काश्मिरी हिन्दुओं के नरसंहार की घोर यातना विश्‍व को समझना अत्यंत आवश्यक है !

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११ मार्च के दिन द कश्मीर फाइल्स नामक चलचित्र(फिल्म) विश्‍वभर में प्रसारित होने वाली है । उसके निमित्त…..

राष्ट्रीय और आंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत हिंदुत्वनिष्ठ और मानवाधिकार कार्यकर्ता सेसनातन प्रभात के प्रतिनिधि की हुई चर्चा !

आज इतने लंबे समय के उपरांत प्रसिद्ध दिग्दर्शक विवेक रंजन अग्निहोत्री ने द कश्मीर फाइल्स चलचित्र के माध्यम से अत्याचारियों को विश्‍व के पर्दे पर दिखाने का प्रशंसनीय प्रयत्न किया है । यह कार्य करते समय जिहादी और उनकी विचारधारा के लोंगों के द्वारा इसके विरोध में अनेक बाधाएं निर्माण की गईं । अग्निहोत्री के इन प्रयत्नों को अथवा चलचित्र के विषय में मुख्य प्रवाह के प्रसारमाध्यमों के द्वारा जैसी प्रसिद्धि दी जानी चाहिए थी वैसी नहीं दी गई, यह हिन्दुओं के भारत का दुर्भाग्य ही कहेंगे । सनातन प्रभात वर्तमानपत्र ने मात्र हिन्दू राष्ट्र और हिंदुत्व के लिए कार्यरत ऐसे प्रयत्नों को सदा ही ठोस प्रसिद्धि दी है । इसका एक भाग है काश्मिरी हिन्दुओं की व्यथा और उसके निमित्त इस चलचित्र के प्रयोजन के संदर्भ में सनातन प्रभात के प्रतिनिधि ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कार्यरत हिंदुत्वनिष्ठ और मानवाधिकार कार्यकताओं से चर्चा की ।

धर्मनिरपेक्ष भारत में जिहादी आतंकवादियों ने काश्मिरी हिन्दुओं का नरसंहार किया और लाखों काश्मिरी हिन्दुओं को काश्मीर छोडकर अपने ही देश में निर्वासित होना पडा । ३० वर्ष पूर्व हुई इस हिंसा पर एक भी राजकीय पक्ष ने चाहे वह पक्ष की विचारधार का हो अथवा विपक्ष की विचारधारा का, एक भी बुद्धिजीवी ने आवाज नहीं उठाई । लोकतंत्र की हत्या हुई, ऐसे भी किसी ने नहीं कहा तथा पुरस्कार लौटाना जैसे नाटक नहीं किए । भारत धर्मनिरपेक्ष होते हुए भी उसकी यह धर्मनिरपेक्षता किसी काम नहीं आई । विश्‍व की यह चुप्पी काश्मिरी हिन्दुओं को आज ३ दशक के उपरांत भी चुभती है !

(सौजन्य : Zee Studios)

मुसलमानों के ५७ देश हैं; भारत में हिन्दुओं के लिए नो गो एरिया ऐसा कभी भी नहीं होना चाहिए ! – आरिफ अजाकिया, लंदन

(टीप : नो गो एरिया अर्थात जिस क्षेत्र में जाने के लिए प्रतिबंध हो)

आरिफ अजाकिया, लंडन

पाकिस्तान, और अन्य देशों में जिहादियों के द्वारा हिन्दुओं और गैरमुसलमानों पर हो रहे आक्रमणों के विरोध में आवाज उठाने वाले लंदन के प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता आरिफ अजाकिया अभी भारत आकर गए । देहली में द कश्मीर फाइल्स चलचित्र स्क्रीनिंग के (चलचित्र सभी जगह प्रसारित होने के पूर्व प्रचार के लिए कुछ लोगों को दिखाया जाता है ।) समय वह उपस्थित थे । चलचित्र के संदर्भ में सनातन प्रभात के एक प्रतिनिधि से बोलते हुए उन्होंने कहा, ३० वर्ष पूर्व हिन्दुओं को हिन्दू राष्ट्र से ही निर्वासित होना पडा । अपने ही राष्ट्र में निर्वासित होना पडा । उन्हें मिली नरक के समान यातना इस चलचित्र के द्वारा सबको बताई गई है । एकआध कडवा सत्य सबको बताया जाए तो उसका विरोध होता ही है ! वैसे ही इस चलचित्र के संदर्भ में होता दिख रहा है । इस चलचित्र में प्रत्येक बात सत्य पर आधारित होने के कारण चलचित्र देखते समय आंखों से अश्रु आने बिना नहीं रहते । चलचित्र के माध्यम से जिहादियों की क्रूरता ध्यान में आती है । यदि हिन्दू जागृत नहीं हुए, तो जैसे काश्मीर में हुआ, वैसे ही बंगाल, केरल इन राज्यों में भी होगा, यह हमें भूलना नहीं चाहिए ।

भारत सरकार ने काश्मिरी हिन्दुओं के हित के लिए अब तत्परता से कार्य करना चाहिए । अलगवावादी नेता यासिन मलिक जैसों का आज भी सरकारी अतिथि के समान आदर किया जाता है । उन्हें तो फांसी पर लटकाना चाहिए । हिन्दुओं की जनसंख्या घटनी नहीं चाहिए, इसके लिए प्रयत्न करने होंगे । आज मुसलमानों के ५७ देश हैं । भारत हिन्दुओं के लिए नो गो एरिया कभी नहीं होना चाहिए !

वर्ष १९७१ में (आज के) बांगलादेश में हिन्दुओं पर हुए नरसंहार के विषय में यथार्थ चित्रण करने वाला चलचित्र प्रदर्शित होना चाहिए ! – कोएनराड एल्स्ट, बेल्जियम

इतिहासकर्ता कोनराड एल्स्ट

हिन्दू धर्म के शोधकर्ता और प्रसिद्ध विचारक बेल्जियम के कोएनराड एल्स्ट से इस चलचित्र के संदर्भ में संपर्क करने पर उन्होंनेे कहा कि, काश्मिरी हिन्दुओं को जो पलायन करना पडा उस पद्धति को पोगरम (pogrom) कहा जाता है । इसके अंतर्गत कुछ लोगों की हत्या कर अन्यों को भयभीत कर उन्हें पलायन करने के लिए विवश किया जाता है । ऐसा गए शतक में यूरोप में भी घटा है । नब्बे के दशक में काश्मिरी हिन्दुओं के विरोध में घटित हुए वंशविच्छेद को प्रसारमाध्यमों ने जिस प्रकार नहीं बताया, वैसा ही कुछ पश्‍चिमी देशों में भी दिखाई देता है । इस्लामी आतंकवादियों के कुकृत्यों को सदा ही दुर्लक्ष किया गया है । विश्‍वभर की सरकारें भी मुसलमानों की चापलूसी करने में ही अपने को धन्य समझती आई हैं । भारत की वर्तमान सरकार उसी दिशा में प्रयासरत है; परंतु इसका उन्हें कुछ भी लाभ नहीं होगा ।

द कश्मीर फाइल्स चलचित्र के माध्यम से अत्यंत ही प्रशंसनीय प्रयत्न किया गया है । प्रत्येक भारतीय हिन्दू को यह चलचित्र देखना चाहिए । देश के मुसलमानों को भी यह चलचित्र देखकर जागृत होना आवश्यक है । बहुसंख्य होते हुए भी बेचारे हिन्दुओं पर देश में किस प्रकार अत्याचार हुए हैं, यह विश्‍व का पता चलना आवश्यक है । भारतीय चलचित्र निर्माताओं ने वर्ष १९४७ में भारत के विभाजन के समय, तथा वर्ष १९७१ मेंे पूर्व पाकिस्तान में (आज के बांगलादेश में) हिन्दुओं पर हुए नरसंहार के विषय में यथार्थ चित्रण करनेवाले चलचित्र बनाने चाहिए ।

कश्मीरी हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों के संबंध में वैश्‍विक समुदाय ने जागृत होना आवश्यक ! – राहत औस्टिन, दक्षिण कोरिया

राहत ऑस्टिन, दक्षिण कोरिया

पाकिस्तान के अल्पसंख्यांक हिन्दू, सिख एवं ईसाइयों के मानवाधिकारों के लिए लडनेवाले एवं दक्षिण कोरिया निवासी राहत औस्टिन से संपर्क करने पर उन्होंने अभिप्राय देते हुए हिन्दुओं की दयनीय अवस्था के विषय में दु:ख व्यक्त किया । उन्होंने कहा, कश्मीरी हिन्दुओं के लिए भारत सरकार ने कुछ करना चाहिए । यदि हम कुछ भी करें, तो भी उसका विशेष कुछ लाभ नहीं होगा । जिहादी आतंकवाद की बलि चढे हुए पात्र सदा भिन्न रहते है । पहले राजा दाहिर था, आज कश्मीरी हिन्दू हैं । इसिलिए इस्लामिक सल्तनतों की निर्मिति होती रही है । काश्मीर में भी वही घटना देखने को मिलती है । हिन्दू ने कभी किसी पर भी आक्रमण नहीं किया । आज भारत दोबारा विभाजन की कगार पर खडा है । पंजाब में खालिस्तान की मांग की जा रही है । विश्‍व में केवल हिन्दू ही मानवतावादी दृष्टिकोण रखनेवाले हैं । आज भारत में राष्ट्रवाद जागृत होने की आवश्यकता है । धर्मनिरपेक्षता के नाम से हिन्दू उन्हीं के देश में पिटतेे दिखाई देते हैं । द कश्मीर फाइल्स चलचित्र देखकर कश्मीरी हिन्दुओं पर अत्याचारों के विषय में वैश्‍विक समुदाय ने जागृत होना आवश्यक है ।

भारतीय हिन्दुओं के साथ ही यहां के मुसलमानो ने भी यह चलचित्र अवश्य देखना चाहिए ! – मारिया वर्थ, जर्मन लेखिका, भारत

मारिया वर्थ, जर्मन लेखिका

मूल जर्मनी की एवं विगत अनेक वर्षों से भारत में रहकर हिन्दू धर्म का गहन अध्ययन करनेवाली विख्यात लेखिका मारिया वर्थ से संपर्क किया तब उन्होंने कहा, मैं केवल ८ वर्ष की थी तब भी वर्ष १९५९ में तिब्बत में दलाई लामा एवं उनके अनुयायीयों का जो विस्थापन हुआ, वह मुझे अच्छ से स्मरण है । उसके संदर्भ में मुझे सबकुछ जानकारी प्राप्त हुई थी; परंतु वर्ष १९७१ में जब तत्कालीन पूर्व पाकिस्तान में लाखों हिन्दुओं पर अत्याचार किए गए, तब मैं २१ वर्ष की होने के बावजूद भी मुझे उस विषय में कुछ भी ज्ञात न था । वर्ष १९९० में मैं भारत निवासी बन गई । तब कश्मीर के हिन्दुओं का वंशविच्छेद हुआ । फिर भी जीवन के ४० वर्ष बिताए हुए मेरे जैसी महिला भी उस विषय में संपूर्णतः अनभिज्ञ थीं । द कश्मीर फाइल्स चलचित्र की आज बहुत आवश्यकता है । भारतीय हिन्दू के साथ ही यहां के मुसलमानों ने भी यह चलचित्र अवश्य देखना चाहिए और अंतर्मुख होकर उन्हें विचार करना होगा की, क्या उनकी सर्वोच्च धार्मिक शक्ति ने उन्हें अन्य धर्मियों को कत्ल करने तक की यातना देने के लिए कहा है ? कष्ट देने के विषय में बताया है ? क्या एक ही दैवी शक्ति द्वारा सबकी निर्मिति होने के बावजूद ऐसी सीख दी जाना संभव है ? यदि मुसलमानों के लिए पंथ प्राथमिक है, तो हिन्दुओं के लिए भी उनका धर्म प्रथम प्राधान्य है !

नरसंहार को पलायन कहकर कश्मीरी हिन्दुओं पर हुए अन्याय का दाह न्यून करने का प्रयास ! – अंकुर शर्मा, अध्यक्ष, इक्कजुट जम्मू संगठन

अंकुर शर्मा, अध्यक्ष

कश्मीरी हिन्दुओं के हित के लिए लडनेवाले जम्मू के इक्कजुट जम्मू नामक हिन्दुत्वनिष्ठ संगठन के अध्यक्ष श्री. अंकुर शर्मा से हुई बातचित के दौरान ज्ञात हुआ कि, जम्मू में द कश्मीर फाइल्स चलचित्र के हालही में हुए स्क्रीनिंग के समय वे स्वयं उपस्थित थे । उन्हों ने चलचित्र के संदर्भ में प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि, चिलचित्र का निर्माण होना, प्रशंसनीय आरंभ है । तत्कालीन केंद्र सरकार ने हिन्दुओं के नरसंहार की ओर किस प्रकार लापरवाही दिखाई, किस प्रकार वे मूकदर्शक ही बने रहे, उसका वास्तविक वर्णन इस चलचित्र द्वारा किया गया है । नरसंहार को पलायन कहकर कश्मीरी हिन्दुओं पर किए गए अन्याय का दाह न्यून करने का, एवं हिन्दुओं पर हुए अत्याचारों को उजागर करने का प्रयास इस चलचित्र द्वारा किया गया है । जिहाद का षड्यंत्र किस प्रकार राजकीय स्तर पर, एवं प्रसारमाध्यमों द्वारा कार्यरत रहता है, यह बात इस चलचित्र के माध्यम से सुस्पष्ट होगी । मुस्लिम ब्रदरहूड के नाम पर लोकतांत्रिक राष्ट्र किस प्रकार दुर्बल किए जातें हैं, यह बात भी यह चलचित्र देखने के पश्‍चात समझ में आएगी । जब तक हिमालय का इस्लामीकरण नहीं होता, तब तक सनातन धर्म का इस्लामीकरण हो नहीं सकता । हिमालय पर्वत सनातन हिन्दू धर्म का उगमस्थान रहा है । इसलिए प्रथम कश्मीर पर लक्ष्य केंद्रित किया गया । सरकारी स्तर पर कश्मीर का इस्लामीकरण करना आरंभ है । कश्मीर के पश्‍चात यदि जम्मू भी हिन्दुओं के हाथों में से चला जाता है, तो आगे का समय महाभयानक है । भारतीय राज्यप्रणाली सनातन वैदिक हिन्दू धर्म की सभ्यता के विरोध में है ।