प्रत्येक व्यक्ति को नया घर बनाने का अवसर नहीं मिलता, विशेषकर मुंबई-पुणे जैसे व्यावसायिक शहरों में अब सदनिका ही अधिक संख्या में होती हैं । ऐसी स्थिति में यहां ‘सदनिका में वास्तुशास्त्र का उपयोग कैसे
करें ?’, इसकी जानकारी दे रहे हैं ।
१. पूर्व दिशा में स्थित अथवा उत्तर दिशा में स्थित द्वारवाली सदनिका खरीदें !
‘सदनिका में वास्तुशास्त्र का उपयोग कर उसकी रचना में परिवर्तन कर लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं । इसमें भी दो भाग हैं । एक है पूर्णतया नई सदनिका लेना ! इस पद्धति में सदनिका लेते समय अथवा आरक्षित करते समय हमें सदैव ही पूर्व अथवा उत्तर दिशा में स्थित द्वार हो, ऐसी ही सदनिका आरक्षित करनी चाहिए अथवा लेनी चाहिए । उसके कारण सामान्यतः ऐसे स्थान पर समस्याएं अल्प होती हैं अथवा समस्याएं आईं भी, तब भी उनका निवारण शीघ्र होता है, अधिक कष्ट नहीं होता अथवा उसकी तीव्रता उतनी अधिक प्रतीत नहीं होती ।
२. ‘सदनिका की रचना परिवार के लिए कितनी लाभकारी है ?’, इसका विचार होना आवश्यक !
कुछ सदनिकाओं की रचना में परिवर्तन करना संभव नहीं होता । ऐसी स्थिति में उसका एक ही उपाय होता है, जिसके कारण कष्ट निश्चित ही अल्प हो सकता है । हमारा घर अर्थात सदनिका, जिसमें विद्यमान स्पंदनों के कारण उस घर में २४ घंटे रहनेवाले व्यक्तियों पर परिणाम होता है । अतः ‘सदनिका की रचना हमें तथा हमारे परिवार को कितनी लाभकारी है ?’, इसका विचार करना पहली बात ! ‘अन्यों को अथवा घर में आनेवाले अतिथियों को हमारे सदनिका की रचना कैसी अच्छी दिखाई देगी ?’, यह विचार कभी भी न करें । ‘वास्तुशास्त्र में केवल अच्छी रचना दिखाई देने का अल्प महत्त्व है, अपितु घर में की गई आंतरिक रचना हमारे परिवार की प्रगति के लिए कितनी पोषक अथवा लाभकारी है’, इस पर ही विचार होना आवश्यक है ।
३. ‘इंटीरियर डेकोरेशन’ में केवल अच्छा दिखने पर बल दिए जाने से अनेक बार उसे वास्तुशास्त्र के विरुद्ध किया जाना
प्रत्येक व्यक्ति को लगता है कि ‘अपनी सदनिका अथवा घर सुंदर पद्धति से सजाना चाहिए ।’ इसमें कुछ अनुचित भी नहीं है । विशेषकर उच्च मध्यम स्तर के लोगों में ‘इंटीरियर डिजाइनर’ को बुलाकर सदनिका (ब्लॉक) सुंदर बना लेने की प्रवृत्ति अधिक होती है । उसके लिए वे २-३ लाख रुपए का व्यय भी करते हैं । विशेषकर नई सदनिका (ब्लॉक) लेने के उपरांत गृहप्रवेश करने से पूर्व ‘इंटीरियर डेकोरेशन’ कर लेने की प्रथा ही प्रचलित हो रही है; परंतु ‘इंटीरियर डेकोरेशन’ करनेवाले व्यक्ति को वास्तुशास्त्र की जानकारी होती ही है, ऐसा नहीं है । उसका झुकाव सदैव ही ‘सदनिका की रंगसंगति, ‘फर्निचर’ इत्यादि सजावट अधिक से अधिक अच्छी कैसे दिखाई देगी ?, इस पर होता है । उनमें कलात्मकता भी अच्छी होती है; परंतु मेरे आज तक के अनुभव से मैं यह बता सकता हूं कि ‘इंटीरियर डेकोरेशन’ से जो किया जाता है, वह वास्तुशास्त्र के नियमों से बिल्कुल विपरीत होता है । ‘अच्छा दिखना’, यह एक ही प्रमुख अपेक्षा; परंतु ‘घर के लोगों के लिए उसकी उपयुक्तता अथवा लाभ कितना है ? क्या उसके कारण उनकी प्रगति में बाधाएं उत्पन्न होंगी ?’, यह उनका विचार नहीं होता ।
वास्तुशास्त्र के दृष्टिकोण से जो दिशा सबसे अधिक अच्छी होती है, जो खुली होनी चाहिए, जिसके कारण व्यक्ति की प्रगति अधिक हो सकती है; उस दिशा को ये ‘इंटीरियर डिजायनर’ सदैव ही बंद कर देते हैं तथा जो दिशा खुली नहीं होनी चाहिए, उसी दिशा को वे खुला छोड देते हैं । इसके कारण उस घर में अपनेआप ही समस्याएं एवं कष्ट उत्पन्न होते हैं ।
४. वास्तुदेवता एवं वास्तुशास्त्र
‘वास्तुदेवता घर में सदैव शांति, समृद्धि एवं प्रगति हो’, इसके लिए स्थापित किए जाते हैं । वास्तुपुरुष को सदैव भूमि में ही गाडना होता है तथा उसका स्थान आग्नेय कोने में ही होता है, अन्य कहीं नहीं ।
५. नए घर में भी वास्तुपूजन आवश्यक !
‘स्वतंत्र इमारत, बंगला तथा नई सदनिका में भी वास्तुपूजन करें; क्योंकि हमारी सदनिका ही हमारा वास्तु होता है ।
६. गाडी गई वास्तुप्रतिमा को न हिलाएं !
गाडी गई वास्तुप्रतिमा कभी भी हिलाना नहीं चाहिए अथवा उसे निकालना नहीं चाहिए । वास्तुप्रतिमा पूजाघर यदि अनुचित दिशा में है, तो उसे उचित दिशा में रखते समय स्वाभाविक ही वास्तुप्रतिमा को पुनः दिशा के अनुरूप हिलाया जाता है, तो अनुचित होता जाता है । अतः उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार करें । ऐसा करने से ईश्वर भी आपको भरभरकर देंगे ।’
– श्री. अरविंद वझे
(साभार : आध्यात्मिक ‘ॐ चैतन्य’ दिसंबर २००१)
घर का द्वार यदि अनुचित दिशा में हो, तो क्या करें ?सभी को पूर्व अथवा उत्तर दिशा में स्थित द्वारवाली सदनिका मिलना संभव नहीं होता । ऐसी स्थिति में अनेक लोगों को दक्षिण, पश्चिम अथवा नैऋत्य दिशा में स्थित दरवाजा मिलता है । ऐसा हो, तो उससे भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है अर्थात उस स्थान में ७०-८० प्रतिशत नकारात्मक स्पंदन हों, तो वास्तुशास्त्र के अनुसार घर की रचना में परिवर्तन करने से ये स्पंदन २० से ३० प्रतिशत तक अल्प हो सकते हैं । हो रहा कष्ट सहनीय बन सकता है । समस्याएं तो सभी को आती हैं; परंतु आनेवाली समस्याओं पर हम किस प्रकार विजय प्राप्त कर सकते हैं ?’, यह ध्यान में आ सकता है तथा उसके अनुसार घटित होता है । वास्तुशास्त्र पर आधारित रचना करने से १०० प्रतिशत हानि नहीं होती, अपितु केवल लाभ ही लाभ होता है, यह निश्चित है ! – श्री. अरविंद वझे |