सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘अपनी इच्छा के अनुसार न हो, तो मानसिक तनाव बढता है और आगे अनेक मनोविकार होते हैं । इसके लिए आजकल के मनोविकार विशेषज्ञ विविध उपाय सुझाते हैं; परंतु कोई भी यह नहीं सिखाता कि स्वेच्छा नहीं रखनी चाहिए ।

हिन्दू नववर्षारंभ (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा) से व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में रामराज्य स्थापित करने का संकल्प करें !

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी का नववर्ष के अवसर पर संदेश

सूक्ष्म आयाम को समझने की क्षमता रखना – सनातन संस्था के साधकों की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता !

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने अपने गुरु प.पू. भक्तराज महाराजजी के आशीर्वाद से १.८.१९९१ को ‘सनातन भारतीय संस्कृति संस्था’ की स्थापना की । उसके उपरांत उन्होंने संस्था का नाम सरल करने हेतु २३.३.१९९९ को ‘सनातन संस्था’ की स्थापना की । अब मार्च २०२४ में सनातन संस्था के २५ वर्ष पूर्ण हो रहे हैं । इस … Read more

‘सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की कृपा से ‘सनातन के साधक आनंद में रहनेवाले जीव हैं, इसकी प्रतीति लेनेवाले समाज के विभिन्न व्यक्ति !

‘‘सनातन के साधक सदैव आनंद में रहते हैं । हमारे यहां संप्रदाय जैसी विशिष्ट वेशभूषा नहीं होती; परंतु ‘चेहरे पर दिखाई देनेवाला आनंद’ ही हमारे साधकों की पहचान है ।

सनातन की सर्वांगस्पर्शी ग्रंथसंपदा

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की सिद्ध लेखनी से साकार हुए सनातन के ग्रंथ चैतन्यमय ज्ञान का भंडार है ! ये ग्रंथ केवल स्पर्श से लोहे को सोना बनानेवाले पारस के समान हैं; क्योंकि ग्रंथों में दी गई सीख के अनुसार आचरण करने से अनेक लोगों के जीवन में आमूल परिवर्तन हो रहे हैं !

साधकों को संतों के सत्संग में कुछ न बोलना हो, तब भी सत्संग से होनेवाले लाभ प्राप्त करने के लिए उन्हें सत्संग में बैठना चाहिए !

‘संत अर्थात ईश्वर का सगुण रूप ! ‘उनका सत्संग मिलना’ साधकों का अहोभाग्य ही है । संतों के सत्संग में रहने पर उनमें विद्यमान ईश्वरीय चैतन्य का साधकों को लाभ मिलता रहता है ।

रज-तम का प्रदूषण सभी प्रदूषणों की जड है !

‘ध्वनिप्रदूषण, जलप्रदूषण, वायुप्रदूषण आदि से संबंधित सदैव समाचार आते हैं; परंतु धर्म शिक्षा के अभाव में उनकी जड रज-तम के प्रदूषण की ओर किसी का ध्यान नहीं जाता !’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘आध्यात्मिक उन्नति हेतु साधना करने में ‘त्याग’ एक महत्त्वपूर्ण चरण होता है । इसमें तन, मन एवं धन गुरु अथवा ईश्वर को अर्पित करना आवश्यक होता है । अनेक संप्रदाय अपने भक्तों को नाम, सत्संग जैसे सैद्धांतिक विषय सिखाते हैं; परंतु त्याग के विषय में कोई नहीं सिखाता ।

साधक की व्यक्तिगत आध्यात्मिक उन्नति तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना ही सनातन संस्था का उद्देश्य है ! – (पू.) अधिवक्ता हरि शंकर जैन, सर्वाेच्च न्यायालय

‘भारतीय गणराज्य के क्षितिज पर वर्ष १९९० में जब अंधकार छाया हुआ था, उस समय सूरज की किरणें दिखने का आभास युगद्रष्टा परात्पर गुरु डॉ. जयंत आठवलेजी ने देश के कलुषित धर्मनिरपेक्षतावाद के विरोध में जनता को हिन्दू राष्ट्रवाद दिखलाने का कार्य किया ।

सनातन संस्था है साधक को उसके ध्येय की ओर ले जानेवाली संस्था तथा सनातन के साधक हैं विभिन्न गुणों का संगम !

प.पू. भक्तराज महाराजजी के भक्तों द्वारा रामनाथी के आश्रम में कुछ दिन निवास करने के उपरांत उनके न्यास के अध्यक्ष श्री. शरद बापट द्वारा प.पू. डॉ. आठवलेजी को भेजा गया पत्र !