SANATAN PRABHAT EXCLUSIVE : महाराष्ट्र में ८५ प्रतिशत भिखारी भीख मांगने को अपना ‘व्यवसाय’ मानते हैं!

  • महाराष्ट्र के ‘भिखारी मुक्त’ न हो पाने के पीछे आपराधिक पृष्ठभूमि !

  • ३ वर्ष में १५ सहस्त्र २४६ भिखारी पकडे गए; किन्तु भिखारी कम नहीं होंरहे हैं !

– श्री. प्रीतम नाचनकर, मुंबई 

मुंबई का करोडपती भिखारी

मुंबई, २६ अप्रैल (समाचार ) – महाराष्ट्र को भिखारियों से मुक्त कराने के लिए राज्य सरकार गत अनेक वर्षों से राज्य में भिखारियों को पकडने का अभियान चला रही है। इसके लिए ‘महाराष्ट्र भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम’ बनाया गया है और भिखारियों के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जा रही है। गत ३ वर्षों में भिखारियों को पकडने के लिए ४,२०५  ‘पकड अभियान’ चलाए गए और सहस्त्रों भिखारी पकडे  गए; किन्तु राज्य भिखारी मुक्त होने से कोसों दूर है, इसके विपरीत भिखारियों की संख्या दिनों दिन  बढती जा रही है। इसका कारण यह है कि राज्य में ८५ प्रतिशत भिखारी, भीख मांगना किसी असुरक्षा के रूप में नहीं, बल्कि एक ‘व्यवसाय’ के रूप में कर रहे हैं और राज्य के भिखारी मुक्त नहीं होने के पीछे एक आपराधिक पृष्ठभूमि भी है। बाल विकास आयुक्तालय ने दैनिक ‘सनातन प्रभात’ को बताया।

महाराष्ट्र में भिखारियों की जानकारी प्रशासन द्वारा सनातन प्रभात के प्रतिनिधि को दी गयी

२०२१ -२२ से २०२३ -२४ की अवधि में महाराष्ट्र में भिखारियों को पकडने के लिए चलाए गए बंदी करण  अभियान में पकडे  गए में से  १५,२४६ भिखारियों को सरकारी भिखारी आवास में रखा गया था। उनमें से १४,६३० भिखारियों के व्यवहार और स्वास्थ्य में सुधार हुआ। ३ सहस्त्र ८४९  भिखारियों को उनके परिवारों को भी सौंपा गया।

श्री. प्रीतम नाचनकर

भिखारी मुक्त रायगढ का प्रस्ताव सरकार को सौंपा गया !

महिला एवं बाल विकास विभाग ने महाराष्ट्र में भिखारियों से छुटकारा पाने के लिए इस अभियान को प्रायोगिक आधार पर रायगढ जिले में लागू करने का निर्णय लिया है। एक अधिकारी ने बताया कि वर्ष २०२३ में ‘भिखारी मुक्त रायगढ’ का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है।

१ सहस्त्र १४ भिखारी बने आत्मनिर्भर !

पकडे गए भिखारियों में आलस्य को कम करने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार विभिन्न व्यावसायिक प्रशिक्षण दिए गए। महिला एवं बाल आयुक्तालय ने बताया कि राज्य के भिखारी घरों में भिखारियों को हस्तशिल्प, उद्यान रखरखाव, झाडू बनाना, सिलाई, मोमबत्ती बनाना आदि विभिन्न प्रकार का प्रशिक्षण प्रदान करने के परिणामस्वरूप १,१४० भिखारी आत्मनिर्भर बन गए हैं।

ऐसे चलता है भिखारियों को पकडने का अभियान !

महिला एवं बाल विकास आयुक्तालय के अधीक्षक के मार्गदर्शन में पुलिस की सहायता से राज्य में भिखारियों को पकडने का अभियान चलाया जाता है। पकडे गए भिखारियों को संबंधित न्यायालय में ले जाया जाता है। न्यायिक जांच होने तक भिखारियों को भिखारी आवास में रखा जाता है। १५ दिन के अंदर न्यायालय को उनका विवरण सौंपा जाता है। इसमें भिखारी की व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक स्थिति की जानकारी ली जाती है। उसके आधार पर उनके परिजनों से संपर्क किया जाता है। भीख मांगने का कारण समझा जाता है । यदि यह निश्चित हो जाए कि वे पुन: भीख नहीं मांगेंगे, तो एक मुक्तता विवरण न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता ,अन्यथा उन्हें भिक्षा गृह में रखा जाता है; किन्तु ये सब न्यायालय के निर्णय अनुसार ही  किया जाता है ।

अभियान चलाने के लिए पुलिस उपलब्ध नहीं है !

कई भिखारी आलसी होते हैं। भिखारी जब घर से आते हैं तो फिर भीख मांगना प्रारंभ कर देते हैं। मुंबई में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक है। पुलिस की सहायता के बिना हम कोई अभियान नहीं चला सकते; किन्तु चूंकि पुलिस का मुख्य काम अपराधियों को पकडना है, इसलिए वे भिखारियों को पकडने के लिए उपलब्ध नहीं होते । महिला एवं बाल विकास आयुक्तालय के एक अधिकारी ने बताया कि हमने इस संबंध में संबंधित पुलिस आयुक्त और सरकार से कई बार पत्राचार किया है।

भिखारी बनने को बाध्य करने वाले टोलियों पर कडी कार्रवाई की आवश्यकता ! 

“मुंबई जैसे महानगर में, भिखारी टोलियों के संचालन और महिलाओं और बच्चों को भीख मांगने के लिए उपयोग किए जाने के कुछ प्रकरण गत पुलिस अभियानों के माध्यम से सामने आए हैं। इस व्यवसाय की आपराधिक पृष्ठभूमि की गंभीर प्रकृति को ध्यान में रखते हुए गृह विभाग को भिखारियों के पीछे कार्यरत आपराधिक टोलियों को समाप्त करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए, ऐसी मांग लोगों द्वारा की जा रही है।