जिहादी आतंकवादी संगठनों से संबंध होने के कारण ‘यु.ए.पी.ए.’ कानून के अंतर्गत कार्यवाही
नई देहली – पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पी.एफ.आइ.) कट्टर जिहादी मानसिकता के संगठन पर केंद्र सरकार ने यु.ए.पी.ए. से प्रतिबंधित कर दिया है (अवैध कार्यवाहियां प्रतिबंधक अधिनियम) अधिनियम के अंतर्गत ५ वर्षों के लिए प्रतिबंधित । इसके साथ सरकार ने पी.एफ.आइ. की सहयोगी संस्थाएं रिहेब इंडिया फाऊंडेशन, कैंम्पस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम्स काऊंसिल, नैशनल कॉनफ्रडेशन ऑफ ह्युमन राइट ऑर्गनाइजेशन, नैशनल वुमन्स फ्रन्ट, ज्युनियर फ्रन्ट, एम्पावर इंडिया फाऊंडेशन तथा रिहेब फाऊंडेशन (केरल), इन ८ संस्थाओं को भी प्रतिबंधित कर दिया है । इस संदर्भ में सरकार द्वारा २८ सितंबर को अधिसूचना जारी की गई है । कोई भी व्यक्ति, संस्था अथवा अन्य किसी भी घटक के विरुद्ध देश विरोधी अथवा आतंकवादी कार्यवाहियों में सहभागी होने का प्रमाण मिलने पर वह व्यक्ति, संस्था अथवा अन्य घटकों पर ‘यु.ए.पी.ए.’ कानून के अंतर्गत केंद्र सरकार प्रतिबंध लगा सकती है । २२ तथा २७ सितंबर को राष्ट्रीय अन्वेषण तंत्र, प्रवर्तन निदेशालय एवं राज्य पुलिसकर्मियों द्वारा पी.एफ.आइ. तथा उसके संलग्न संगठनों पर छापे मारे गए थे । इनमें प्रथम छापे में १०६ एवं २७ सितंबर के छापे में पी.एफ.आइ. के २५० लोगों को नियंत्रण में लिया गया था । इन छापों में पी.एफ.आइ. के विरुद्ध पर्याप्त प्रमाण मिले । तत्पश्चात प्रतिबंध लगाने की कार्यवाही की गई ।
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— TV9 Bharatvarsh (@TV9Bharatvarsh) September 28, 2022
जिहादी आतंकवादी संगठनों से पी.एफ.आइ. के संबंध !
केंद्रीय गृहमंत्रालय ने पी.एफ.आइ. स्थापित करनेवाले कुछ सदस्य ‘स्टूडेंट्स इस्लामिक मुवमेंट ऑफ इंडिया’, अर्थात ‘सिमी’ जिहादी आतंकवादी संगठन के सदस्य होने की जानकारी दी है । इस संगठन का ‘जमात-उल्-मुजाहिद्दीन बांग्लादेश’ (जे.एम.बी.) आतंकवादी संगठन से संबंध होने की जानकारी भी सामने आई है । ये दोनों प्रतिबंधित संगठन भी आतंकवादी हैं ।
प्रतिबंध लगाने के संदर्भ में केंद्र सरकार ने बताए कारण !
१. पी.एफ.आइ.तथा उससे संलग्न संगठन देश में आतंकवाद का समर्थन कर रहे थे । ये संगठन अवैध कार्यवाहियों में लिप्त थे । ये कार्यवाहियां देश की सुरक्षा एवं अक्षुण्णता के लिए संकट हैं ।
२. इन संगठनों की कार्यवाहियां इस देश की शांति तथा धार्मिक सौहार्द को संकट में ला सकती हैं ।
३. पी.एफ.आइ. के कुछ संस्थापक-सदस्य सिमी के नेता थे । उसका जमात-उल्-मुजाहिदीन बांग्लादेश से संबंध था । ये दोनों ही संगठन प्रतिबंधित हैं ।
४. ऐसे अनेक संगठन हैं जिनसे यह स्पष्ट होता है कि पी.एफ.आइ. के इस्लामिक स्टेट आतंकवादी संगठन से संबंध हैं । पी.एफ.आइ. के कुछ सदस्य अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं में सम्मिलित हुए हैं । यह संगठन छुपी पद्धति से देश के एक वर्ग में असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर रहा था तथा इस माध्यम से वह कट्टरतावाद को प्रोत्साहन दे रहा था ।
५. इस संगठन द्वारा किए गए अपराध तथा आतंकवादी प्रकरणों से स्पष्ट होता है कि देश के संविधान के अधिकारों का अनादर किया गया है । बाहर से मिलने वाली निधि तथा वैचारिक आधार के कारण देश की आंतरिक सुरक्षा को बडा संकट उत्पन्न हो गया है ।
६. पी.एफ.आई. ने उसके सहयोगी संगठन एवं शाखाएं सिद्ध किए । उसका उद्देश्य युवक, विद्यार्थी, महिला, इमाम (मस्जिद में प्रार्थना करानेवाला), अधिवक्ता तथा समाज के दुर्बल घटक तक पहुंचना था । इसके पीछे पी.एफ.आइ. का एकमात्र उद्देश्य था स्वयं की सदस्यता, प्रभाव तथा निधि एकत्रित करने की क्षमता बढाना ।
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पी.एफ.आइ. का इतिहास
१. वर्ष २००६ में ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ अर्थात पी.एफ.आइ. की स्थापना की गई । केरल का ‘नैशनल डेवलपमेंट फंड’ इस संगठन का उत्तराधिकारी संगठन है । वर्ष १९९४ में केरल के मुसलमानों ने ‘नैशनल डेवलपमेंट फंड’, अर्थात ‘एन.डी.एफ.’ की स्थापना की । धीरे-धीरे केरल में इस संगठन की लोकप्रियता बढने लगी ।
केरल के अतिरिक्त कर्नाटक में ‘कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी’, अर्थात ‘के.एफ.डी.’ तथा तमिलनाडू में ‘मनिथा नीति पसाराई’, अर्थात ‘एम.एन.पी.’ नामक संगठन स्थापित हुआ । वर्ष २००६ में इन तीनों की एक बैठक हुई तथा उन्होंने स्वयं को ‘एन.डी.एफ.’ में विलीन कर पी.एफ.आइ. की स्थापना की ।
२. १७ फरवरी २००९ में एक राष्ट्रीय राजनीतिक परिषद आयोजित की गई । इसके अंतर्गत ८ राज्यों के विविध सामाजिक संगठनों को पी.एफ.आइ. में विलीन किया गया । इनमें गोवा की ‘गोवा सिटीजन फोरम’, राजस्थान की ‘कम्युनिटी सोशल एंड एज्युकेशनल सोसाइटी’, बंगाल की ‘नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति, मणिपुर की ‘लियांग सोशल फोरम’ तथा आंध्रप्रदेश की ‘असोसिएशन सोशल जस्टिस’ संगठन भी एकत्रित हुए ।
३. वर्ष २००३ में केरल के कोजिकोड में हुए मराड हत्याकांड में हुई ८ हिन्दुओं की हत्या के आरोप में पी.एफ.आइ. के सदस्यों को नियंत्रण में लिया गया ।
४. वर्ष २०१२ में केरल शासन द्वारा केरल उच्च न्यायालय में प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत कर २७ हत्याओं में पी.एफ.आइ. के सक्रिय सहभाग होने की बात बताई गई । इनमें अधिकांश हत्याएं माकप तथा रा.स्व. संघ के कार्यकर्ताओं की हुईं थीं ।
५. वर्ष २०१४ में केरल शासन ने पुन: केरल उच्च न्यायालय में प्रतिज्ञापत्र प्रस्तुत कर कहा कि २७ हत्याएं, ८६ हत्याओं के प्रयास तथा १०६ धार्मिक हिंसाओं में पी.एफ.आइ. का सहभाग है ।
६. वर्ष २०१० में पी.एफ.आइ. पर सिमी आतंकवादी संगठन से संबंध होने के आरोप लगाए गए । पी.एफ.आइ. के राष्ट्रीय अध्यक्ष अब्दुल रेहमान सिमी के राष्ट्रीय सचिव थे, जबकि संगठन के राज्य सचिव अब्दुल हमीद सिमी के भूतपूर्व राज्य सचिव थे । सिमी के अनेक नेता पी.एफ.आइ. के विभिन्न पदों पर होने की बात सामने आई थी ।
७. वर्ष २०१३ में केरल पुलिसकर्मियों ने कन्नूर के नरथ में एक प्रशिक्षण तल पर छापा मार कर पी.एफ.आइ. के २१ कार्यकर्ताओं को बंदी बनाया था । इस अवसर पर पुलिसकर्मियों ने २ देशी बम, तलवार तथा बम बनाने की सामग्री नियंत्रण में ली थी ।
८. केरल के प्राध्यापक टी.जे. जोसेफ के हाथ तोडने की घटना के प्रकरण में केरल पुलिसकर्मियों ने जनवरी २०११ में पी.एफ.आइ. के २ सदस्यों के विरुद्ध आरोपपत्र प्रविष्ट किए थे । जोसेफ पर पैगंबर का कथित अपमान करने के आरोप में यह आक्रमण किया गया था ।
९. वर्ष २०१५ में पी.एफ.आइ. ने कर्नाटक के शिवमोग्गा में एक फेरी निकाली थी । इस अवसर पर कुछ वाहनों पर पत्थर फेंके गए थे तथा पी.एफ.आइ. के कार्यकर्ताओं ने दुपहिया वाहन से जानेवाले ३ लोगों पर चाकू से वार किया था । इस हिंसा के प्रकरण में कुल मिला कर ५६ लोगों को नियंत्रण में लिया गया था ।