कर्मकांड का महत्त्व !

‘बुद्धिप्रमाणवादी हिन्दू धर्म के कर्मकांड को ‘कर्मकांड’ कहकर नीचा दिखाते हैं; परंतु कर्मकांड का अध्ययन करें, तो यह समझ में आता है कि उसमें प्रत्येक बात का कितना गहन अध्ययन किया गया है !’

भक्तिभाव रहित लोगों को मंदिर का उत्तरदायित्व सौंपना धर्मद्रोह है !

‘जो वैद्य नहीं, उन्हें सरकार रोगियों पर उपचार करने के लिए नहीं कहती । सरकार को न्यायालय में याचिका करनी हो, तो जो अधिवक्ता नहीं उससे नहीं कहती । परंतु मंदिर का प्रबंधन संभालने के लिए भक्तिभाव रहित लोगों को सरकार मंदिरों का उत्तरदायित्व सौंपती है ।

गुरु पर अटल श्रद्धा होनी चाहिए !

‘अपने डॉक्टर, अधिवक्ता, लेखा परीक्षक इत्यादि पर हमारा विश्वास होता है । उससे भी अनेक गुना अधिक केवल विश्वास ही नहीं, अपितु श्रद्धा गुरु पर होनी चाहिए ।’

विज्ञान द्वारा किए शोधकार्य को अध्यात्मशास्त्र से मान्यता मिलनी चाहिए !

‘जो सत्य होता है, वही चिरंतन रहता है । धर्मशास्त्र में दिए सिद्धांत युगों-युगों से वही हैं ।उनमें कोई भी परिवर्तन नहीं कर पाया । इसके विपरीत विज्ञान के सिद्धांतों में कुछ वर्षों में ही परिवर्तन हो जाता है; क्योंकि विज्ञान अंतिम सत्य नहीं बता सकता ।

उथली राजनीति का एक ही पर्याय है ‘हिन्दू राष्ट्र !’

‘आजकल अधिकांश स्थानों पर राजनीति का अर्थ है, भ्रष्टाचार और गुंडागिरी ! इसे सुधारने के लिए धर्माधिष्ठित हिन्दू राष्ट्र (सनातन धर्म राज्य) की स्थापना का पर्याय नहीं ।’

शासनकर्ताओं को यह कैसे समझ में नहीं आता ?

‘भारत में उपलब्ध भूमि, अनाज तथा जल का विचार कर भारत की जनसंख्या कितनी बढने देना है, इसका विचार करें; अन्यथा आगे बढनेवाली भीड़ में सभी का दम घुटेगा, यह शासनकर्ताओं को कैसे समझ में नहीं आता ?’

कहां केवल अनुमान व्यक्त करनेवाला विज्ञान और कहां ज्योतिषशास्त्र !

‘कहां भविष्य में क्या होनेवाला है, इसके विषय में किसी एक व्यक्ति के संदर्भ में भी सभी जांच करने के उपरांत भी न बता पानेवाला तथा प्रकृति के संदर्भ में केवल अनुमान व्यक्त करनेवाला विज्ञान; और कहां केवल प्रकृति का ही नहीं

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘अनंत कोटि ब्रह्मांडनायक का अन्य धर्मों की भांति केवल एक पुस्तक में वर्णन किया जा सकता है क्या ? इसीलिए हिन्दू धर्म में सहस्रों ग्रंथ हैं । उनसे पूर्ण जानकारी मिलती है ।’

सनातन संस्था के आश्रमों में मिलनेवाले साधनारूपी संस्कारों के बल पर आदर्श दृष्टि से विकसित हो रहे युवा साधक एवं साधिकाएं !

‘भारतीय संस्कृति संस्कारों पर आधारित है; परंतु आज के कलियुग में नैतिक मूल्यों का पतन होने से संस्कार-मूल्य भी समाप्त हो चुके हैं । इसका परिणाम युवा पीढी पर दिखाई देता है । उसके कारण ‘उनका भविष्य संकट में है’, ऐसा कहना अनुचित नहीं है ।