सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

‘जिस प्रकार अनपढ व्यक्ति का यह कहना कि ‘सभी भाषाओं के अक्षर समान होते हैं’, उसका अज्ञान दर्शाता है । उसी प्रकार ‘सर्वधर्म समभाव’ कहनेवाले अपना अज्ञान दर्शाते हैं । ‘सभी औषधियां, सभी कानून समान ही हैं’, ऐसा ही कहने के समान है, ‘सर्वधर्म समभाव’
कहना !’

विज्ञान की तुलना में अध्यात्म की श्रेष्ठता !

‘संसार के वैद्य, अभियंता, अधिवक्ता, वास्तु विशारद इत्यादि विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ; उसी प्रकार गणित, भूगोल, इतिहास, विज्ञान इत्यादि कोई भी विषय दूसरे विषय के संदर्भ में एक वाक्य भी नहीं बता सकता । केवल अध्यात्म ही एकमात्र ऐसा विषय है, जो विश्व के सभी विषयों से संबंधित त्रिगुण, पंचमहाभूत तथा शक्ति भाव, चैतन्य, आनंद एवं शांति इत्यादि के संदर्भ में परिपूर्ण जानकारी दे सकता है ।’

राष्ट्र के विकास का मूल्यांकन कैसा हो ?

नागरिकों की आध्यात्मिक उन्नति से राष्ट्र के विकास का मूल्यांकन किया जाना चाहिए; क्योंकि भौतिक विकास कितना भी हो जाए, यदि आत्मिक (अथवा नैतिक) विकास न हो, तो उस भौतिक विकास का क्या अर्थ है ?

भारत की अद्वितीयता !

‘पश्चिमी देश माया में आगे बढना सिखाते हैं, जबकि भारत ईश्वरप्राप्ति के मार्ग पर आगे बढना सिखाता है !’

– सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले