हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी का ‘वैश्विक अध्यात्म महोत्सव’ में महत्त्वपूर्ण प्रतिपादन !
भाग्यनगर (तेलंगाना) – यहां महत्त्वपूर्ण वक्तव्य देते हुए ‘हिन्दू जनजागृति समिति’ के राष्ट्रीय मार्गदर्शक सद्गुरु डॉ. चारुदत्त पिंगळेजी ने कहा कि आधुनिक चिकित्सा-शास्त्र एवं अध्यात्मशास्त्र को मिलजुलकर अग्रसर होने की आवश्यकता है । यदि ऐसा होता है, तो सभी बाह्य एवं अंतर्गत प्रदूषण द्वारा निर्मित समस्याएं दूर होंगी । यहां संपन्न वैश्विक अध्यात्म महोत्सव के तीसरे दिन अर्थात १६ मार्च को ‘एपिजेनेटिक, बिलीफ (विश्वास) एंड स्पिरिच्युएलिटी (अध्यात्म)’ परिसंवाद को संबोधित करते समय वे ऐसा बोल रहे थे । व्यक्ति में स्थित जीन के अनुसार वह व्यवहार करता है । संक्षेप में कहें तो आनुवंशिक परिवर्तन के अनुसार ही व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन होता है । उसका परिणाम प्राकृतिक दृष्टि से पर्यावरण पर भी होता है । इस अध्ययन को ‘एपिजेनेटिक्स’ कहा जाता है ।
Dr.Charudatta Pingale, the National Guide of the Hindu Janjagruti Samiti delivers an important presentation at the "Global Spirituality Mahotsav"
📌Modern medicine needs to be complemented with #spirituality to eradicate external and internal pollution
Bhagyanagar (Telangana)… pic.twitter.com/PVULBpYkfD
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) March 17, 2024
इस समय सद्गुरु पिंगळेजी को पूछा गया कि ‘गुणसूत्रों पर (‘क्रोमोजोम्स’ पर) अध्यात्म किस प्रकार प्रभावशाली होता है ?’ तब उन्होंने कहा, ‘व्यक्ति के स्वभाव के दोष एवं अहं के कारण मन की स्थिति में परिवर्तन होता रहता है । आपके मन में हो रहे परिवर्तनों के कारण देह में रासायनिक परिवर्तन होते हैं । इससे जैविक परिवर्तन होते हैं एवं उसके परिणाम गुणसूत्रों पर होते हैं ।
साधना करने से ही गुणसूत्रों में हो रहे नकारात्मक परिवर्तनों जैसी समस्याओं का समाधान संभव ! – सद्गुरु डॉ. चारुदत्त
पिंगळेजी यह विषय विशद करते हुए सद्गुरु डॉ. पिंगळेजी ने कहा, ‘विज्ञान स्थूल सूत्रों पर कार्यरत है, जबकि अध्यात्म सूक्ष्म स्तर पर, अर्थात मन-बुद्धि-चित्त इन चरणों पर कार्य करता है । विज्ञान भी धीरे धीरे सूक्ष्म स्तर पर कार्य करने लगा है; परंतु उसी समय अध्यात्म उससे भी आगे जाकर सूक्ष्मतर एवं सूक्ष्मतम स्तर तक कार्य करता है । वैश्विक ऊर्जा का भी गुणसूत्रों पर प्रभाव पडता है । वैश्विक सूक्ष्म शक्ति भी एक ऊर्जा ही है तथा उसे ‘पितृ ऊर्जा’ (ऍन्सेस्ट्रल एनर्जी) अर्थात पितृदोष कहते है । उसका परिणाम भी गर्भ पर होता है । इसीलिए आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ आध्यात्मिक साधना करने से ही गुणसूत्रों के नकारात्मक परिवर्तन, साथ ही बांझपन जैसी समस्याओं का समाधान करना संभव है । इस समय स्त्रीरोग विशेषज्ञ डॉ. राजवी मेहता ने अपने विचार प्रस्तुत किए ।