रामनाथी, २१ जून (वार्ता.) – वर्ष १८२९ में भारत में ६ लाख ७५ हजार विश्वविद्यालय थे । वर्ष १८४९ में अंग्रेजों के सर्वेक्षण के अनुसार ९१ प्रतिशत भारतीय शिक्षित थे । ऐसा होते हुए भी ‘प्राचीन भारत में महिलाओं को शिक्षा का अधिकार नहीं था, ऐसा झूठा प्रचार किया जाता है ।’ जब तक भारतीय शिक्षा व्यवस्था नष्ट नहीं होती, तब तक भारत पर राज्य नहीं कर सकते’, यह अंग्रेजों ने जान लिया था । इसलिए भारतीय विश्वविद्यालय नष्ट कर अंग्रेजों ने स्वयं की शिक्षा प्रणाली भारत में लागू की । आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग शिक्षा से खुलता है । भारतीय शिक्षा प्रणाली उद्ध्वस्त कर अंग्रेजों ने यह आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग बंद कर दिया । यद्यपि भारत स्वतंत्र हो गया है, तथापि शिक्षा में हम अभी भी परतंत्र में ही हैं । भारत में इतिहास की पाठ्यपुस्तक में आक्रमणकारियों का इतिहास पढाया जाता है । जिसमें भारतीय संस्कृति का समावेश नहीं है, ऐसा इतिहास पढाया जा रहा है । विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में भारत के शोधकार्य के स्थान पर विदेश के शोधकार्य की जानकारी दी जाती है ।
भारतीय इतिहास की पुस्तक में भारतीय इतिहास का समावेश होना चाहिए । भारतीय स्वावलंबी न बनकर सदैव गुलाम बने रहें, ऐसी शिक्षा प्रणाली अंग्रेजों ने बनाई । इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली से अंग्रेजों ने भारतियों की रीढ तोड दी । भारतीय शिक्षा मोक्षप्राप्ति की दिशा देनेवाला है । ऐसी महान शिक्षा प्रणाली का समावेश भारतीय शिक्षा में करना चाहिए, ऐसा आवाहन हरियाणा के ‘बालाजी ग्रुप ऑफ इन्स्टिट्यूशन्स’ के निर्देशक जगदीश चौधरी ने किया । वे वैश्विक हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के पांचवे दिन (२१.६.२०२३ को) उपस्थितों को संबोधित कर रहे थे ।