राष्ट्र के विकास का मूल्यांकन कैसे किया जाए ?
नागरिकों की आध्यात्मिक उन्नति से राष्ट्र के विकास का मूल्यांकन किया जाना चाहिए; क्योंकि भौतिक विकास कितना भी हो जाए, आत्मिक (अथवा नैतिक) विकास ना हो, तो उस भौतिक विकास का क्या अर्थ है ?
नागरिकों की आध्यात्मिक उन्नति से राष्ट्र के विकास का मूल्यांकन किया जाना चाहिए; क्योंकि भौतिक विकास कितना भी हो जाए, आत्मिक (अथवा नैतिक) विकास ना हो, तो उस भौतिक विकास का क्या अर्थ है ?
हिन्दू राष्ट्र की स्थापना का कार्य करते समय ‘मैं करता हूं’, ऐसा अहम् रखने की आवश्यकता नहीं; क्योंकि काल महिमा के अनुसार वह कार्य निश्चित रूप से होगा; परंतु इस कार्य में जो निस्वार्थ रूप से तन-मन-धन का त्याग कर सम्मिलित होगा, उसकी साधना होगी तथा वह जन्म मृत्यु के फेरे से मुक्त हो जाएगा ।
‘व्यक्तिगत प्रेम की अपेक्षा राष्ट्रप्रेम और धर्मप्रेम करके देखिए । उसमें अधिक आनंद है !’
‘पश्चिमी देश माया में आगे बढना सिखाते हैं; जबकि भारत ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर आगे बढना सिखाता है !’
ईश्वर में स्वभावदोष एवं अहं नहीं होते । उनसे एकरूप होना है, तो हममें भी उनका अभाव होना आवश्यक है ।
‘शरीर में कीटाणु हों, तो वे सेवन की गई औषधि से मर जाते हैं । उसी प्रकार वातावरण में विद्यमान नकारात्मक रज-तम, यज्ञ से उत्पन्न स्थूल और सूक्ष्म धुएं से नष्ट हो जाते हैं ।’
‘गणित और भूगोल भिन्न विषय हैं। एक की भाषा में दूसरे को नहीं समझाया जा सकता । उसी प्रकार ‘विज्ञान और अध्यात्म भी भिन्न विषय हैं’, यह विज्ञान को समझ लेना चाहिए ।’
ʻसनातन प्रभातʼ में दिया ३० प्रतिशत लेखन साधना संबंधी होता है । इससे पाठकों का अध्यात्म से परिचय होता है और कुछ लोग साधना आरंभ कर जीवन का कल्याण करते हैं । इसके विपरीत अधिकांश नियतकालिक में १ प्रतिशत लेखन भी साधना संबंधी नहीं होता । इस कारण पाठकों को वास्तविक अर्थों में उसका लाभ नहीं होता ।’
हिन्दू राष्ट्र स्थापित हो जाने के उपरांत रामराज्य में उसका रूपांतरण हो; इस हेतु साधकों सहित सभी लोग न्यूनतम २ घंटे ‘श्रीराम जय राम जय जय राम’ नामजप करें !
इस अवसर पर इन दोनों उत्तराधिकारिणियों ने ‘श्रीराम की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा के समारोह में सम्मिलित होने का अवसर मिला’, इस हेतु श्रीराम के प्रति कोटि-कोटि कृतज्ञता व्यक्त की ।