११ वर्षों के उपरांत भी दंगों के हानि की भरपाई नहीं की गई  !

  • मुंबई में रजा अकादमी दंगों का प्रकरण !

  • भडकाऊ भाषण करने वाले बंदी नहीं बनाए जाते !

  • आरोपी की साक्ष्य लेना अभी तक नहीं हुआ !

रजा अकादमी ने आजाद मैदान में ११ अगस्त २०१२ को किया हुआ दंगा

मुंबई – ११ अगस्त २०१२ मुंबई स्थित रजा अकादमी के धर्मांध कट्टर कार्यकर्ताओं ने यहां के आजाद मैदान में एक बडा दंगा किया था। म्यांमार में मुसलमानों के विरुद्ध कथित अत्याचार के विरोध में वहां एक मोर्चा आयोजित किया गया था। बंबई उच्च न्यायालय ने तब रजा अकादमी के ६० दंगाइयों से ३६  लाख रुपये की हानि की वसूली का आदेश दिया था, किन्तु विदित हो कि ११ वर्षों के व्यतीत होने पर भी एक रुपये की वसूली नहीं हुई है।  (क्या हम यह सोचें कि धर्मांधों के भय से पुलिस और प्रशासन उनसे  नुकसान भरपाई  लेने से हिचकिचाते हैं ? – संपादक) यह समाचार हिन्दुस्तान पोस्ट की समाचार संकेतस्थल पर प्रकाशित किया गया है।

१. हिंदू विधिवेत्ता परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष अधिवक्ता वीरेंद्र इचलकरंजीकर ने सूचना के अधिकार के माध्यम से, हुए नुकसान और उसकी वसूली की जानकारी मांगी। मुंबई के जिलाधीश द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, पुलिस को उच्च न्यायालय के आदेश पर ६० लोगों के विरुद्ध अपराध प्रविष्ट  करने और दंगाइयों से कुल ३६  लाख ४४ सहस्त्र ६८० रुपये के हानि-भुगतान लेने  का आदेश दिया गया था। इस दंगे में दंगाइयों से पुलिस विभाग को २५ लाख ७८ सहस्त्र ३७९ रुपये, बेस्ट के ३ लाख ४५ सहस्त्र ३७९  रुपये और अग्निशमन विभाग से ३ लाख १५ सहस्त्र ३७ रुपये हानि दंड के वसूले जाने का निर्देश दिया गया था।

२. पुलिस हानि-भुगतान  के लिए संबंधित दंगाइयों द्वारा दिए गए पतों पर जाती है, किन्तु मालूम होता  है कि दंगाई वहां नहीं रहते । (देशद्रोही चतुर-चालाक हिंसक मुसलमान ! – संपादक) ऐसी स्थिति के कारण एक रुपये का भी हानि-भुगतान नहीं मिल सका है । ( इसे पुलिस प्रशासन के कृत्य पर हंसी आती है  ! – संपादक)

३. इस प्रकरण  के सभी आरोपी जमानत पर बाहर हैं और स्वतंत्र घूम रहे हैं ।

४. प्रकरण में ८६० साक्ष्यों के उत्तर लेना बाकी है । इनमें से किसी की भी साक्ष्य न्यायालय में नहीं हुई है। (हिंदू विरोधी प्रकरणों में साक्ष्य तुरंत लिए जाते हैं और आरोपी को शीघ्र बंदी बनाया जाता है, किन्तु  क्या यह कहना अयोग्य होगा  कि इस प्रकरण को जानबूझ कर दबा दिया गया है ? – संपादक)

५. रजा अकादमी के मौलाना नियामत नूरी, मौलाना अख्तर अली, मौलाना अमानुल्लाह बरकती, मौलाना गुलाब अब्दुर कादरी, पूर्व पुलिस अधिकारी समशेर खान पठान समेत १७ लोगों ने मंच से भडकाऊ भाषण दिए। पुलिस ने तब उनके विरुद्ध आरोप प्रविष्ट  किया था, किन्तु पुलिस ने उनमें से एक को भी बंदी करने का साहस नहीं किया । (जब कि  हिन्दू प्रक्षोभक तो छोड दें,  केवल धर्म, संस्कृति पर प्रबोधनात्मक भाषण भी  देते हैं, तो उन्हें त्वरित कारागार में डाल दिया जाता है , किन्तु ऐसा कार्यपालन मुसलमानों के संबंध में नहीं दिखाई देता , मुसलमानों के संबंध में पुलिस के इस दोगलेपन पर ध्यान दें! – संपादक) फलस्वरूप ये सभी आरोपी स्वतंत्र हैं।

६. महिला पुलिसकर्मियों से निंद्यवर्तन करने वाले धर्मांध भी स्वतंत्र घूम रहे हैं। (ऐसा होना समस्त स्त्रियों का अपमान है ! – संपादक)

संपादकीय भूमिका 

  • दंगों के ११ वर्ष व्यतीत होने के उपरांत भी कार्रवाई का अभाव, निधर्मी लोकतंत्र और कानून व्यवस्था के लिए अत्यंत लज्जास्पद  है। यह निंद्य घटना भारत का इस्लामीकरण की दिशा में अग्रसर होना दर्शाती  है ! ऐसी घटनाएं प्रतिबंधित करने के लिए हिन्दू राष्ट्र की स्थापना अनिवार्य है ।
  • जिस सरकार के शासनकाल में यह दंगा हुआ, उस सरकार के समय कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पक्षों के साथ संबंध रखने वालों पर तत्काल कार्रवाई न करने वालों को आजीवन कारावास का दंड  दिया जाना चाहिए !