भारतीय संस्कृति में मनुष्य के सर्वांगीण विकास की कुंजी ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी

भोपाल ‘टीआईटी इन्स्टिट्यूट’ में भारतीय संस्कृति की वैज्ञानिकता पर संगोष्ठी !

सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी का मानचिन्ह देकर सम्मान करते हुए इन्स्टिट्यूट के संचालक डॉ. शशीकुमार जैन

भोपाल (मध्य प्रदेश) – ‘‘अमेरिका साक्षरता के साथ आर्थिक, औद्योगिक, तंत्रज्ञान आदि विकास में आगे है; परंतु विकास की सर्वांगीण दृष्टि नहीं थी । इस कारण आज वहां ६० से ७० प्रतिशत लोग मानसिक रोगों से ग्रस्त हैं । अपराध, व्यसनाधीनता, बलात्कार आदि घटनाएं वहां अत्यधिक हैं । यदि हम भी अपनी संस्कृति और अध्यात्म द्वारा मिली दृष्टि को छोडकर विकास के पीछे दौडेंगे, तो पतन निश्चित है । आज तो आधुनिक विज्ञान ने भी स्वास्थ्य के लिए शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक स्वास्थ्य के साथ आध्यात्मिक स्वास्थ्य का महत्त्व माना है । इसलिए हमें ध्यान में लेना होगा कि भारतीय संस्कृति, अध्यात्म में मनुष्य के सर्वांगीण विकास की कुंजी हैं’’, ऐसा प्रतिपादन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने किया । वे यहां के ‘टेक्नोक्रेटस् इन्स्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइन्स’ के छात्रों के लिए ‘भारतीय संस्कृति की वैज्ञानिकता’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे । इस समय इन्स्टिट्यूट के संचालक डॉ. शशीकुमार जैन, प्राचार्य श्री. शिशिर आनवेकर के साथ १५० से अधिक छात्र उपस्थित थे । इस समय इन्स्टिट्यूट की ओर से सम्मानचिन्ह देकर सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी का सम्मान किया गया ।

सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने बताया कि ‘‘आज विश्व के अनेक देशों में संस्कृत और भारतीय ज्ञान के जानकारों का महत्त्व बढाता जा रहा है । भारत हर क्षेत्र में आगे था । समय का निर्धारण उज्जैन के महाकाल से है । आज के आधुनिक विज्ञान के द्वारा बनी किसी भी वास्तु की आयु १०० से अधिक नहीं है, पर हमारे अनेक मंदिर सैकडों वर्ष से खडे हैं । इतने प्रगत अभियंता हमारे पास थे । आयुर्वेद, शल्यक्रिया, ग्रहज्ञान, शून्य का शोध, विमान का अनुसंधान, ऐसे कई शोध भारत के ऋषियों के थे । तो फिर हम पिछडे कहां थे ? आज भारतीय युवाओं की अवस्था कस्तुरीमृग की तरह है । जो भारत के अद्भुत ज्ञान को छोडकर अन्यों की ओर देख रहा है ।

आज विदेश में छात्रों कों प्रेम मिलना छोडिए, उनका दायित्व लेने के लिए माता-पिता तैयार नहीं हैं । भारत में छात्रों का भाग्य है कि माता-पिता उनका दायित्व ले रहे है । दादा-दादी उनपर संस्कार कर रहे हैं । परिवार उनपर ध्यान रख रहा है । इसके प्रति हमें कृतज्ञ रहना चाहिए ।