धर्मकार्य हेतु ईश्वर की कृपा कैसे प्राप्त करें ?

‘हमने ईश्वरप्राप्ति के लिए प्रयास किए, तो ईश्वर का ध्यान हमारी ओर आकर्षित होता है और हमारे द्वारा किए जा रहे धर्मकार्य के लिए ईश्वर की कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त होते हैं ।’

यह तो बुद्धिप्रमाणवादियों का देशद्रोह ही है !

‘संसार में भारत की महत्ता केवल भारत के अध्यात्मशास्त्र के कारण ही है । उसे ही ‘झूठा’ कहना, यह बुद्धिप्रमाणवादियों का देशद्रोह ही नहीं है क्या ?’

भारत के लिए यह लज्जाजनक ही है !

‘भारत में अल्पसंख्यकों पर राज्य न कर पानेवाले सभी राजनीतिक दल, क्या कभी मुसलमान बहुल कश्मीर पर राज्य कर पाएंगे ?’

समष्टि साधना में व्यष्टि साधना का महत्त्व !

हनुमानजी ने व्यष्टि साधना के अर्थात रामभक्ति के बल पर रामराज्य की स्थापना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । यह ध्यान में रखकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु प्रयास करनेवालों को व्यष्टि साधना भी मन लगाकर करनी चाहिए ।’

समष्टि साधना में व्यष्टि साधना का महत्त्व !

हनुमानजी ने व्यष्टि साधना के अर्थात रामभक्ति के बल पर रामराज्य की स्थापना करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । यह ध्यान में रखकर हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु प्रयास करनेवालों को व्यष्टि साधना भी मन लगाकर करनी चाहिए ।’

विज्ञान सर्वव्यापी अध्यात्म के घर वापस लौटेगा !

‘विज्ञान अध्यात्मशास्त्र का एक भटका हुआ बच्चा है । आज नहीं तो कल, वह सर्वव्यापी अध्यात्म के घर वापस लौटेगा और उससे एकरूप हो जाएगा !’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘बुद्धिप्रमाणवादियों के कारण हिन्दुओं की ईश्वर के प्रति श्रद्धा नष्ट हो गई । सर्वधर्म समभाववादियों के कारण हिन्दुओं को हिन्दू धर्म की अद्वितीयता समझ में नहीं आई तथा साम्यवादियों के कारण हिन्दुओं का ईश्वर से विश्वास उठ गया ।

हिन्दुओ, परतंत्रता में धकेलनेवाले साम्राज्यवादियों को पराभूत कर भारत को अजेय राष्ट्र बनाने हेतु क्षात्रवृत्ति आवश्यक !

‘भारतीय इतिहास में एक ओर सात्त्विक एवं पराक्रमी राज्यकर्ताओं का काल ‘सुवर्णकाल’ समझा जाता है; परंतु दूसरी ओर परतंत्रता, अर्थात विदेशियों द्वारा भारत पर राज किए जाने का इतिहास है । रामायण काल में लंकापति रावण ने भारत के कुछ भाग पर राज किया ।

आजकल के स्वार्थी नेता !

‘नेता शब्द का अर्थ है, मार्ग दिखानेवाला; परंतु कलियुग के आजकल के नेता राष्ट्र अथवा धर्म के लिए प्रगति का मार्ग न दिखाते हुए, केवल स्वार्थ में डूबे रहते हैं !’