वास्तु में कष्टदायक अथवा अच्छे स्पंदन प्रतीत होते हैं’,इसका अध्ययन कैसे करें ?

सद्गुरु डॉ. मुकुल गाडगीळजी

हमारे वास्तु के प्रत्येक कक्ष में कष्टदायक या अच्छे स्पंदन प्रतीत होते हैं, इसका अध्ययन निम्न प्रकार से करें –

अ. वास्तु के प्रत्येक कक्ष में आंखें खुली रखकर तथा मन को एकाग्र कर २-३ मिनट रुककर उस समय ‘मन को कष्टदायक प्रतीत होता है अथवा अच्छा प्रतीत होता है’, यह देखें ।

आ. आंखों को यदि कष्टदायक प्रतीत होकर सिर भारी होता है, छाती पर दबाव आता है तथा मन अस्वस्थ होता है, तो मान लें ‘वे कष्टदायक स्पंदन हैं ।’

इ. इसके विपरीत यदि आंखों को ठंडक प्रतीत होती है, मन को हल्का, आनंद अथवा शांति प्रतीत हो, तो मान लें कि ‘वे अच्छे स्पंदन हैं ।’ कभी-कभी सिर भारी लगता है; परंतु आंखों को कष्टदायक नहीं लगता, ऐसे में मान लें कि ‘वे कक्ष में स्थित अच्छी शक्ति के स्पंदन हैं ।’

ई. प्रतीत होनेवाले स्पंदनों की तीव्रता के आधार पर कक्ष में स्थित स्पंदन धीमे अथवा तीव्र स्वरूपवाले हैं, इसे पहचान लें । कक्ष में हल्का दबाव प्रतीत हो, तो मान लें कि ‘वे धीमे स्तर के कष्टदायक स्पंदन हैं ।’ कष्ट के अनुरूप आध्यात्मिक उपचार करने होंगे ।

कक्ष में स्थित कष्टदायक स्पंदन किस कारण उत्पन्न हुए हैं, इसे कैसे पहचानें ?

वास्तु के किसी कक्ष में प्रतीत स्पंदन उपरोल्लिखित वास्तुदोष के कारण उत्पन्न हुए हैं, अनिष्ट शक्तियों के कष्ट के कारण उत्पन्न हुए हैं अथवा घर के सामान की अव्यवस्थित रचना के कारण उत्पन्न हुए हैं, यह जान लें ।

अ. घर में वास्तुदोष हो, तो प्रत्येक कक्ष में ही कष्टदायक प्रतीत होता है ।

आ. कोई कक्ष ठीकठाक हो; परंतु तब भी वहां दबाव प्रतीत होता है, तो वह कष्ट अनिष्ट शक्तियों के कारण हो सकता है । किसी कक्ष में स्थित अनिष्ट शक्तियों का कष्ट उस कक्ष में स्थित किसी क्षेत्र में जाने पर अधिक स्तर पर प्रतीत होता है, ऐसा भी ध्यान में आता है । उसके लिए उस कक्ष में सर्वत्र घूमकर देखें तथा कक्ष में स्थित कष्टदायक क्षेत्र को ध्यान में रखें । ऐसी स्थिति में कक्ष के उस क्षेत्र में आध्यात्मिक उपचार करने पडते हैं ।

 इ. कक्ष अव्यवस्थित हो अथवा सामान की रचना असात्त्विक की गई हो, तो वह आंखों को ध्यान में आता है । कक्ष में बहुत सामान रखने से रिक्त (खाली) स्थान अल्प होता है, ऐसी स्थिति में भी कष्टदायक स्पंदन प्रतीत हो सकते हैं । कक्ष में स्थित कष्टदायक स्पंदनों का निश्चित कारण ज्ञात होने से उपाय करना सरल होता है ।

– (सद्गुरु) डॉ. मुकुल गाडगीळ, गोवा

इस अंक में प्रकाशित अनुभूतियां, ‘जहां भाव, वहां भगवान’ इस उक्ति अनुसार साधकों की व्यक्तिगत अनुभूतियां हैं । वैसी अनूभूतियां सभी को हों, यह आवश्यक नहीं है । – संपादक

बुरी शक्ति : वातावरण में अच्छी तथा बुरी (अनिष्ट) शक्तियां कार्यरत रहती हैं । अच्छे कार्य में अच्छी शक्तियां मानव की सहायता करती हैं, जबकि अनिष्ट शक्तियां मानव को कष्ट देती हैं । प्राचीन काल में ऋषि-मुनियों के यज्ञों में राक्षसों ने विघ्न डाले, ऐसी अनेक कथाएं वेद-पुराणों में हैं । ‘अथर्ववेद में अनेक स्थानों पर अनिष्ट शक्तियां, उदा. असुर, राक्षस, पिशाच को प्रतिबंधित करने हेतु मंत्र दिए हैं ।’ अनिष्ट शक्तियों से हो रही पीडा के निवारणार्थ विविध आध्यात्मिक उपचार वेदादि धर्मग्रंथों में वर्णित हैं ।