हिन्दुत्व, संस्कृति एवं स्वभाषा की रक्षा हेतु सदैव सफलतापूर्वक वीर योद्धा की भूमिका सफलतापूर्वक निभानेवाले गोवा के प्रा. सुभाष वेलिंगकर !

ध्येयवादी एवं शुद्ध संघ संस्कारों से परिपूर्णसंस्कारित, साथ ही हिन्दू धर्म, स्वभाषाभिमान, हिन्दू संस्कृति, मराठी भाषा आदि की रक्षा हेतु सर्वस्व समर्पित करनेवाले प्रा. सुभाष भास्कर वेलिंगकर को न पहचाननेवाला एक भी व्यक्ति गोवा में नहीं मिलेगा । प्रा. सुभाष वेलिंगकर शिक्षा विशेषज्ञ हैं । उन्होंने गोवा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य विस्तार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है । उनके नेृतत्व में, ‘गोवा में, प्राथमिक शिक्षा में मराठी एवं कोंकणी; इन मातृभाषाओं में शिक्षा देनेवाले विद्यालयों को ही सरकारी अनुदान देना तथा अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों का अनुदान निरस्त (रद्द) करना,’ इन मांगों के लिए ‘भारतीय भाषा संरक्षण मंच’ की स्थापना कर सरकार के विरुद्ध राज्यव्यापी आंदोलन चलाया । इस काल में उन्होने अपने ही लोगों के भीषणप्रचंड विरोध का सामना करना पडा; परंतु उस स्थिति में भी बिना डगमगाए उन्होंने इस आंदोलन को उतनी ही तीव्रता से आगे बढाया । इसके उपरांत उन्होंने मातृभाषा में शिक्षा देने केा समर्थन करने के लिए ‘गोवा सुरक्षा मंच’ के नाम से राजनीतिक दल की स्थापना कर इस विषय में समाज में जागृति की ।

गोवा में हिन्दू धर्म, संस्कृति एवं स्वभाषा का जतन करने हेतु तथा गोवा के विभिन्न हिन्दू संगठनों को संगठित करने हेतु वे अब भीवे सक्रिय हैं । नवंबर २०२४ में पुराने गोवा में स्थित फ्रांसिसत जेवियर के शव का ‘डी.एन्.ए.’ परीक्षण करने की संवैधानिक मांग करने के पश्चात गोवा के ईसाईयों ने उनके विरुद्ध राज्यव्यापी आंदोलन चलाया । उसमें भी उन्होंने निर्भिर्भीकता से इस विरोध का सामना किया । गोवा की राजभाषा कोंकणी है, जबकि मराठी को सहभाषा की श्रेणी प्राप्त है । यह मराठी भाषा के साथ यह अन्याय होने से अभिजात (समृद्ध) (अभिजात) मराठी भाषाश को राजभाषा की श्रेणी प्राप्त कर दिलाने हेतु कुछ ही दिन पूर्व प्रा. सुभाष वेलिंगकर के नेतृत्व में ‘मराठी राजभाषा निर्धार समिति’ की स्थापना हुई है । मराठी भाषा को राजभाषा की श्रेणी प्राप्त करा देने हेतु कार्य करते समय प्रा. सुभाष वेलिंगकर अनेक चुनौतियों का कैसे सामना करते हैं ? तथा उसके लिए किन गुणों की आवश्यकता है ?, इस विषय में उन्हीं के शब्दों में जानेंगे लेते हैं ।

प्रा. सुभाष वेलिंगकर

विशेष स्तंभ

छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज हेतु उनके वीर योद्धाओं का त्याग सर्वोच्च है । उसकी भांति आज भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रप्रेमी नागरिक धर्म-राष्ट्र-धर्म की रक्षा हेतु ‘वीर योद्धा’ के रूप में कार्य कर रहे हैं । उनकी तथा उनके हिन्दू धर्म की रक्षा हेतु संघर्ष की जानकारी करा देनेवाले ‘हिन्दुत्व के वीर योद्धा’ इस स्तंभ के माध्यम से अन्यों को भी प्रेरणा मिलेगी । इन उदाहरणों से आपके मन की चिंता दूर होकर उत्साह जागृतउत्पन्न होगा !

– संपादक 

१. फ्रांसिस जेवियर के शव का‘डी.एन्.ए.’ परीक्षण करने की मांग पर ईसाईयों तथा पुलिस प्रशासन से प्राप्त बुरा अनुभव

‘पुराने गोवा में स्थित फ्रांसिस जेवियर के शव का ‘डी.एन्.ए.’ परीक्षण कर सच्चाई सामने लाई जाए’, यह पहले श्रीलंका में की गई यह मांग मैंने नवंबर २०२४ में गोवा में की । मुझे यह मांग करने का संवैधानिक अधिकार है । वास्तव में देखा जाए, तो फ्रांसिसत जेवियर को गोवा में पोर्तुगीज साम्राज्य को सशक्त बनाने तथा किसी भी प्रकार से गोवा के हिन्दुओं के धर्मांतरण को गति दिलाने के लिए भेजा गया था तथा वह पोर्तुगीजों का कटिबद्ध बिचौलिया (दलाल)हस्तक था । पुराने गोवा में आज जो शव है, वह वास्तविक जेवियर का है ही नहीं है, अपितु लेखों में इस शव को ३ बार बदले जाने का उल्लेख अथवा संदर्भ लेखन में मिलते हैं । गोवा सरकार प्रतिवर्ष फ्रांसिस जेवियर के शव प्रदर्शन के समारोह के लिए पैसा उडाती है । ‘सरकार द्वारा जनता के पैसे उडाते हुए शत्रु का किया जानेवाला यह महिमामंडन करने का अर्थ है गोवावासियों को अंतरराष्ट्रीयता की खाई में ढकेल देना है ! जब तक इस शव को रोम अथवा पर्तुगाल भेजा नहीं जाता, तब तक यह लडाई जारी ही रहेगी’ मंगलुरू में भी रॉबर्ट रुजारियो नाम के व्यक्ति ने ऐसा ही आंदोलन आरंभ किया है । मेरे द्वारा शव का ‘डी.एन्.ए.’ परीक्षण की मांग किए जाने के उपरांत कुछ राजनेताओं ने मडगांव में कानून को हाथ में लेकर हिंसक आंदोलन छेडा । उनके दबाव के कारण मेरे विरुद्ध गैरजमानती (नॉनबेलेबल) अपराध पंजीकृत किया गया । उस समय मुझे बंदी बनाने हेतु पुलिस जांच कर रही थी । उन्होंने मेरे घर पर पहरा बिठा दिया था । इसमें मेरे मित्रों तथा लडकों को कष्ट पहुंचाया गया । मेरी खोज के लिए पुलिस के २ विशेष दल महाराष्ट्र भेजे गए । सर्वत्र भय एवं दहशत का वातावरण बनाया गया ।

मेरे बंदी बनाए जाने से पहले द्वारा मैंने कनिष्ठ (स्थानीय) न्यायालय में अग्रीम जमानत के लिएमिलने हेतु प्रविष्ट आवेदन डाला, तो न्यायालय ने उसे निरस्तखारीज किर दिया । उसकेए जाने के उपरांत मैं मुंबई उच्च न्यायालय के गोवा खंडपीठ में चला गयगया । मैंने खंडपीठ ने निर्णय दिया कि प्रार्थी ने (मैंने) जांच में पुलिस को सहयोग करने से मना नहीं किया था । इसलिए उसे बंदी बनाने की आवश्यकता नहीं तथा जमानत देने में भी कोई अडचन नहीं । मुझसे पूछताछ करने के लिए पुलिस के साथ सहयोग करना अस्वीकार नहीं किया था; इसलिए गोवा खंडपीठ ने मुझे हिरासत में लेने की आवश्यकता न होने का तथा जमानत देने का भी कोई प्रश्न ही नहीं उठता, ऐसा निर्णय दिया । न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिए जाने के पश्चात मैं पूछताछ के लिए पुलिस थाने में उपिस्थत हुआरहा । प्रशासन एवं पुलिस के प्रति मेरा विश्वास अल्प होने से उच्च न्यायालय का निर्णय आने तक ६ दिन मैं भूमिगत रहा । इसी अवधि में गोवा पुलिस ने बडे दस्ते के साथ एक दिन मध्यरात्रि के समय दोडामार्ग में रहनेवाले एक सज्जन परिवार के घर पर बिना किसी ‘सर्च वॉरंट’ के (छापामारी के आदेश के बिना) छापा मारा । जैसे मैं कोई आतंकवादी था, इस प्रकार से पुलिस प्रशासन ने ईसाईयों के दबाव में आकर यह शक्ति-प्रदर्शन किया । इस अवधि में कुछ ईसाई राजनेताओं नेमें मेरे सहित मेरे परिजनों से गाली गलोच के वीडियो प्रसारित किए । सामान्य की भांति इसमें कुछ ‘सर्वधर्मसमभाववाले’ तथा ‘हिन्दुत्वविरोधी’ हिन्दू भी सामान्य की भांति सम्मिलित थे ।

‘जेवियर : संत अथवा शैतान’ पुस्तिका नाणीज मठाधीश पूज्य श्रीनरेंद्राचार्य महाराजजी के चरणों में समर्पित

२. मराठी को राजभाषा बनाने हेतु मराठीप्रेमियों का ‘मराठी वोटबैंक’ में रूपांतरण होना अति आवश्यक !

वर्तमान समय में गोवा में मराठी भाषा को ‘राजभाषा की श्रेणी’ प्राप्त कर दिलाने हेतु ‘‘मराठी राजभाषा निर्धार समिति’ की स्थापना हुई है । वास्तव में मराठी केवल भाषा नहीं है, अपितु वह गोवा का गौरव तथा हिन्दू संस्कृति है । मराठीप्रेमियों को स्वयं को केवल ‘मराठीप्रेमी’ की उपाधि लेकर घूमना नहीं चलेगा, अपितु यदि मराठी को गोवा की राजभाषा बनानी हो, तो मराठीप्रेमियों का रूपांतरण ‘मराठी वोट बैंक’ में होना अति आवश्यक है । इसके लिए बिखरे हुए तथा व्यक्तिगत स्वार्थ एवं मान- अपमान में संलिप्त सभी विभाजित गुटों को एकत्र लाना है । हमें ग्रामपंचायत स्तर तक संगठित कार्यकर्ताओं का संगठन बनाना है । गोवा में मराठी भाषा टिकी रही, तभी हिन्दू संस्कृति तथा राष्ट्रीयता टिकी रहेगी, साथ ही हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह लडाई निर्णायक एवं आरपार की लडाई है, इसे नहीं भूलना चाहिएहै । आज ‘सुप्त’ मराठीप्रेमियों को संगठित कर उन्हें मराठी भाषा के उत्कर्ष के लिए सडक पर उतरने की मानसिकता में लाना पडेगा । युवा पीढी को, साथ ही बडे स्तर पर मातृशक्ति को मराठी आंदोलन से जोडने का काम करना है ।

वर्ष १९९० एवं १९९२ में कारसेवा के लिए गोवा से अयोध्या गए ७०० कारसेवकों के साथ अयोध्या की तपस्वी छावनी के पीठाधीश जगद्गुरु श्रीपरमहंस आचार्य महाराज के साथ ! हवाई अड्डेड्डे पर स्वागत करते समय अंतरराष्ट्रीय बजरंग दल के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं गोवा आं.बजरंगदल प्रमुख नितीन फळदेसाई

३. गोवा में फैल रहा द्विराष्ट्रवाद तथा अंतरराष्ट्रीयीकरण की प्रक्रिया विभाजन की ओर ले जानेवाली

केंद्र सरकार द्वारा प्रतिबंधित सरकार को ज्ञात ‘पॉप्युलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ के कार्यकर्ता तथा केंद्र सरकार के निर्देश पर केवल औपचारिकरूप से पुलिस थाने में बुलाकर छोडे गए कार्यकर्ता गोवा में फैले हुए हैं । कुछ लोगों द्वारा विदेश में आंतकी जाकिर नाईक से मिलकर गुप्त चर्चा किए जाने के वीडियो प्रसारित हुए हैं । इन सभी को मिल रहा राजनीतिक समर्थन अभय गोवा के हिन्दुओं के लिए घातक है । सांखवाळ का प्राचीन तथा ध्वस्त श्री विजयादुर्गा मंदिर को ‘धरोहर स्थली’ के रूप में  संरक्षित किया गया है । इस धरोहर स्थली को ‘फ्रंफ्रंटिसपीस’ कहा जाता है । चर्च द्वारा चलाई जा रही अवैध घुसपैठ को मिलनेवाला सरकारी संरक्षण गोवा केकी धरोहरस्थलों के संकटकारी भविष्य की ओर संकेत करता है । यह संस्कृति-भक्षण का ही काम है । विगत १२ वर्षाें में तीव्र गति से बंद होते जा रहे सरकारी मराठी विद्यालय तथा इस संबंध में सरकार की उपेक्षा अस्वस्थ एवं विचलित कर देनेवाली है । ये विद्यालय संस्कृति का जतन एवं पोषण करनेवाले केंद्र हैं । राजनीतिक सुविधाओं तथा लालच के माध्यम से तीव्र गति से हो रहा समाज का तीव्रगति से हो रहा राजनीतिक लाचारीकरण समाज का मानसिक स्वास्थ्य प्रदूषित होने का चिह्नन्ह है । गोवा के सांस्कृतिक भविष्य पर शिक्षा का अंग्रेजीकरण तथा इस विषय में सरकार की विसंगत नीति का परिणाम गोवा के सांस्कृतिक भविष्य पर होने ही वाला है, यह निश्चित है !

पूज्य स्वामी बाबा रामदेवजी के साथ स्नेहपूर्ण भेंट

४. देवभूमि गोवा की प्रतिमा को कलंकित करने के प्रयासों का दुष्परिणाम

प्राचीन काल से गोवा की चली आ रही शालीन, सात्त्विक देवभूमि तथा पुण्यभूमि की प्रतिमा योजनाबद्ध धूमिल कर गोवा को कैसिनो, जुआ,देहविक्रय तथा मादक पदार्थाें का केंद्र बनाया गया है । आगे जाकर इसके अनिष्ट परिणाम बढेंगे । आनेवाली पीढियों को इनस परिस्थितियों से उत्पन्न चुनौतियों का सामना अगली पीढियों को करना पडेगा । सामाजिक प्रबोधन, सामाजिक स्वास्थ्य में सुधार लाना तथा अगानेवाली पीढियों के सामने आदर्श स्थापित करने हेतु समाजमाध्यमों का उचित उपयोग करना परिणामकारी सिद्ध होगा ।

श्री शिव प्रतिष्ठान संभाजीराव भिडेगुरुजी से चर्चा करते हुए प्रा. सुभाष वेलिंगकर (दाएंऔर)

५. गोवा में बार-बार हो रही अंतरराष्ट्रीयीकरण की गतिविधियों का संगठितरूप से किए गए विरोध की घटनाएं

अ. पोर्तुगीज महाकवी लुईश द कार्मोईश की मूर्ति लगाने का विरोध करना : भारतीयों का उल्लेख ‘जानवर’ कहकर करनेवाला पोर्तुगीज महाकवी लुईश द कार्मोईश की मृत्यु की त्रिशताब्दी मनाने की योजना कुछ लोगों ने वर्ष १९८० में बनाई थी । स्वतंत्रता सेनानियों ने इसका विरोध किया । इसे जोडकर हमने संघ के कार्यकर्ताओं को इसमें उतारा । किसी अज्ञात के द्वारा पुराने गोवा के चर्च के विस्तीर्ण प्रांगण में प्रमुख दर्शनीय भाग में इस लुईश द कार्मोईश की मूर्ति को मध्यरात्रि में जिलेटीन से उडा देने का असफल प्रयास किया गया । इस विरोध से घबराकर सरकार को इस मूर्ति को ओल्ड गोवा से म्युजियम के गोदाम में स्थानांतरित करने पर बाध्य होना पडा । इस शताब्दी के विरुद्धरोध में सरकारी समिति के अध्यक्ष सभापति फ्रॉइलान माशादु के वास्को स्थित आवास पर निकाले गए विरोध मोर्चा का नेतृत्व मैंने किया । बिना किसी गाजेबाजे से तत्कालिीन कांग्रेस की सरकार को गुप्तता ढंग से यह ‘दुष्कर्म’ करने को बाध्य होना पडहुआ ।

श्रीरामसेनाप्रमुख आदरणीय प्रमोदजी मुतालिक से भेंट एवं वार्तालाप

आ. वास्को द गामा के भारत आने की घटना को ५०० वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रम निरस्त करने के लिए बाध्य किया जाना : वर्ष १९९७ में गोवा की कांग्रेस सरकार तथा तत्कालिीन प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल की सरकार ने समुद्री लूलुटेरा वास्को द गामा के भारत प्रवेश की पंचशताब्दी बडी धूम-धाम से मनाने का निर्णय लिया था । अधिवक्ता जोकिम डायस के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा स्थापित ‘देशप्रेमी नागरिक समिति’ के मंच से छेडे गए सफल आंदोलन में मेरे पास ‘कार्यान्वयन एवं जागृति विभाग’ के प्रमुख का दायित्व था । इसके परिणामस्वरूप दोनों सरकारों को उनका निर्णय वापस लेना पडा । इस आंदोलन में वरिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी प्रभाकर सिनारी, अधिवक्ता विश्वनाथ लवांदे, नागेश करमली, अधिवक्ता नारायण नाईक, फ्लावियान डायस, जयसिंगराव राणे, चंद्रकांत केंकेंद्रे, रविंद्र शिरसाट एवं अधिवक्ता गोपाल तांबा आदि सहभागी थे । वर्ष १९९७०९८ में स्वतंत्रता सेनानियों की नवजीवन सोसाइटी की ओर से मुझे प्रतिष्ठित ‘स्वतंत्रता सेनानी आत्माराम मयेकर पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया ।

भारत माता की जय संघ के प्रत्यक्ष शिशु एवं युवकों के संगठन कार्य में

इ. ‘वास्को द गामा’ शहर का नामांतरण : पोर्तुगीज समुद्री लूलुटेरा वास्को द गामा के नाम से गोवा का सर्वाधिक जनसंख्यावाला शहर तथा प्रसिद्ध बंदरगाह है । इस शहर को दिया हुआ नाम बदलने की मांग को लेकर वर्ष १९९८ में ‘देशप्रेमी नागरिक समिति’ की ओर से चलाए गए आंदोलन में मैं ‘राज्य संयोजक’ के रूप में अग्रणी रहा ।

ई. देशभक्त तथा हिन्दू धरोहर प्रेमी ईसाई भाईयों के साथ कुंकळ्ळी में कार्यरत ! : कुंकळ्ळी-सासष्टी में पोर्तुगीज शासाकारन के विरुद्ध वहां की जनता द्वारा चलाए गए स्वतंत्रता संग्राम में वीरगति को प्राप्त १६ हिन्दू पूर्वज महानायकों का स्मारक बनाया गया है । इस स्मारक के निर्माणकार्य के लिए प्रधानता लिए देशभक्त डॉ. प्रा. वेरिस्सीमो कुतिन्हो से मैं वर्ष १९९९ से संपर्क में रहा । हिन्दू-ईसाईयों को ‘समान पूर्वज’, ‘समान इतिहास’ एवं ‘समान राष्ट्रीयता’ के आधार पर एकत्र लानेवाले सूत्र पर कुंकळ्ळी में स्मारक समिति के अध्यक्ष ऑस्कर मार्टिन तथा अधिवक्ता लेविंसन मार्टिंस के साथ मैंने काम किया । रा.स्व. संघ की ओर से मैंने तत्कािलीन सरसंघचालक सुदर्शनजी तथाकी वहां के लगभग ५० प्रतिष्ठित देशभक्त ईसाई नागरिकों के साथ बैठक का भी आयोजन किया । उसके उपरांत कुंकळ्ळी के मित्रों ने मुझे ‘कुंकळ्ळी- मित्र’ पुरस्कार से सम्मानित किया ।

संघ के संस्कारों से ही सदैव हिन्दुत्व, संस्कृति एवं स्वभाषा की ध्वजा सदैव फहराते रखने की ऊर्जा मिली !

भारत माता की जय संघ के प्रत्यक्ष शिशु एवं युवकों के संगठन कार्य में

मेरी प्रकृति ध्येयवादी संघ संस्कारों से संस्कारित हुई है । शुद्ध संस्कारों के कारण मेरे मन में ‘ध्येयवाद के आधार परसे हम जो करते हैं, वह बिल्कुल अनुचिच नहीं है’, इसकेका प्रति मन ही मन चिरंतन आत्मविश्वास जागृतउत्पन्न हुआ है । सौभाग्यवश मुझे गोवा मुक्ति हेतु प्राणों का बलिदान देने के लिए मानसिकरूप से तैयार, बहुत मारपीट झेलकर पोर्तुगीज कारावास भुगते हुए तथा भूमिगत लडाई हेतु परिवार से जिन्हें १४ वर्षाेंर्ष के लिए परिवार से दूर रहने को बाध्य होनाहुआ पडा; ऐसे मेरे पिता स्वतंत्रता सेनानी भास्कर वेलिंगकर कीका तेजस्वी तथा ज्वालामयी दहकती धरोहर मुझे प्राप्त हुई है । वर्ष १९७५ में तत्कालिीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी द्वारा देश पर थोपे गए अत्याचारी आपातकाल के विरुद्धरोध में संघ ने देशव्यापी सत्याग्रह आंदोलन छेडा था । गोवा के सत्याग्रह का नेतृत्व कर मैंने १० माहिने का कारावास भोगा है । अयोध्या में बाबरी ढांचा गिराने की पृष्ठभूमि पर तथा कारसेवा में सम्मिलित गोवा के नेताओं की संभावित बंदी (गिरफ्तारी) की संभावना के कारण भी मैं कुछ अवधि तक भूमिगत था । ऐसी स्थिति में आवश्यक सशक्त मनोबल की धारणा के योग मुझे संघकार्य में मिले हैं । ऐसे ही कठिन प्रसंगों से ध्येय की पूर्ति हेतु किसी भी प्रसंग का सामना करने की मानसिक तैयारी ऐसे ही कठिन प्रसंगों से होती गई । डगमगाना तो दूर ही रहा,अपितु आवश्यकता पडने पर पुनः नई चुनौतियों को स्वीकार करने की प्रेरणा भी इन्हीं संकटों से शाश्वतरूप से टिकी रही । इन सभी व्यस्तताओं में मुझे मेरी पत्नी तथा बच्चों से नैतिक समर्थन मिलता रहा । मेरे दोनों पुत्र राजेंद्र एवं शैलेंद्र, ये दोनों भी संघ एवं समाजकार्य में सक्रिय हैं, यह मेरा सौभाग्य है ।