साधको, ‘प्रतिमा बनाए रखना’ इस अहं के पहलू के कारण स्वयं की चूकें छुपाकर भगवान के चरणों से दूर जाने की अपेक्षा प्रामाणिकता से चूकें स्वीकार कर ईश्वरप्राप्ति की दिशा में अग्रसर हों !
ईश्वर का हमारे प्रत्येक कृत्य की ओर ध्यान रहता है । ‘जो पापी स्वयं का पाप सारे विश्व को चीखकर बताता है, वही महात्मा बनने की योग्यता का होता है’, यह दृष्टिकोण रखकर साधकों द्वारा प्रयास होना अपेक्षित है ।