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खुलताबाद (छत्रपति संभाजीनगर जिला) – श्री रामनवमी के अवसर पर पिछले २५ वर्षों से खुलताबाद शहर से निकलने वाली राम रथ यात्रा को इस वर्ष औरंगजेब की कब्र के सामने से निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया । पुलिस ने यह निर्णय इस आशंका के चलते लिया कि औरंगजेब के मकबरे को लेकर विवाद से कानून-व्यवस्था की समस्या उत्पन्न हो सकती है । इसलिए, राम रथ जुलूस, जो प्रत्येक वर्ष अनुमानित ढाई किलोमीटर लंबा होता है, इस वर्ष केवल डेढ़ किलोमीटर ही चला और जुलूस, जो हर वर्ष अनुमानित सात घंटे तक चलता है, इस वर्ष आधे समय में ही पूरा करना पड़ा, यानी साढ़े चार घंटे में ।
१. ग्रामीणों ने कहा, “पुलिस के इस निर्णय से पिछले २५ वर्षों की परंपरा टूट गई है ।”
२. इस वर्ष सशस्त्र पुलिस की सुरक्षा में बड़े आली से छोटे आली तक जुलूस निकाला गया ।
३. इस जुलूस में तालुका के ८ गांवों से अनुमानित १० सहस्त्र राम भक्त भाग लेते थे । जबकि इस वर्ष १ सहस्त्र राम भक्त थे । इस वर्ष डीजे (तेज आवाज वाले सिस्टम) को भी अनुमति नहीं दी गई ।
४. शाम ७ बजे शुरू हुई राम रथ यात्रा रात ११.३० बजे संपन्न हुई । पुलिस ने जुलूस को रात साढ़े नौ बजे रुकने को कहा; लेकिन राजनीतिक नेताओं और ग्रामीणों के आग्रह के कारण यह अंततः रात ११.३० बजे तक चला ।
पुलिस के कहने पर मार्ग बदल दिया !
राज्य में खुलताबाद स्थित औरंगजेब के मकबरे को लेकर विवाद चल रहा है । इसलिए पुलिस ने छोटा जुलूस निकालने को कहा । (क्या पुलिस मुसलमानों को उनके त्यौहारों के समय यह कहने का साहस करती है ? – संपादक) इसलिए भद्रा मारुति मंदिर से छोटी आली तक जुलूस निकाला गया, ऐसा ‘श्री भद्रा मारुति संस्थान’ के अध्यक्ष श्री. मिठू बरगल ने कहा ।
शांति समिति की बैठक में लिया गया निर्णय !
‘औरंगजेब के मकबरे को लेकर विवाद है । शांति समिति की बैठक में ग्रामीणों ने पहल करते हुए श्रीरामनवमी जुलूस का मार्ग बदल दिया । पुलिस ने बताया कि इस स्थान पर सड़क निर्माण का कार्य भी चल रहा है । वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने बताया कि पुलिस ने किसी भी अनुमति से मना नहीं किया है; लेकिन कब्र तक जाने वाले सभी तीन मार्गों पर बैरिकेड्स लगाकर पुलिस तैनात कर दी गई थी । ( एक ओर तो वे किसी अप्रिय घटना की स्थिति में जुलूस को कब्र के सामने से गुजरने से रोकना चाहते थे, तथा दूसरी ओर यह कहकर हिन्दुओं को गुमराह करना चाहते थे कि यह निर्णय शांति समिति की बैठक में लिया गया है । क्या यह पुलिस का दोहरा मापदंड अपनाना नहीं है ? – संपादक )
संपादकीय भूमिका
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