साधको, स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया लगन से कर मानव जीवन का ध्येय ‘आनंदप्राप्ति’ साध्य कर लें !
साधक आनंदप्राप्ति हेतु साधना कर रहे हैं । जीवन आनंदमय होने हेतु चित्त पर स्थित जन्म-जन्म के संस्कार नष्ट होने चाहिए तथा उसके लिए स्वभावदोष एवं अहं निर्मूलन की प्रक्रिया गंभीरता से अपनाई जानी चाहिए ।