सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार
‘पश्चिमी देश माया में आगे बढना सिखाते हैं, जबकि भारत ईश्वरप्राप्ति के मार्ग पर आगे बढना सिखाता है !’
‘पश्चिमी देश माया में आगे बढना सिखाते हैं, जबकि भारत ईश्वरप्राप्ति के मार्ग पर आगे बढना सिखाता है !’
‘पश्चिमी संस्कृति स्वेच्छा को प्रोत्साहित करनेवाली व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करती है और दुख को निमंत्रण देती है, जबकि हिन्दू संस्कृति स्वेच्छा नष्ट कर सत-चित-आनंद अवस्था कैसे प्राप्त करें, यह सिखाती है ।’
‘मुसलमान एवं ईसाई उनके हित का ध्यान रखनेवालों को ही मत देते हैं; जबकि हिन्दू बुद्धिप्रमाणवाद, समाजवाद, साम्यवाद इत्यादि विभिन्न विचारधाराओं के अनुसार मत देते हैं ।
‘मुसलमान अथवा ईसाइयों के धार्मिक उत्सवों में भीड जमा करने के लिए नाटक, चलचित्र, वाद्यवृंद जैसे कार्यक्रम नहीं रखे जाते ।
मूल पुणे की तथा वर्तमान में वाई स्थित श्रीमती मालती नवनीतदास शहा (आयु ८३ वर्ष) सनातन की १२० वीं व्यष्टि संतपद पर विराजमान हुईं, सदगुरु स्वाती खाड्ये ने ४ अगस्त २०२२ को सभी को यह शुभ समाचार दिया । उपस्थित सभी ने इस समारोह के भावानंद को अनुभव किया ।
‘जो हिन्दू ईश्वरप्राप्ति के लिए नहीं, अपितु आर्थिक सुख सुविधाओं के लिए धर्मांतरण करते हैं, ऐसे लोगों का हिन्दू धर्म में न होना ही अच्छा है !ʼ
‘विज्ञान में अधिकांशतः पूर्ववत कुछ ज्ञात नहीं होता, इसलिए शोध करना पडता है । इसके विपरीत अध्यात्म में सब पूर्व ज्ञात होने के कारण, शोध नहीं करना पडता ।’
‘संसार के वैद्य, अभियंता, अधिवक्ता, वास्तु विशारद इत्यादि विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ; उसी प्रकार गणित, भूगोल, इतिहास, विज्ञान इत्यादि कोई भी विषय दूसरे विषय के संदर्भ में एक वाक्य भी नहीं बता सकता ।
‘लिखते समय अक्षर का रूप महत्वपूर्ण होता है, उसी प्रकार उच्चारण करते समय वह महत्त्वपूर्ण होता है ।
‘जिस प्रकार अनपढ व्यक्ति का यह कहना कि ‘सभी भाषाओं के अक्षर समान होते हैं’, उसका अज्ञान दर्शाता है । उसी प्रकार ‘सर्वधर्म समभाव’ कहनेवाले अपना अज्ञान दर्शाते हैं । ‘सभी औषधियां, सभी कानून समान ही हैं’, ऐसा ही कहने के समान है, ‘सर्वधर्म समभाव’ कहना !’