दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में धर्मकार्य करनेवाले हिंदुत्वनिष्ठों की आध्यात्मिक प्रगति की घोषणा से आनंद का वातावरण !

ठाणे के प्रसिद्ध व्याख्याता दुर्गेश परुळकर और देहली के अधिवक्ता उमेश शर्मा नें प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर !

श्री. दुर्गेश परुळकर को (दाई ओर) श्रीकृष्ण के चित्र देकर सत्कार करते हुवे सनातन के धर्मप्रचारक सद्गुरु नंदकुमार जाधव

रामनाथी, १७ जून (वार्ता.) – ठाणे के प्रसिद्ध व्याख्याते और लेखक श्री. दुर्गेश परुळकर और देहली के सर्वाेच्च न्यायालय के अधिवक्ता उमेश शर्मा ने प्राप्त किया ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर । यह आनंदवार्ता १७ जून को दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के व्यासपीठ से हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मागदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने दी । इस कारण अधिवेशन के सभागृह में उत्साह का और आनंद का वातावरण निर्माण हुआ ।

सनातन संस्था के धर्मप्रचारक सद्गुरु नंदकुमार जाधवजी ने श्री. दुर्गेश परुळकर का, तथा सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने अधिवक्ता उमेश शर्मा का श्रीकृष्ण का चित्र और भेंटवस्तु देकर सत्कार किया । श्री. दुर्गेश परुळकर जी के बारे में गौरवोद्गार व्यक्त करते हुए सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी ने कहा, ‘‘समाज और राष्ट्र के लिए कार्य करते हुए यह कर्मयोगी जन्म-मृत्यु के फेरे से मुक्त हुए हैं ।’’

अपना मनोगत व्यक्त करते हुए श्री. दुर्गेश परुळकर ने नम्रता से कहा ‘ज्येष्ठों ने जो बोला, वह मैं स्वीकार करता हूं ।’

अधिवक्ता उमेश शर्मा के बारे में गौरवोद्गार व्यक्त करते हुए सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे ने कहा, ‘‘भाषा की मधुरता, सीखने की तडप, कला के प्रति समर्पण, धर्मशास्त्र सर्वसामान्य व्यक्ति तक पहुंचाने की तडप, ऐसे अनेक गुणों के समुच्चय अधिवक्ता उमेश शर्मा जीवन मुक्त हुए हैं ।’’

दुर्गेश परुळकर का आध्यात्मिक स्तर और भी बढेगा, इसका मुझे विश्वास है ! – सौ. मेधा परुळकर (श्री. दुर्गेश परुळकर की पत्नी)

श्री. दुर्गेश परुळकर के सत्कार उपरांत आनंद व्यक्त करते हुवे श्रीमती मेधा परुळकर

श्री. दुर्गेश से मेरा विवाह हुआ, उस समय वह थोडे आध्यात्मिक प्रवृत्ति के लगे थे । उन्हें नियमित पूजा पाठ करने की और आध्यात्मिक ग्रंथ पढने में रूचि है । वह नियमित अथर्वशीर्ष का पठन और रूद्रपाठ करते हैं । रीढ की हड्डी में तीव्र कष्ट होते हुए भी उन्होंने २-३ पुस्तकें लिखी हैं । सोते हुए और लिखते हुए कष्ट होते हुए भी वह लिखते हैं । सोचा हुआ कार्य वह पूर्ण करते हैं । प्रत्येक कार्य वह मन लगाकर करते हैं । उनका आध्यात्मिक स्तर और बढेगा, इसका मुझे विश्वास है ।

सनातन के आश्रम का आध्यात्मिक वातावरण मेरे लिए अलग अनुभव है ! – सौ. मेधा परुळकर

इस समय सौ. मेधा परुळकर ने कहा, ‘सनातन के आश्रम में आध्यात्मिक वृत्ति के व्यक्ति हैं । उनमें देश सेवा की कितनी लगन है । यह देखकर बहुत अच्छा लगता है । मेरे लिए यह अलग अनुभव है ।’

वासना के स्थान पर वासुदेव को चुनना यही धर्म है ! – दुर्गेश परुळकर

मनोगत व्यक्त करते हुए श्री. दुर्गेश परुळकर ने कहा, ‘‘विद्यालय में मुझे राष्ट्रप्रेम का पाठ मिला । मैं १८ वर्ष का था तब मेरे पिताजी ने मेरे हाथ में स्वातंत्र्यवीर सावरकर की ‘आजन्म कारावास’ यह पुस्तक देकर ‘यह पुस्तक तुझे मार्ग दिखाएगी’, ऐसे बताया ।’’ ‘वासना अथवा वासुदेव दोनों में किसे चुनना है’, यह हमें ही सोचना होगा । वासुदेव को चुनना धर्म है । यही हमारा जीवन है । रामायण और महाभारत जीवन को दिशा देने वाले ग्रंथ हैं ।’’

संतों के सत्संग के कारण मेरी प्रगति हुई है ! – उमेश शर्मा, अधिवक्ता, सर्वाेच्च न्यायालय

अधिवक्ता उमेश शर्मा को (दाइं ओर) श्रीकृष्ण के चित्र देकर सत्कार करते हुवे हिंदु जनजागृती समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे

सर्व संत निष्काम भाव से कार्य करते हैं, यह समझकर मैंने वैसे करने का प्रयत्न किया । सर्वाेच्च न्यायालय में कार्य करते हुए मैंने अच्छे प्रकार से कर्म किए; न्यायाधीश अमूक निर्णय दें ऐसे फल की अपेक्षा नहीं रखी । फल की अपेक्षा का विचार न करने के कारण मेरे मन को शांति मिली ।

अधिवक्ता उमेश शर्मा के एक भावमुद्रा

‘लव जिहाद, धर्मांतरण’, ऐसे विविध अभियोग लडते हुए अर्थात धर्म का कार्य करते हुए मैं बिमार नहीं पडूंगा, यह मुझे विश्वास है । सुबह मैं अस्वस्थ (बिमार) होता हूं, पर धर्म संबंधी कोई कार्य हुआ तब न्यायालय जाने के समय मैं स्वस्थ हो जाता हूं । न्यायालय से घर आनेपर मैं पुन: बिमार पडता हूं । धर्म का कार्य करते समय मैं बिमार नहीं रहता, ऐसे दैवी शक्ति का अनुभव मुझे बार बार होता है । सनातन संस्था के संपर्क में आने के उपरांत मुझे मानसिक शांति मिली । अभीतक मिले सत्संग के कारण आज मेरी आध्यात्मिक प्रगति हुई है । यहां के अधिवेशन में सभी का समर्पण भाव देखकर मुझे प्रेरणा मिली है ।

अधिवक्ता उमेश शर्मा तडप से धर्मकार्य करते हैं ! – सद्गुरु चारुदत्त पिंगळे

अधिवक्ता उमेश शर्मा के एक भावमुद्रा

कार्य करते हुए अधिवक्ता उमेश शर्मा का व्यावसायिक दृष्टिकोण नहीं रहता । वह प्रत्येक समस्या समझने का प्रयत्न करते हैं । अधिवक्ताओं की बैठक में ‘कौन सा अभियान चला सकते हैं ? उसका प्रस्तुतिकरण और ध्वनिमुद्रीकरण कैसे करना होगा ? जिससे लाखों लोगों तक विचार पहुंचा सकते हैं’, इसका वह चिंतन करते हैं । उस विषय पर जो करना है वह पूछकर करते हैं । अधिवेशन में अधिवक्ता नागेश जोशी ने प्रसारमाध्यमों की न्यायालयीन प्रक्रिया की जानकारी देने के बाद अधिवक्ता शर्मा का तुरंत उस दिशा में चिंतन आरंभ हुआ और उन्होंने उस दिशा में नियोजन करना भी प्रारंभ कर दिया । हम जो कर रहे हैं वह योग्य है अथवा अयोग्य यह वह पूछकर करते हैं । पूछकर लेने की वृत्ति यह गुण, यह विनम्रता उनमें है । संगठन और समष्टि की दृष्टि से यह बहुत महत्व का गुण है ।

श्री. दुर्गेश परुळकर की पत्नी सौ. मेधा परुळकर के बारे में सद्गुरु चारुदत्त पिंगळेजी बोले कि, मन की शुद्धता और निर्मलता होने के कारण ही उन्होंने अत्यंत सहजता से श्री. दुर्गेश परुळकर जी की क्रोध करने की चूक बताई । जहां तक संभव हो इतनी उपस्थिति के सामने कोई भी घर के व्यक्ति के दोष नहीं बताता । श्री. परुळकर ने धर्म का कार्य बढाया है । यही अपने जीवन का ध्येय बनाने के कारण, इसीसे उनकी आगे की प्रगति होगी ।
अभी तक के अधिवेशन में ५ संत हुए, ४० हिंदुत्वनिष्ठों ने ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त किया, यह अधिवेशन की फलोत्पत्ति है !
६१ प्टरतिशत आध्यात्मिक स्तर घोषित होने के उपरांतर श्री. दुर्गेश परुळकर के एक भावमुद्रा

अभी तक हुए कुल १० अधिवेशनों की फलोत्पत्ति के विषय में सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळे जी बोले, ‘‘अधिवेशन की फलोत्पत्ति क्या हैे ?’ ऐसे पत्रकार पूछते हैं । सनातन धर्म के अनुसार हमारा जीवनमुक्त होना और आध्यामिक प्रगति करना यह महत्वपूर्ण है । ऐसी प्रगति होने के उपरांत जो कृतज्ञता लगती है वह शाश्वत होती है । वर्ष २०१२ से दशम अखिल भारतीय हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन आरंभ होने के उपरांत जीवनमुक्त होने की प्रक्रिया आरंभ हुई है । अधिवेशन में ५ संत हुए और आज तक ४० हिंदुत्वनिष्ठ ६१ प्रतिशत आध्यात्मिक स्तर प्राप्त कर जीवनमुक्त हुए हैं । यही इस अधिवेशन की फलोत्पत्ति है । हम धर्म और राष्ट्र के लिए कार्य कर रहे हैं, इसलिए यह करते हुए हमें शाश्वत मुक्त होना चाहिए । ईश्वर के माध्यम से यह कार्य हो रहा है, इसका अनुभव हम ले रहे हैं । सभी कार्याें में ईश्वर का अधिष्ठान होने के उपरांत ही ईश्वरीय राज्य की स्थापना होगी ।