आज के रावणों के विरुद्ध लडने हेतु श्रीराम की सहायता चाहिए !

अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर का निर्माण होकर २२ जनवरी को रामलला की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा हुई । इस उपलक्ष्य में हिन्दू धर्म को माननेवाली जर्मन लेखिका मारिया वर्थ ने इस लेख के द्वारा प्रभु श्रीराम, श्रीराम मंदिर, हिन्दू धर्म एवं वर्तमान स्थिति का जो अवलोकन किया है, वह यहां दे रहे हैं ।

१. अधर्म के विनाश हेतु श्रीराम मंदिर के निर्माण का यही उचित समय है !

भारत में ५०० वर्ष उपरांत भव्य दिव्य ऐसा कुछ हो रहा है । वास्तव में देखा जाए, तो यह बहुत पहले ही होना चाहिए था । वर्ष १९४७ में जब धर्म के आधार पर भारत का विभाजन हुआ तथा जिन भारतीयों ने इस्लाम धर्म का स्वीकार किया, उन्हें पाकिस्तान मिला । उस समय स्वाभाविकरूप से हिन्दुओं को पुनः पीछे जाकर आक्रांताओं द्वारा जिन मंदिरों को नष्ट कर उन स्थानों पर अपना वर्चस्व स्थापित करने हेतु मस्जिदें बनाई थी, उन स्थानों पर पुनः अपने हिन्दू मंदिरों का निर्माण करना चाहिए था । भले ही ऐसा हो; परंतु भारत ने श्रीराम की जन्मभूमि में अब श्रीराम मंदिर का निर्माण किया है तथा उसके निर्माण का यही उचित समय है । इसका कारण यह है कि श्रीराम धर्म के प्रतीक हैं, जिन्होंने अधर्मी शक्तियों की पराजय की । वर्तमान काल में अधर्म बडी मात्रा में बढ गया है तथा अब उसके साथ युद्ध कर उसे पराजित किया जाना चाहिए ।

२. अंतिम सत्य से वंचित आधारहीन एवं दिशाहीन हिन्दू समाज !

वर्तमान समय में मानवता की स्थिति आधारहीन तथा दिशाहीन बन गई है तथा मानवी मूल्यों को किसी प्रकार का अर्थ नहीं रह गया है । वह जागृत हो रही है, ऐसा कहा जाता है तथा वह सकारात्मक है, ऐसा आभास उत्पन्न किया जाता है । पाश्चात्त्यों में उसका प्रसार हो रहा है, साथ ही भारतीय युवकों पर भी उसका कुछ प्रभाव पड रहा है । वर्तमान समय में सत्य का अस्तित्व न होने जैसी स्थिति है; क्य

क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति की सत्य की अपनी परिभाषा भिन्न है । जीवन के उद्देश्य का कोई अर्थ नहीं रहा है, अपितु अब वह व्यक्तिगत बात बन गई है । मनुष्य पर स्वास्थ्य के लिए हानिकारक अन्न, मादक पदार्थ तथा निचले स्तर के मनोरंजन की मार पड रही है, जिससे केवल उत्पादकों को लाभ मिल रहा है । विख्यात तत्त्वज्ञ एवं वैज्ञानिक युवल नोहा अथवा स्टीफन हैकिंग्ज ने ‘सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर एवं जीव’ इस विषय को हास्यास्पद प्रमाणित किया है । अभी तक छिपी हुई थी, ऐसे अनेक भयानक तथ्य अब सामने आ रहे हैं । यह बिगुल बजानेवाले प्रसारमाध्यमों का धन्यवाद किया जाना चाहिए ।

मारिया वर्थ

३. देव-असुर की लडाई में आत्मा को दिव्य शक्ति से वंचित रखने के असुरों के प्रयास !

इसमें सर्वाधिक बुरी बात कौनसी है, तो लैंगिकता, इंद्रियों एवं रक्त अथवा राक्षसी शक्तियों को शांत करने हेतु गुप्त रूप से काम करनेवाले समाज के सदस्यों के द्वारा धार्मिक अनुष्ठानों में बली चढाने हेतु की जानेवाली बच्चों की तस्करी ! ऐसे लोग आज समाज में शिखर पर हैं । यह सचमुच ही अविश्सनीय है; परंतु इसके विरुद्ध आवाज उठानेवालों को शांत किए जाने के कारण दुर्भाग्यवश उन्हें विश्वासनीयता मिल रही है । इस मायावी विश्व में देवता एवं असुरों के मध्य शाश्वतरूप से लडाई चल रही है तथा इसमें असुरों की स्थिति प्रबल है, ऐसा लगता है । श्रीकृष्ण की भगवद्गीता में समाहित (अध्याय १६, श्लोक २१) सीख के अनुसार क्रोध एवं लोभ स्वयं का विनाश करनेवाले नरक के द्वार हैं । आत्म तथा उसकी दिव्य शक्ति से मनुष्य को वंचित रखने के प्रयास चल रहे हैं । उसके कारण कुछ तो अनिष्ट घटित होने की संभावना है ।

४. कलियुग की निराशाजनक अंधकारमय स्थिति में भारत का महत्त्व !

इस अंधकारमय स्थिति में कलियुग भले ही उसका प्रभाव दिखा रहा हो; परंतु भारत आशा की किरण है । आज भी अनेक भारतीयों की हिन्दू धर्म पर श्रद्धा है । अभी भी उन्हें उनमें विद्यमान दैवी शक्ति का (आत्मा का) भान है तथा देवताओं के प्रति भक्ति है । भारत पृथ्वी पर एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां के सहस्रों मंदिरों में प्रतिदिन सभी के कल्याण हेतु पूजा-अर्चना की जाती है । यहां व्यक्तिगत संपत्ति, सत्ता तथा इंद्रियों के मनोरंजन हेतु असुरी अथवा शैतानी शक्तियों की पूजा नहीं की जाती । प्रतिदिन सुबह तथा सायंकाल को विश्व में ईश्वर की (ओम् जय जगदीश हरे) अथवा संबंधित मंदिर में स्थित विशिष्ट देवता की आरती उतारी जाती है । ये सभी देवता उस सत् चित् आनंदमय स्वरूप सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म से एकरूप हैं । देवता आकाश में नहीं हैं, अपितु जहां उनकी प्राणप्रतिष्ठा की गई है, उन मंदिरों में हैं । मंदिर में स्थित पत्थर की मूर्ति में दैवी शक्ति के प्राण डाले गए हैं । २२ जनवरी २०२४ को अयोध्या के श्रीराममंदिर में श्री रामलला की प्राणप्रतिष्ठा की गई । उसके कारण अयोध्या में नए सिरे से निर्मित श्रीराम मंदिर में श्रीराम का अस्तित्व उत्पन्न होगा ।

५. हिन्दुओं के मन में अयोध्या एवं श्रीराम के विषय में प्रचंड श्रद्धा तथा सर्वश्रेष्ठ स्थान !

अयोध्या का नाम लेते ही हिन्दुओं की भावनाएं जागृत हो जाती हैं । अयोध्या श्रीराम की जन्मभूमि है तथा वे जिस स्थान पर लक्ष्मण, भरत एवं शत्रुघ्न के साथ बडे हुए, वहां वसिष्ठ ऋषि ने उन्हें प्राचीन ज्ञान प्रदान किया । आगे जाकर राक्षसों से लडने हेतु विश्वामित्र ऋषि श्रीराम एवं लक्ष्मण को अपने साथ ले गए । उसके उपरांत श्रीराम के राज्याभिषेक के दिन ही वे सीता एवं लक्ष्मण के साथ १४ वर्ष के वनवास के लिए निकल पडे । पुत्रवियोग के कारण श्रीराम के पिता दशरथ ने अपने प्राण त्याग दिए । आगे जाकर भरत ने सिंहासन पर श्रीराम की चरणपादुकाएं रखकर राज्य चलाया । श्रीराम जब वनवास में थे, उस समय वे श्रीलंका जाकर रावण को पराजित कर सीता, लक्ष्मण एवं हनुमान सहित वापस आ गए तथा उन्होंने सभी के लिए आनंददायक रामराज्य की स्थापना की ।

६. प्रत्येक हिन्दू में राम के प्रति प्रेम होने से हिन्दुओं द्वारा श्रीराम मंदिर के विषय में लडी गई लडाई !

भारत के अधिकतर हिन्दुओं को श्रीराम के जीवन के विषय में विस्तार से जानकारी है । उनमें रामायण घुल-मिल गया है । आज भी गांव-गांव में रंगमंच से ‘रामायण’ प्रस्तुत की जाती है, साथ ही अनेक आश्रमों में ‘रामायण’ पढ़ी जाती है । इससे पूर्व दूरदर्शन पर ‘रामायण’ धारावाहिक का प्रसारण हुआ था, उस समय वह बहुत लोकप्रिय हुआ था । जीवन में जब चुनौतियां उत्पन्न होती हैं, उस समय ‘आदर्श आचरण कैसे करना चाहिए ?’ तथा ‘प्रतिष्ठा के साथ जीवन कैसे जीना चाहिए ?’, यह बतानेवाली ‘रामायण’ एक पवित्र कथा है । उदात्त, न्याय देनेवाले, शूर, दुर्बलों की सदैव रक्षा करनेवाले तथा अपना वचन निभानेवाले, ऐसे श्रीराम सर्वश्रेष्ठ मनुष्य के उदाहरण हैं तथा सभी लोग उनसे प्रेम करते हैं । उसके कारण ही हिन्दुओं ने उनका पवित्र स्थान वापस लेने हेतु ५०० वर्ष संघर्ष किया तथा इतना त्याग क्यों किया ?, इस विषय में कोई प्रश्न ही शेष नहीं रहता । उन्होंने केवल आक्रांताओं के विरुद्ध ही लडाई नहीं लडी, अपितु हाल के दशकों में उन्हें स्वार्थी राजनेताओं, वामपंथियों तथा धर्मांतरित हिन्दुओं से लडना पडा; क्योंकि इन सभी ने कहा कि ‘श्रीराम सत्य नहीं हैं’ तथा उन्होंने यह स्वीकार नहीं किया कि ‘अयोध्या में श्रीराम का मंदिर था ।’

७. श्रीराम मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा तो स्वयं में विद्यमान आत्मशक्ति को जागृत करने का दिन है !

आज के समय में भारत श्रीराम का उत्सव मनाने की स्थिति में है । अनेक हिन्दुओं ने प्राणप्रतिष्ठा हेतु अयोध्या जाकर इस ऐतिहासिक प्रसंग में उपस्थित रहकर स्वयं को पवित्र बनाने की मनौती मांगी है । सर्वत्र रामनाम का जाप किया जा रहा है, साथ ही भक्तिमय भजन गाए जा रहे हैं तथा सुने जा रहे हैं । श्रीराम मूर्ति के प्राणप्रतिष्ठा समारोह में १४० करोड भारतीयों की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उपस्थित रहे । उन्होंने प्राणप्रतिष्ठा से ११ दिन पूर्व कुछ अनुष्ठान किए । उन्हीं के शब्दों में बताना हो, तो ‘मुझे मुझमें विद्यमान दैवी शक्ति को जागृत करना चाहिए ।’ प्रधानमंत्री के रूप में उनपर बहुत बडा उत्तरदायित्व था । उन्हें सचमुच प्रभु श्रीराम के मार्गदर्शन की आवश्यकता है; इसलिए उन्होंने उनसे प्रार्थना की ।

८. सत्य एवं सदाचरण पर आधारित तथा सभी आक्रमणों से अबाधित सर्वश्रेष्ठ हिन्दू धर्म !

ऐसे समय में पाश्चात्य प्रसारमाध्यम बिना किसी खेद के स्वयं को हिन्दू कहलानेवाले प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना कर सकते हैं । अब्राह्मिक धर्म, वामपंथी तथा प्रसारमाध्यमों के द्वारा नकारात्मक प्रचार कर भी हिन्दू लोग हिन्दू धर्म से चिपके रहते हैं, इसका उन्हें आश्चर्य होता होगा । हिन्दू धर्म पर सभी दिशाओं से आक्रमण करने का उनका नियोजन सफल क्यों नहीं होता ?

हिन्दू अब पुनः एक बार बडे स्तर पर अपनी परंपरा को सुरक्षित क्यों रखना चाहते हैं ?, साथ ही अनेक विदेशी भी ऐसा क्यों मान रहे हैं कि ‘हिन्दू धर्म मानवता तथा विश्व के लिए सबसे अच्छा विकल्प है ।’ इसका उत्तर सरल है । हिन्दू धर्म सत्य एवं सदाचरण पर आधारित है । वह हमें इसका भान करा देता है कि ‘मायावी विश्व तात्कालिक है तथा स्वयं में विद्यमान आत्मा अनंत है ।’ हिन्दू धर्म हमें माया से मुक्त करता है तथा वह स्वयं में विद्यमान दैवीय शक्ति का भान करानेवाले देवताओं का पक्षधर धर्म है । यह धर्म हमें अज्ञान के अंधकार में ढकेलनेवालों तथा बंधन में रखनेवालों का पक्षधर धर्म नहीं है ।

९. भारत के सामने चुनौतियां !

भले ही ऐसा हो; परंतु तब भी भारत के सामने बडी चुनौती है । नए धर्म का स्वीकार कर अथवा नई शिक्षाप्रणाली लागू कर जिनके मन पर अपने हिन्दू पूर्वजों के आस्था के केंद्रों को हीन समझना अंकित किया गया है, उन्हें धर्म के विषय के सत्य का भान कैसे कराया जा सकेगा ?, इसकी ओर देखना पडेगा । ‘प्रभु श्रीराम सभी को सुबुद्धि देंगे’, यह आशा करते हैं । सभी को उनके हृदय में श्रीराम का अस्तित्व अनुभव हो ।’

सत्यमेव जयते । जय श्रीराम ।

– मारिया वर्थ, जर्मनी (१९.१.२०२४)