वैज्ञानिकों और ऋषियों में भेद !

‘कहां यंत्रों से शोध कर परिवर्तित होते निष्कर्ष निकालनेवाले वैज्ञानिक, और कहां लाखों वर्ष पूर्व यंत्र और शोध के बिना ही अंतिम सत्य बतानेवाले ऋषि !

बुद्धिप्रमाणवादियों का अहंकार !

‘यदि किसी विषय का अध्ययन न किया हो, तो उस विषय में कुछ नहीं कहते; ऐसा होने पर भी बुद्धिप्रमाणवादी अध्यात्म विषय का अध्ययन न होने पर तथा स्वयं साधना न करने पर भी दिन-रात उसके विरोध में बोलते रहते हैं !’ – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

आध्यात्मिक बल एवं हिन्दू राष्ट्र !

‘एक एटम बम में लाखों बंदूकों का सामर्थ्य होता है, उसी प्रकार आध्यात्मिक बल में भौतिक, शारीरिक एवं मानसिक बल से अनंत गुना अधिक सामर्थ्य होता है । इसी कारण धर्मप्रेमियों का ‘संख्याबल अल्प होने पर भी हिन्दू राष्ट्र कैसे साकार होगा ?’, इसकी चिंता न करें ।’

बुद्धिप्रमाणवादियों के दो सबसे बडे दोष हैं, जिज्ञासा का अभाव तथा ‘मुझे सब पता है’, यह अहंकार !

सम्मोहन उपचारशास्त्र की सीमा ज्ञात होने पर मैंने साधना आरंभ की । तब जिज्ञासावश संतों से सहस्रो प्रश्न पूछकर तथा साधना कर अध्यात्मशास्त्र समझ लिया । अन्यथा मैं भी एक बुद्धिहीन बुद्धिप्रमाणवादी बन जाता ! – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवले

विज्ञान का एक लाभ !

‘विज्ञान का एक लाभ यह है कि विज्ञान से ही विज्ञान का विश्लेषण झुठलाया जा सकता है और इससे बुद्धिप्रमाणवादियों का मुंह बंद किया जा सकता है !’

आतंकवादियों की कार्यपद्धति

विमान, रॉकेट, बम इत्यादि के बल पर नहीं; अपितु तैयार किए आतंकवादियों के बल पर आतंकवादी संसार के सभी देशों में भय निर्माण कर रहे हैं !’

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘हमने ईश्वरप्राप्ति के लिए प्रयास किए, तो ईश्वर का ध्यान हमारी ओर आकर्षित होता है और हमारे द्वारा किए जा रहे धर्मकार्य के लिए ईश्वर की कृपा एवं आशीर्वाद प्राप्त होते हैं ।’

पिछले एक वर्ष में सनातन की विभिन्न भाषाओं में ३४ नए ग्रंथों का प्रकाशन तथा २५४ ग्रंथ-लघुग्रंथों का पुनर्मुद्रण !

‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए घोर आपातकाल आरंभ होने से पूर्व ही ‘ग्रंथों के माध्यम से अधिकाधिक धर्मप्रसार करना’ आज के समय की श्रेष्ठ साधना है !’, ये सच्चिदानंद परब्रह्म डॉक्टरजी के उद्गार हैं ।

सिखाने की अपेक्षा सीखने की वृत्ति रखने से अधिक लाभ होता है !

‘ईश्वर सर्वज्ञानी हैं । हमें उनके साथ एकरूप होना है । इसलिए हमारा निरंतर सीखने की स्थिति में रहना आवश्यक है । किसी भी क्षेत्र में ज्ञान अर्जित करना, यह कभी भी समाप्त न होनेवाली प्रक्रिया है । अध्यात्म तो अनंत का शास्त्र है ।

बुद्धिप्रमाणवादियों का दुर्भाग्य !

‘बुद्धिप्रमाणवादी अपनी अंधश्रद्धा के कारण श्राद्ध इत्‍यादि कुछ नहीं करते । इस कारण उनके पूर्वज उस योनि में सैकडों वर्ष फंसे रहते हैं ।’