श्री रामचंद्रपुर मठ के ३६ वें पीठाधिपति श्री. श्री. राघवेश्वर भारती स्वामीजी कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले के होसनगर तहसील के श्री रामचंद्रपुर मठ के प्रमुख हैं । वे केवल मठ प्रमुख नहीं, अपितु ३६ वें पीठाधिपति भी हैं । आज उन्हीं के शब्दों में हम उनकी जानकारी लेते हैं ।
विशेष स्तंभ
छत्रपति शिवाजी महाराज के हिन्दवी स्वराज हेतु उनके वीर योद्धाओं ने जो त्याग किया था, वह सर्वोच्च है, उसी प्रकार वर्तमान समय में भी अनेक हिन्दुत्वनिष्ठ एवं राष्ट्रप्रेमी नागरिक धर्म-राष्ट्र की रक्षा हेतु ‘वीर योद्धा’ के रूप में कार्य कर रहे हैं । उनकी तथा उनके हिन्दू धर्मरक्षा हेतु किए गए संघर्ष की जानकारी देनेवाले ‘हिन्दुत्व के वीर योद्धा’ स्तंभ के द्वारा अन्यों को भी प्रेरणा मिलेगी तथा इन उदाहरणों से आपके मन की चिंता दूर होकर उत्साह जागृत होगा !
– संपादक
१. जीवन एवं संन्यास दीक्षा
स्वामीजी का जन्म कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले के सागर तहसील के चदुरावळ्ळी गांव में हुआ । उनका मूल नाम हरीश शर्मा था । बचपन से ही अध्यात्म की ओर उनका झुकाव था । उन्होंने वेद, उपनिषद, धर्मशास्त्र एवं योग की शिक्षा ग्रहण की । इसके साथ ही उन्होंने गोकर्ण एवं मैसुरू में वेदांत की शिक्षा ग्रहण की । वर्ष १९९४ में उन्होंने श्री. श्री. राघवेंद्र भारती स्वामीजी से संन्यास दीक्षा ग्रहण की ।
२. धार्मिक एवं सामाजिक सेवाएं
श्री. श्री. राघवेश्वर स्वामीजी ने धर्म, परंपरा एवं गोसंवर्धन हेतु अनेक योजनाएं आरंभ की हैं । उन्होंने गोशाला से संबंधित ‘कामधेनु गोमंदिर’ योजना के द्वारा लाखों गायों के संवर्धन हेतु विशेष कार्यक्रम चलाए हैं, साथ ही ‘गीता रामायण’, ‘रामराज्य’ एवं आध्यात्मिक शिविर जैसे धार्मिक कार्यक्रमों के माध्यम से भक्तों में धर्मचेतना जागृत करने का कार्य किया है ।
अद्वैत वेदांत के अनुयायी स्वामीजी ने धार्मिक चिंतन एवं सामाजिक उत्तरदायित्व पर विशेष बल दिया है । उनके मार्गदर्शन में श्री. रामचंद्रपुर मठ द्वारा अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, पर्यावरण एवं आध्यात्मिक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं । उनके प्रवचन तथा लेखों के माध्यम से वे लोगों को ईश्वरीय मार्ग की ओर आकर्षित करते रहते हैं ।
श्री. श्री. राघवेश्वर स्वामीजी के कारण लाखों भक्तों के जीवन में आया आध्यात्मिक प्रकाश !

श्री. श्री. राघवेश्वर स्वामीजी हिन्दू संस्कृति, परंपरा, धर्म एवं समाजसेवा के क्षेत्रों में विशिष्ट सेवाएं दे रहे हैं । उनके गोरक्षा, पर्यावरण संवर्धन, गीता रामायण एवं भारतीय परंपराओं के जतन जैसे उपक्रमों के कारण भावी पीढियों का उचित मार्गदर्शन होनेवाला है । ‘धर्मो रक्षति रक्षितः ।’ (मनुस्मृति, अध्याय ८, श्लोक १५) अर्थात ‘जो धर्म की रक्षा करते हैं, उनकी रक्षा ईश्वर करते हैं’, इस सिद्धांत का प्रसार करते हुए श्री. श्री. राघवेश्वर स्वामीजी लाखों भक्तों के जीवन में आध्यात्मिक प्रकाश लेकर आए हैं ।
३. विशेष कार्य एवं साधना
अ. गीतरामायण : संगीत के माध्यम से रामायण के विभिन्न प्रसंगों को प्रचारित करने का उपक्रम
आ. पर्यावरण की रक्षा का कार्य : मठ के माध्यम से उन्होंने वनीकरण एवं पर्यावरण की रक्षा के लिए विभन्न योजनाएं आरंभ की हैं ।
इ. आध्यात्मिक शिविर एवं उपक्रम : पूरे विश्व में प्रवचन, व्याख्यान तथा धार्मिक शिविरों का आयोजन कर भक्तों को धर्म के पथ पर मोडने का कार्य कर रहे हैं ।
४. श्री रामचंद्रपुर मठ के द्वारा की जा रही विभिन्न सेवाएं

स्वामीजी के मार्गदर्शन में श्री रामचंद्रपुर मठ केवल धार्मिक क्षेत्र में ही नहीं, अपितु शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण एवं समाजसेवा के क्षेत्रों में भी बडा योगदान दे रहा है । मठ के प्रभाव के कारण ‘श्री. गुरुकुल विद्यापीठ’, ‘आयुर्वेद शोध केंद्र’, ‘पाठशाला’ जैसे अनेक शैक्षणिक उपक्रम आरंभ किए गए हैं । स्वामीजी भारतीय परंपराओं को पुनर्जीवित करने के प्रयास करनेवाले अद्वितीय धार्मिक नेता हैं । उनके मार्गदर्शन में श्री रामचंद्रपुर मठ सामाजिक एवं धार्मिक जागृति का केंद्र बन गया है । अनेक भक्त उनके मार्गदर्शन में संस्कृति का ज्ञान ले रहे हैं तथा उससे हिन्दू धर्म के मूलभूत सिद्धांतों का पालन करने हेतु प्रेरित हो रहे हैं ।
५. गोरक्षा एवं पर्यावरण रक्षा उपक्रम

‘गोरक्षा का कार्य श्री. श्री. राघवेश्वर स्वामीजी के जीवन के मुख्य उद्देश्यों में से एक है । उन्होंने ‘कामधेनु गोमंदिर’ के नाम से बृहद गोशाला योजना आरंभ की है तथा इसके माध्यम से पूरे भारत में लाखों गायों के संवर्धन का कार्य किया जा रहा है ।
इस उपक्रम के अंतर्गत –
अ. कामधेनु पीठ : गायों की रक्षा एवं संवर्धन हेतु विशेष पीठ की स्थापना
आ. अहिंसा मिल्क : गायों की रक्षा एवं कृषि के लिए विशेष परियोजनाएं
इ. पर्यावरण के कार्यक्रम : पशुसंवर्धन, प्राकृतिक कृषि एवं पर्यावरणपूरक उपक्रम चलाने के माध्यम से परिसर की रक्षा हेतु प्रधानता ली है ।
६. शिक्षा एवं समाजसेवा के क्षेत्र में कार्य
अ. श्री. गुरुकुल विद्यापीठ : संस्कृत शिक्षा के प्रचार हेतु पारंपरिक गुरुकुल शिक्षापद्धति को पुनर्जीवित करने का प्रयास
आ. आयुर्वेद शोध केंद्र : स्वास्थ्य एवं पारंपारिक चिकित्सा पद्धतियों के प्रचार हेतु एक विशेष केंद्र का गठन
इ. ज्योतिष एवं वेदाध्ययन केंद्र : वैदिक संस्कृति को पुनर्जीवित करने हेतु विष्णुगुप्त विद्यापीठ के नाम से शिक्षा संस्थान का आरंभ
श्री. रामचंद्रपुर मठ केवल धार्मिक ही नहीं, अपितु समाज की विभिन्न आवश्यकताएं पूर्ण करनेवाला एक प्रमुख केंद्र बन चुका है । स्वामीजी के नेतृत्व में ‘विष्णुगुप्त विद्यापीठ’ आरंभ किया गया है, जो आगे जाकर हिन्दू धर्म, तत्त्वज्ञान एवं संस्कृत शिक्षा का एक वैश्विक केंद्र बनेगा ।