एक ब्रिटिश संगठन द्वारा किए गए शोध का निष्कर्ष
लंदन (ब्रिटेन) – इंस्टीट्यूट फॉर द इम्पैक्ट ऑफ फेथ इन लाइफ (श्रध्दा का जीवन पर होने वाले प्रभाव का अभ्यास) अर्थात आई.आई.एफ.एल.ने एक अनूठा शोध किया है । इस शोध के अनुसार, ब्रिटेन में सभी धर्मों के बीच प्रकृति संरक्षण के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाई करने में हिन्दू धर्म अग्रणी है, अर्थात वे पर्यावरण के लिए सबसे अधिक अनुकूल कार्य करते हैं ।
शोध से महत्वपूर्ण निष्कर्ष –
१. इस शोध रिपोर्ट में ब्रिटेन के तीन सबसे बड़े धार्मिक समुदायों: ईसाई, मुस्लिम और हिन्दू का सर्वेक्षण किया गया । इसमें कहा गया था कि ‘आप किस भगवान में विश्वास करते हैं, यह निर्धारित करता है कि आप पर्यावरण के प्रति अधिक अनुकूल हैं अथवा नहीं।’
२. इस शोध में धार्मिक विश्वासों और पर्यावरणवाद के बीच संबंधों का पता लगाने का प्रयास किया गया । शोधकर्ताओं ने विभिन्न धर्मों के सदस्यों के साथ गहन साक्षात्कार करके सर्वेक्षण के निष्कर्षों का गहन अध्ययन किया ।
३. परिणामों से पता चला कि ब्रिटिश हिन्दू पर्यावरण संबंधी मुद्दों में सबसे आगे हैं, तथा वे अन्य धार्मिक समूहों की तुलना में पर्यावरण के प्रति अधिक अनुकूल कार्य भी करते हैं । अध्ययन में पाया गया कि ६४ प्रतिशत हिंदू पर्यावरण को संरक्षित करने का प्रयास कर रहे हैं, ७८ प्रतिशत हिन्दू प्रकृति के लाभ के लिए सक्रिय रूप से अपनी आदतों में परिवर्तन ला रहे हैं तथा ४४ प्रतिशत हिन्दू पर्यावरण समूहों में भाग ले रहे हैं ।
४. ९२ प्रतिशत मुसलमान और ८२ प्रतिशत ईसाई मानते हैं कि उनका धर्म उन्हें पर्यावरण की देखभाल करने के लिए बाध्य करता है; लेकिन यह हमेशा उनकी ओर से कार्यान्वित नहीं होता ।
५. हिन्दू भी मानते हैं कि विश्व की सभी वस्तुएं भगवान के समान ही पूजा के योग्य हैं । पूजा वस्तु की नहीं, अपितु उसमें उपस्थित ईश्वर की होती है । यह भूमिका वास्तव में एक परिप्रेक्ष्य प्रदान करती है जिसमें सब कुछ पवित्र है और इसलिए पर्यावरण की देखभाल करना ईश्वर की पूजा करना और समस्त सृष्टि की सेवा करना है; क्योंकि सारी सृष्टि ईश्वर से गहराई से जुड़ी हुई है ।
६. आयु की दृष्टि से १८ से २४ वर्ष के ४६ प्रतिशत युवा मानते हैं कि ‘ईश्वर स्वयं एक पर्यावरणविद् हैं’, जबकि ६५ वर्ष और उससे अधिक आयु के केवल १७ प्रतिशत लोग ऐसा मानते हैं ।
हिन्दू धर्म की अनूठी शिक्षाएं हिन्दुओं को पर्यावरण के प्रति अधिक अनुकूल बनाती हैं !आई.आई.एफ.एल. के शोध बोर्ड की सदस्य अमांडा मुरजन ने कहा कि हिन्दू धर्म सभी अस्तित्व के परस्पर संबंध पर जोर देता है, जो पर्यावरणीय नैतिकता को गहराई से स्थापित करता है । हिन्दू धर्म की शिक्षाओं के अनुसार, ‘प्रकृति महज एक उपकरण नहीं है, अपितु इसे एक पवित्र तत्व माना जाता है ।’ यह विश्वास कि ‘सब कुछ ईश्वर में है’ मनुष्य को समस्त अस्तित्व से जोड़ता है तथा प्रकृति के संरक्षण के अंतर्निहित दायित्व को मजबूत करता है । |
द गारडियन ने इस शोध के बारे में कुछ ब्रिटिश हिन्दुओं, मुसलमानों और ईसाइयों से बात की । इस चर्चा का विषय था ‘आस्था और पर्यावरण में सामंजस्य कैसे स्थापित किया जा सकता है ?’ ३५ वर्षीय कामकाजी महिला बंसरी रूपारेल ने कहा, १. हिन्दू धर्म में सब कुछ पर्यावरण से जुड़ा है, अर्थात पर्यावरण की देखभाल करना और दयालु होना । २. हिन्दू परंपरा के अनुसार, हम सूर्यास्त के बाद पेड़ों से फूल अथवा पत्ते नहीं तोडते हैं; क्योंकि वे सो रहे हैं अथवा आराम कर रहे हैं । जब हम फूल तोडते हैं, तो हमें अपने आप से पूछना चाहिए, ‘अगर मैं फूल तोड रहा हूं, तो क्या इससे आपको (पेड को)कष्ट होता है ?’ ३. हिन्दू धर्म कर्म पर आधारित है । “जैसा कर्म मनुष्य करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है ।” इस जीवन में हम जो करते हैं उसका प्रभाव अगले जीवन पर पडता है; क्योंकि यह पुनर्जन्म है । ४. मैं प्लास्टिक का अधिक उपयोग नहीं करता और यह सुनिश्चित करता हूं कि मेरे उत्पाद पर्यावरण-अनुकूल हों । ५. युवा पीढ़ी, जैसे कि ‘जेन-जी ’ ( १९९६ और २०१० के बीच पैदा हुई पीढ़ी ), पर्यावरणवाद के प्रति उस समय की तुलना में अधिक झुकाव रखती है जब मैं बच्ची थी । ६. पर्यावरण हमारे मानव शरीर का प्रतिबिंब है । उदाहरण के लिए, जब कोई पेड़ काटा जाता है, तो उसका तना हमारी उंगलियों के निशान जैसा दिखता है । प्रकृति में कई चीजें हमारे शरीर का प्रतिबिंब हैं । ये सभी चीजें आपस में जुड़ी हुई हैं और हिन्दू धर्म हमें स्वयं को पर्यावरण का हिस्सा मानना और मानव और प्रकृति के बीच के संबंध का सम्मान करना सिखाता है । |
संपादकीय भूमिका
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