साधकों को सूचना और पाठकों से विनती
हिन्दू धर्म और आयुर्वेद में तुलसी को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बताया गया है । तुलसी में श्रीविष्णु तत्त्व होता है । धर्मशास्त्र कहता है कि ‘प्रत्येक घर में तुलसी होनी ही चाहिए ।’ तुलसी असंख्य विकारों में उपयोगी है । आयुर्वेद के अनुसार किसी भी विकार में वात, पित्त और कफ, इन ३ दोषों में से एक अथवा एक से अधिक दोष प्रभावित होते हैं । साधारणत: वात और कफ पर उष्ण तथा पित्त पर शीतल (ठंडी) औषधि दी जाती है । ‘तुलसी’ उष्ण और शीतल (ठंडा), दोनों ही गुणधर्म एक ही वृक्ष में पाए जाने का दुर्लभ उदाहरण है । तुलसी के पत्ते उष्ण और बीज ठंडे होते हैं ।
तुलसी से होनेवाले लाभ को ध्यान में रखते हुए भावी आपातकाल की तैयारी के रूप में, साथ ही सदैव के लिए भी सभी अपने घर में तुलसी के पौधे लगाएं । औषधि हेतु तुलसी कम न पडें, इसलिए एक पौधा लगाने के स्थान पर न्यूनतम २ – ३ पौधे लगाएं । तुलसी की मंजरी में उसके बीज होते हैं । एक मंजरी के बीजों से भी अनेक तुलसी के पौधे तैयार होते हैं । वर्षा आरंभ होने के पूर्व और पहली वर्षा के उपरांत बोए गए बीज उगने की संभावना अधिक होती है । वर्षा होने पर तुलसी के बडे पौधे के नीचे प्राकृतिक रूप से बीज गिरकर कुछ पौधे उगते हैं । यह पौधे खोदकर निकालने पर उन्हें पुन: रोपित कर सकते हैं ।
आयुर्वेद के अनुसार ‘शुक्ला कृष्णा च तुलसी गुणैस्तुल्या प्रकीर्तिता ।’ (संदर्भ : भावप्रकाश निघंटु) अर्थात ‘श्वेत और काली तुलसी के गुणधर्म एक समान ही हैं ।’ इसलिए दोनों में से किसी भी तुलसी का रोपण कर सकते हैं ।
तुलसी के विस्तृत औषधि उपयोग सनातन के ग्रंथ ‘स्थानकी उपलब्धताके अनुसार औषधीय वनस्पतियोंका रोपण’ में दिया गया है । तुलसी का रोपण गमले में अथवा प्लास्टिक की थैली में भी कर सकते हैं । यह रोपण किस प्रकार करें और लगाए गए पौधे की देखभाल कैसे करें, इसका विस्तृत विवेचन सनातन के ग्रंथ ‘औषधीय वनस्पतियोंका रोपण कैसे करें ?’ में दिया गया है । साधक इन ग्रंथों का अध्ययन कर अपने घर में तुलसी का रोपण करें ।’
– वैद्य मेघराज माधव पराडकर (५.६.२०२१)