केरल के ईसाई एवं इस्लामी विद्यालयों द्वारा ‘डार्विन थ्योरी’ पाठ्यक्रम का विरोध !

  • केंद्र सरकार द्वारा पाठ्य पुस्तकों से निरस्त करने के उपरांत भी राज्य सरकार ने लिया डार्विन सिद्धांत को पढाने का निर्णय !

  • अल्पसंख्यकों के मतों को देखते हुए केरल सरकार कर रही है पुनर्विचार !

ईसाई एवं इस्लामी विद्यालयों द्वारा ‘डार्विन थ्योरी’ पाठ्यक्रम का विरोध

तिरुवनंतपुरम (केरल) – केरल के निजी ईसाई तथा इस्लामी विद्यालयों ने पाठ्यक्रम के विरुद्ध एक गठबंधन बना लिया लिया है । उन्होंने डार्विन के सिद्धांत के संबंध में जानकारी देने के लिए राज्य सरकार द्वारा प्रकाशित की जा रही पूरक पुस्तिका का कडा विरोध किया है । कुछ दिनों पूर्व, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद (एन.सी.ई.आर.टी.) के पाठ्यक्रम में परिवर्तन के उपरांत, केरल सरकार ने घोषणा की थी कि वह केंद्र सरकार द्वारा निरस्त किए गए विषयों को पढाने के लिए पूरक नियमावली प्रसारित करेगी ।

१. केंद्र सरकार ने पाठ्यक्रम से मुगल इतिहास, २००२ के गुजरात दंगे तथा ‘डार्विन के सिद्धांत’ जैसे विषयों को हटा दिया था ।

२. केरल के स्कूल शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने घोषणा की थी कि उपरोक्त विषयों को पूरक पुस्तिकाओं के माध्यम से केरल में पढाया जाएगा । यह राज्य के पाठ्यक्रम का भाग होगा एवं छात्रों को इसका अध्ययन करना अनिवार्य होगा ।

३. कम्युनिस्ट सरकार के इस निर्णय का ईसाईयों एवं मुसलमानों ने विरोध किया है । सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि राज्य सरकार अल्पसंख्यकों के विचार देखने के उपरांत पूरक नियमावली को लागू करने पर पुनर्विचार कर रही है ।

४. केरल के अधिकांश विद्यालय ईसाई तथा मुस्लिम प्रबंधन के अधीन हैं । उन्हें मुगल इतिहास एवं गुजरात दंगे से संबंधित पाठ पढाने में कोई आपत्ति नहीं है, किन्तु उन्हें ‘डार्विन थ्योरी’ पर गंभीर आपत्ति है । यह सिद्धांत बाइबिल तथा कुरान द्वारा वर्णित मनुष्य की उत्पत्ति के विपरीत माना जाता है । इसने पृथ्वी पर भगवान की भूमिका को अमान्य कर दिया है । इसलिए ईसाईयों एवं मुसलमानों ने विरोध दिखाया है ।

५. इस प्रकरण में बढते विरोध के कारण मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने चुप्पी साध रखी है । (कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री का मुसलमान एवं ईसाई प्रेमी चेहरा सामने आ गया है ! – संपादक)

‘डार्विन का सिद्धांत’ क्या है ?

चार्ल्स डार्विन नामक वैज्ञानिक द्वारा प्रस्तावित सिद्धांत जैविक विकास से संबंधित है । इस सिद्धांत के अनुसार मनुष्य एवं पशुओं के पूर्वज एक ही हैं । डार्विन का कहना है कि प्रकृति क्रमिक परिवर्तन से विकसित होती है । इसमें कहीं भी इस बात का उल्लेख नहीं है कि जीवन की रचना ईश्वर की इच्छा से हुई है ।

संपादकीय भूमिका 

इससे सिद्ध होता है कि साम्यवादी सरकार को हिन्दुओं के मतों का कोईमूल्य नहीं । अब हिन्दुओं को संगठित होकर कम्युनिस्टों पर दबाव डालना चाहिए कि मुगलों का इतिहास दोबारा न पढाया जाए !