कृतज्ञताभाव में रहने से निराशा न आकर मन आनंदित होकर साधना और अधिक अच्छे ढंग से की जा सकेगी !

साधकों को साधना में भले ही प्रगति करना संभव न होता हो और स्वभावदोषों और अहं पर विजय प्राप्त करना संभव न होता हो; तब भी उन्हें बताया जाता है, ‘आप भावजागृति के लिए प्रयास कीजिए । भाव जागृत हुआ, तो साधना में उत्पन्न अनेक बाधाएं दूर होंगी और आपकी प्रगति होगी ।

‘सादगीपूर्ण जीवनशैली और उच्च विचारधारा की प्रतीति : परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

किसी कागद की छायांकित प्रति निकालने पर उसमें यदि २-४ सें.मी. का निचला भाग कोरा हो, तो वे उतना कागद लेखन के लिए निकाल लेते हैं, साथ ही टिकट, डाक के पत्र का कोरा भाग काटकर उसपर भी लेखन करते हैं ।

परात्पर गुरु डॉक्टरजी द्वारा सिखाई गई ‘भावजागृति के प्रयास’ की प्रक्रिया ही आपातकाल में जीवित रहने के लिए संजीवनी !

आपकी दृष्टि सुंदर होनी चाहिए । तब मार्ग पर स्थित पत्थरों, मिट्टी, पत्तों और फूलों में भी आपको भगवान दिखाई देंगे; क्योंकि प्रत्येक बात के निर्माता भगवान ही हैं । भगवान द्वारा निर्मित आनंद शाश्वत होता है; परंतु मानव-निर्मित प्रत्येक बात क्षणिक आनंद देनेवाली होती है । क्षणिक आनंद का नाम ‘सुख’ है ।

युगप्रवर्तक परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी के अलौकिक चरित्र से युक्त विशिष्ट ग्रंथमाला !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के प्रथम ग्रंथ ‘अध्यात्मशास्त्र’ से अधिक मात्रा में चैतन्य प्रक्षेपित हो रहा है, यह दर्शानेवाली वैज्ञानिक जांच !

हिन्दुओं का धर्मांतरण ही न हो, इसके लिए प्रयास करें !

‘धर्मांतरित हिन्दुओं को पुनः हिन्दू धर्म में अपनाने का कार्य करने की अपेक्षा ‘हिन्दू धर्मांतरित ही न हो’, ऐसा कार्य करना अधिक महत्वपूर्ण है !’

धन का त्याग अधिक सुलभ !

‘धन अर्जित करने की अपेक्षा उसका त्याग करना अधिक सुलभ है, तब भी मानव वह नहीं करता, यह आश्चर्य की बात है !’

हिन्दुओ, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए ‘उपासना की शक्ति’ बढाइए और ‘शक्ति की उपासना’ कीजिए !

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के उद्देश्य से एकत्रित हुए हिन्दू राष्ट्रवीरों को मेरा नमस्कार ! हिन्दू राष्ट्र की स्थापना सहज और सरल बात नहीं है ।

गुरुपूर्णिमा के पश्चात आनेवाले भीषण संकटकाल में सुरक्षित रहने के लिए गुरुरूपी संतों के मार्गदर्शन में साधना करें !

‘श्री गुरु के मार्गदर्शन में साधना करनेवाले भक्त, साधक, शिष्य आदि के लिए गुरुपूर्णिमा ‘कृतज्ञता उत्सव’ होता है । गुरु के कारण आध्यात्मिक साधना आरंभ होकर मनुष्यजन्म सार्थक होता है ।

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘ईश्वर पर तथा साधना पर विश्वास न हो, तब भी चिरंतन आनंद की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को होती है । वह केवल साधना से ही प्राप्त होता है । एक बार यह ध्यान में आ जाए, तो साधना का कोई पर्याय न होने के कारण, मानव साधना की ओर प्रवृत्त होता है ।’

प्रत्येक हिन्दू अखंड हिन्दू राष्ट्र का संकल्प कर रहा है, इसका संपूर्ण श्रेय प.पू. गुरुजी को है ! – टी. राजा सिंह, विधायक, तेलंगाना

हिन्दू जनजागृति समिति के तत्त्वावधान में जिस अखंड हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का संकल्प गुरुजी ने लिया है, वही संकल्प हम सभी लोग आगे ले जा रहे हैं । भारत का प्रत्येक हिन्दू अब अखंड हिन्दू राष्ट्र का संकल्प ले रहा है । उसका संपूर्ण श्रेय प.पू. गुरुजी को जाता है । प.पू. गुरुजी ही इसके प्रेरणास्रोत हैं ।