भगवान के सान्निध्य में रहकर न्यायालयीन कार्य करना चाहिए ! – अधिवक्‍ता कृष्‍णमूर्ती पी., जिलाध्यक्ष, विश्‍व हिन्दू परिषद, कोडागु, कर्नाटक

अधिवक्‍ता कृष्‍णमूर्ती पी.

विद्याधिराज सभागृह – अधिवक्ता कृष्णमूर्ती वैश्‍विक हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के छठे दिन ‘हिन्दुत्वनिष्ठ कार्यकर्ताओं को न्यायालयीन सहायता करते समय आए आध्‍यात्मिक अनुभव’, इस विषय पर उद्बोधन करते हुए कहा, ‘मैं वाहन से प्रवास करते समय अथवा न्यायालय में भी नामजप करता हूं । भगवान पर हमारी इतनी श्रद्धा होनी चाहिए कि यदि हम पर कोई संकट आता है तो भगवान को हमारी सहायता करनी चाहिए । हमारे मालिक भगवान हैं । भगवान के भक्त को चिंता करने की आवश्यकता नहीं । सतत नामजप करते हुए न्यायालयीन काम करने चाहिए । भगवान का नामजप करते हुए कार्य करने से भगवान हमें शक्ति देता है । भगवान के निरंतर हमारे साथ होने की अनुभूति हमें आती है । थकान आने पर मैं जब भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करता हूं, तो ठंडी हवा बहने लगती है । इस माध्यम से भगवान मुझे अपने अस्तित्व की अनुभूति देते हैं । साधना और स्वभावदोष निर्मूलन प्रक्रिया के कारण हमारे व्यक्तित्व में निखार आता है । साधना के कारण मेरा क्रोध कम हो गया है; परंतु क्षात्रवृत्ति पहले की भांति ही कायम है । कानून के अध्ययन के साथ ही साधना करते हुए न्‍यायालयीन लडाई (केस) लडने पर कार्य की गति बढती है और सफलता मिलती है । भगवान हमारे साथ हैं । भगवान से प्रार्थना करके ही घर से बाहर निकलना चाहिए । साधना करने से अनुभूति होगी कि ‘भगवान सतत हमारे साथ हैं । ‘साधक अधिवक्‍ता’, ‘हिन्दू अधिवक्ता’ होकर हमें न्‍यायालयीन लढाई लडनी है ।

सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी अपने आचरण से साधकों को सिखाते हैं !

उन्होंने आगे कहा, ‘एक अभियोग की सुनवाई के पश्चात मैं अपने सहयोगी के साथ बेंगळुरू जा रहा था । तब एकाएक पीछे से एक ट्रक ने आकर गाडी को जोरदार टक्कर दी । इसमें हमारी गाडी का बायां भाग कट गया । यह अपघात इतना बडा था कि गाडी देखने पर किसी को ऐसा नहीं लग रहा था कि जो भी व्यक्ति इस गाडी में थे, वे जीवित बचे होंगे; परंतु सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी की कृपा से मेैं और मेरा सहयोगी सुरक्षित था । इसप्रकार गुरुदेव प्रत्येक साधक की रक्षा करते हैं । उनका ध्यान रखते हैं । इसलिए हमें सतत भगवान के सान्निध्य में रहना चाहिए । सच्‍चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी सभी साधकों को प्रेम से बताते हैं । अपने स्वयं के आचरण से वे साधकों को घडते हैं ।’