आतंकवाद का नया स्वरूप !

नूंह में जिहादियों द्वारा जो हिंसाचार किया गया, वह योजनाबद्ध ही था

हरियाणा के नूंह में जो हुआ, वह हिन्दुओं को बेचैन करनेवाला है । वैसे भारत में जिहादियों द्वारा हिन्दुओं पर आक्रमण करना, दंगे करना आदि बातें नई नहीं हैं; परंतु नूंह में जिहादियों द्वारा जो हिंसाचार किया गया, वह योजनाबद्ध ही था । उससे भी आगे जाकर यह घटना जिहादियों की हिंसाचार करने की तैयारी एवं आक्रामकता पर प्रकाश डालनेवाली है । कुछ हिन्दुओं के मतानुसार इस दंगे की योजना ६ मास पहले ही बनाई गई थी । इस दंगे में जिहादियों द्वारा ‘एके ४७’ राइफलों से गोलीबारी की गई । भारत में दंगाई तलवारें, पत्थर एवं अन्य शस्त्रों का उपयोग करते हैं; परंतु अब यदि उनके पास एके ४७ राइफल मिल रही हो, तो ये केवल दंगाई नहीं, अपितु आतंकवादी हैं । इस दंगे में बजरंग दल के कार्यकर्ता अभिषेक राजपूत की हत्या की गई । इन पर पहले गोलीबारी की गई । तत्पश्चात गला काटकर उन्हें पत्थरों से कुचला गया । इस पद्धति का उपयोग तालिबानी आतंकवादी करते हैं । इस्लामिक स्टेट का उदय होने के उपरांत उन्होंने संसार में आतंक उत्पन्न करने के लिए लोगों का गला काटने के अनेक वीडियो प्रसारित किए थे । जो आतंकवादी करते हैं, वही नूंह में दंगाइयों द्वारा किया गया । इससे ध्यान में आता है कि आतंकवादियों ने रणनीति में परिवर्तन किया है । भारत के हिन्दुओं को समाप्त करना है; परंतु उसके लिए आगे पद्धति अलग होगी । पहले कश्मीर एवं अन्य स्थानों पर बमविस्फोट कर हिन्दुओं की हत्या की जाती थी । अब स्थान-स्थान पर दंगे करना, हिन्दुओं की संपत्ति की हानि करना, उनके सिर काटना जैसे कुकृत्य कर हिन्दुओं में आतंक उत्पन्न करने की नई पद्धति अपनाई जा रही है । नूंह दंगे पर इससे आगे कुछ समय चर्चा होगी; परंतु आतंकवादियों की यह नई चाल ध्वस्त करने के लिए क्या सरकारी तंत्र तैयार हैं ?

नूंह के बृजमंडल यात्रा में सम्मिलित होने के लिए आए श्रद्धालु उत्साही थे । अनुमान है कि वहां के शिवमंदिर परिसर में लगभग ५-६ सहस्र श्रद्धालु उपस्थित थे । इस मंदिर के चारों ओर पहाड हैं । इस पहाडी क्षेत्र से श्रद्धालुओं पर पथराव तथा गोलीबारी की गई । इस आक्रमण में हिन्दुओं के लगभग १५० वाहन जलाए गए तथा हिन्दुओं की दुकानें भी जलाई गईं । इसके लिए आवश्यक ईंधन कहां से आया ? इस आक्रमण से बचने के लिए श्रद्धालुओं ने मंदिर में आश्रय लिया । तब भी जिहादियों द्वारा गोलीबारी एवं पथराव जारी था । एक समाचार के अनुसार मंदिर में फंसे श्रद्धालुओं को बाहर निकालने में ७ घंटे लगे । इससे स्पष्ट होता है कि जिहादियों के पास शस्त्रास्त्रों का संग्रह कितनी बडी मात्रा में था । इस दंगे से जिहादियों को जो साध्य करना था, वह उन्होंने साध्य किया है । अब जिहादियों को बंदी बनाया जाएगा । अनेक वर्षाें तक उन पर अभियोग चलेंगे, तब तक उन्हें जमानत भी मिल जाएगी । आगे क्या ? इस दंगे में अपना सर्वस्व खोए हिन्दू क्या करें ?, जिनकी दुकानें जलाई गई, उनकी आय के साधन नष्ट हो गए । वे आगे जीवन में खडे कैसे रहें ? क्या उन्हें न्याय मिलेगा ? ऐसे अनेक प्रश्न न सुलझनेवाले हैं ।

दंगे करनेवालों तक एके ४७ राइफलें कैसे पहुंची ? इतनी बडी मात्रा में वाहन एवं दुकाने जलाने के लिए जिहादियों को ईंधन की आपूर्ति किसने की ?

रणनीति परिवर्तित करें !

जिहादियों की कार्यवाहियां ध्यान में रखकर सुरक्षा तंत्रों ने क्या उनकी रणनीति में परिवर्तन किया है ? दंगे की दाहकता को ध्यान में रखते हुए कोई भी बता सकता है कि उसकी तैयारी पहले से ही हो चुकी थी । ऐसे समय पर गुप्तचर विभाग क्या कर रहा था ? दंगे करनेवालों तक एके ४७ राइफलें कैसे पहुंची ? इतनी बडी मात्रा में वाहन एवं दुकाने जलाने के लिए जिहादियों को ईंधन की आपूर्ति किसने की ? दंगे होने के उपरांत यह जानकारी सामने आई; परंतु वह जानकारी पुलिस को पहले ही क्यों नहीं मिली ? । हिन्दुओं को साधारण सभा आयोजित करनी हो, तो पुलिसवाले ‘सभा में कौन उपस्थित रहेगा ? उसमें कितने लोग सम्मिलित होंगे ? आदि प्रश्न पूछकर सभा, कार्यक्रम अथवा शोभायात्रा आयोजित करनेवालों को त्रस्त कर देते हैं । ऐसी ही पूछताछ मुसलमानों की क्यों नहीं की जाती ? उनकी गतिविधियों कर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता ? सुरक्षा तंत्र सतर्क नहीं होते, इसलिए दंगे होते हैं ।

केवल नूंह ही नहीं, अपितु पूरे भारत में दंगे होने से रोकने के लिए पुलिस को अच्छे से प्रशिक्षण देना आवश्यक है । नूंह के दंगे नियंत्रित करने के लिए पुलिस को अनेक घंटे लगते हैं, यह लज्जाजनक है । यदि दंगाइयों के पास एके ४७ मिलती है, तो पुलिस को भी आधुनिक शस्त्रों से सुसज्जित करना आवश्यक है । इसके साथ ही जब दंगे हो रहे होते हैं, तब उन्हें नियंत्रित करने के लिए पुलिस को कार्यवाही की छूट देने का कानून भी होना चाहिए । इस दंगे में १४ वर्षीय बालक भी हिन्दुओं पर आक्रमण करने में सम्मिलित हुए थे । जिहादी जानते हैं कि अवयस्क बच्चों पर कार्यवाही नहीं होती । इसलिए वे बच्चों को आगे बढाकर अपना उद्देश्य साध्य कर रहे हैं । ऐसा है, तो उनपर कार्यवाही करने का कानून भी बनना चाहिए । इसके साथ ही पुलिस दल को ‘सर्वधर्म समभाव’ मानसिकता से मुक्त करना चाहिए । जिहादी आगजनी कर रहे थे, तब उन्हें रोकने में पुलिस कहां कम पडी ? अन्य समय हिन्दुओं पर मर्दानगी दिखानेवाली पुलिस जिहादियों के सामने दुम क्यों दबा लेती है ? यदि जिहादी छोटे बच्चों का उपयोग  हिन्दुओं को समाप्त करने के लिए कर रहे हों, तो हिन्दुओं का रक्षक कौन ? इससे जो हानि होती है, वह हिन्दुओं की ही हुई । उससे भी आगे जाकर जो निराश हो गए हैं, वे हिन्दू भविष्य में खडे कैसे रहेंगे ?

यदि कोई कह रहा हो कि ‘भारत में आतंकवादी कार्यवाहियां घट गई हैं’, तो वे नूंह की घटना की ओर देखें । इससे दिखाई देता है कि जिहादी अधिक सतर्क, सशस्त्र हो गए हैं । भारत को ‘गजवा-ए-हिन्द’ बनाने के लिए वे अलग-अलग षड्यंत्र रच रहे हैं तथा दुर्भाग्यवश वे सफल भी हो रहे हैं । इसलिए हिन्दुओं का भविष्य संकट में है । उन्हें न पुलिस बचा सकती है, न प्रशासन, न राजनेता । नूंह जैसी घटनाएं ऐसे ही घटती रहीं, तो हिन्दुओं को अल्पसंख्यक बनने में समय नहीं लगेगा ।

भारत को इस्लामिस्तान बनाने का जिहादियों का षड्यंत्र विफल करने हेतु सुरक्षा तंत्रों को अधिक सक्षम बनाना आवश्यक !