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बेंगलुरु (कर्नाटक) – ‘कर्नाटक हिन्दू धार्मिक संस्थाएं और धर्मार्थ व्यवस्थापन विधेयक-२०२४’ को २३ फरवरी को विधान परिषद में प्रस्तुत किए जाने पर निरस्त कर दिया गया। भाजपा और जनता दल (सेक्युलर) के सदस्यों द्वारा आपत्ति जताई जाने के फलस्वरूप , परिषद के उपाध्यक्ष एम.के. प्रणेश ने ध्वनिमत से मांग की। उसके उपरांत विपक्षी सदस्यों ने विरोध में मत दान किया और विधेयक को निरस्त कर दिया। ७ सदस्यों ने विधेयक के पक्ष में मत दिया, जबकि १८ सदस्यों ने इसके विरोध में मत दिया। ये विधेयक विधानसभा में पास हो गया। विधेयक को निरस्त करने के उपरांत धर्मादाय विभाग के मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने कहा, “अभी सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है।” हम २६ फरवरी को पुन: विधानसभा में विधेयक प्रस्तुत करेंगे।’ उसी प्रकार यदि मंदिर की आय १ करोड रुपये से कम है तो ५ प्रतिशत कर लगेगा।
👊 Tight slap to the Congress Government
📌Bill to levy hefty tax on temples in #Karnataka, rejected by the Legislative Council
📌The bill will be presented again in the Legislative Assembly on 26th February
👉 If the #Congress is insisting on taxing temples despite the… pic.twitter.com/p71QVzqkS0
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) February 24, 2024
(और इनकी सुनिए …) इस प्राप्त राशि का उपयोग हिन्दू धर्म के किसी भी धार्मिक कार्य के लिए किया जाएगा !’- मुख्यमंत्री सिद्धारमैया
इस विधेयक के संबंध में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा था कि यह विधान २००३ में लागू किया गया था। विधान में सुधार करने से पहले, ५ लाख रुपये की आय वाले मंदिरों पर ५ प्रतिशत कर लगाया जाता था। संशोधित विधान में कहा गया है कि इससे प्राप्त राशि का उपयोग किसी भी धार्मिक संस्थान में अभावग्रस्तों की सहायता हेतु किया जाएगा। इसके अतिरिक्त इस धन का उपयोग हिन्दू धर्म के किसी भी धार्मिक कार्य के लिए किया जाएगा। इस निधि का उपयोग किसी अन्य उद्देश्य या अन्य धर्मों के अनुयायियों के लाभ के लिए नहीं किया जाएगा। मंदिर के धन का उपयोग हिन्दू समाज के कल्याण और उत्थान के लिए किया जाएगा। हम धन के अयोग्य आवंटन या अनुचित कर लगाने के आरोपों का खंडन करते हैं।
संपादकीय भूमिकाइस देश में मूल रूप से करदाता हिन्दू हैं और उसीसे देश चल रहा है। इसलिए हिन्दू मंदिरों का धन केवल हिन्दू मंदिरों के लिए ही खर्च किया जाना चाहिए। ऐसा तभी हो सकता है जब मंदिरों का स्वामित्व भक्तों को दे दिए जाए ! |
‘सी’ स्तर के मंदिरों का प्रबंधन, विधान द्वारा प्रदत्त निधि से किया जा सकता है! – सरकार का संकल्प
सम्मेलन में विधेयक का प्रस्ताव रखते हुए परिवहन एवं धर्मार्थ राज्य मंत्री रामलिंगा रेड्डी ने कहा कि वर्तमान नियमों के अनुसार सरकार को मंदिरों से ८करोड रुपये प्राप्त हो रहे हैं। नवीन विधेयक पारित होने के उपरांत सरकार को ६० करोड रुपये मिलेंगे और इस निधि से ‘सी’ श्रेणी के मंदिरों का प्रबंधन किया जाएगा। राज्य भर में ३४ सहस्र १६५ ‘सी’ ग्रेड मंदिरों में ४० सहस्र से अधिक पुजारी हैं। हम इन पुजारियों को घर बनाने और उनके बच्चों को छात्रवृत्ति प्रदान करने के लिए धन देंगे। हम उन्हें बीमा सुरक्षा भी प्रदान करते हैं।
‘सी’ स्तर के मंदिरों के विकास के लिए २०० करोड रुपये दे सरकार! – भा.ज.पा.
विधेयक का विरोध करते हुए परिषद में विपक्ष के नेता कोटा श्रीनिवास पुजारी ने कहा कि मंदिरों की आय का १० प्रतिशत भाग वसूलना उचित नहीं है। यदि १०० करोड रुपये एकत्र होते हैं, तो १० करोड रुपये सरकार को दिए जाने चाहिए; किन्तु पहले खर्च में कटौती करनी होगी और उसके उपरांत सरकार अपना भाग ले सकती है। ‘सी’ श्रेणी के मंदिरों के विकास के लिए सरकार २०० करोड रुपये दे।
भा.ज.पा. विधायक एन. रविकुमार ने कहा कि राज्य सरकार के लिए ६० करोड रुपये कोई बडी राशि नहीं है। मंदिरों के विकास कार्यों के लिए ३०० करोड रुपये दिए जाएं।
मंत्री रेड्डी ने कहा कि वह २६ फरवरी को विधेयक प्रस्तुत करेंगे, इस पर उप सभापति प्रणेश ने आपत्ति जताई और विधेयक को ध्वनि मत से पारित करने को कहा।
विधेयक निरस्त होने के उपरांत भा.ज.पा. के सदस्यों ने सदन में ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए, जबकि कांग्रेस सदस्यों ने ‘भारत माता की जय’ और ‘जय भीम’ के नारे लगाए।
संपादकीय भूमिकायदि कांग्रेस हिंन्दुओं के विरोध होते हुए एवं विधान परिषद में निरस्त होने के उपरांत भी मंदिरों पर कर लगाने पर अडी , तो हिंन्दुओं और उनके संगठनों को अब सडकों पर उतरना चाहिए और वैध पद्धतियों से सरकार को पकडना चाहिए ! |