्थ विकार उत्पन्न करते हैं अथवा विकार को बढाते हैं । उसके कारण पहले दिन के आहार का पूर्णरूप से पाचन होने के लक्षण दिखे बिना सवेरे का आहार लेना टालना चाहिए ।
अधिकांश लोगों को दिन में जब-तब आते-जाते सेव, चिवडा, मिठाई, सूखे मेवे आदि मुंह में डालने की आदत होती है । स्वास्थ्य की दृष्टि से इस आदत को गंभीरतापूर्वक छोडना आवश्यक है । ऐसे पदार्थ आहार लेने के निर्धारित समय में ही खाने चाहिए ।
सवेरे जागने पर अधोवात एवं मल-मूत्र का विसर्जन होना, छाती में भारीपन न होना, शरीर के दोषों का अपने मार्ग से चले जाना, उदा. डकार आना, अधोमार्ग से वायु का निःसारण होना डकार का शुद्ध होना
भोजन की मात्रा सुनिश्चित करते समय संतुष्टि का बडा महत्त्व है । भोजन करने के उपरांत मिलनेवाली विशिष्ट प्रकार की संतुष्टि है तृप्ति! जब भोजन में समाहित मुख्य पदार्थ लघु (पाचन में हल्के) हों, उदा. दाल-चावल, चावल की रोटी; ऐसे समय में मन तृप्त होने तक भोजन करें ।