हिन्दू मंदिर वापस प्राप्त करना, यह हिन्दुओं का अधिकार है ! – अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, सर्वाेच्च न्यायालय

कुछ दिन पूर्व ही ज्ञानवापी के संदर्भ में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (‘ए.एस.आई.’) का  प्रतिवेदन (रिपोर्ट) आया है । उसमें स्पष्टता से कहा है कि ‘ज्ञानवापी के स्थान पर भव्य मंदिर था एवं उसे १७ वीं सदी में गिराया गया ।’ इस ज्ञानवापी अभियोग के हिन्दू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन की यह बडी विजय है; परंतु कट्टरपंथी नेताओं ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पर संदेह किया है एवं उसका सर्वेक्षण ही अवैज्ञानिक होने की बात कही है । इस विषय में ‘आज तक डिजिटल’ के कुमार अभिषेक ने सर्वाेच्च न्यायालय के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन से संवाद किया । यहं इस विषय पर लेख प्रस्तुत कर रहे हैं ।

अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन

१. एक विश्वसनीय संस्था होने के कारण भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पर संदेह करना अनुचित !

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की (‘ए.एस.आई.’ की) नियुक्ति वाराणसी जिला न्यायालय द्वारा ३१ जुलाई २०२३ को की गई थी । तब किसी ने यह आपत्ति नहीं जताई थी कि ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग विश्वसनीय संस्था नहीं है । इस कारण उसे नियुक्त करने की अपेक्षा अन्य संस्था को नियुक्त करें’ । यह अभियोग इलाहाबाद उच्च न्यायालय में प्रविष्ट हुआ । वहां २५ से २७ जुलाई, इस प्रकार ३ दिन सुनवाई चलने के उपरांत न्यायालय ने ३ अगस्त को निर्णय दिया । तब भी इस विभाग की विश्वसनीयता के विषय में आपत्ति नहीं जताई गई थी । तदनंतर इस प्रकरण पर ४ अगस्त २०२३ को सर्वाेच्च न्यायालय में सुनवाई हुई । वहां भी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की अपेक्षा अन्य विभाग को सर्वेक्षण देने की मांग नहीं की गई थी । उस समय दोनों पक्षों के द्वारा न्यायालय में कहा गया था, ‘पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग एक विश्वसनीय संस्था होने के कारण उसे अपना काम करने दें ।’ इस कारण यह विवरण आने के उपरांत अब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग पर प्रश्न उठाना पूर्णतया अनुचित है ।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग वैज्ञानिक स्तर पर काम कर रहा है । वर्ष २०२० में श्रीराम मंदिर प्रकरण में सर्वाेच्च न्यायालय ने कहा था, ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग वैज्ञानिक समिति है’ । यह विभाग संस्था इतिहास, विविध शिल्प, यात्रा वर्णन एवं विज्ञान के आधार पर निर्णय देता है । ज्ञानवापी में उत्खनन किए बिना भी केवल मिट्टी निकालने से ही विविध हिन्दू देवी-देवताओं की मूर्तियां मिल रही हैं । पश्चिम दिशा की भीत पर श्रीविष्णु एवं हनुमानजी की मूर्तियां तथा शिवलिंग मिला है । वहां के स्तंभ भी हिन्दू मंदिर के हैं, ऐसा कोई भी कह सकता है । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने प्रमाणों के आधार पर अपने निष्कर्ष दिए हैं । उन्होंने न्यायालय के आदेश में रहकर ही काम किया है । उन्होंने केवल न्यायालय द्वारा पूछे गए प्रश्नों के सुसूत्रता से उत्तर दिए हैं ।

ज्ञानवापी

२. एम.आई.एम. के ओवैसी ने लगाया आरोप : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण हिन्दुत्वनिष्ठ है !

एम.आई.एम. के सांसद ओवैसी ने आरोप लगाते हुए कहा है, ‘भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग हिन्दुत्वनिष्ठ है ।’ यह आरोप झूठा है । ओवैसी एक राजनीतिज्ञ हैं । वे इस अभियोग के अधिवक्ता अथवा पक्षकार नहीं हैं, तथा सुनवाई के समय भी वे कभी उपस्थित नहीं थे । एक राजनीतिज्ञ होने के कारण लोगों के मतों के लिए वे कुछ भी अनर्गल बोल सकते हैं । मैं इस अभियोग की प्रत्येक सुनवाई के समय उपस्थित रहा हूं । ओवैसी ने कदाचित इस अभियोग का ‘प्रोसिडिंग’ भी नहीं देखा होगा । न्यायालय द्वारा नियुक्त किए गए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को वे हिन्दुत्वनिष्ठ कहे रहे हैं; परंतु उसका कोई भी न्यायालयीन आधार नहीं है ।

३. ‘जी.पी.आर.’ तंत्रज्ञान एवं शोधकार्य के आधार पर पुरातत्व विभाग का निष्कर्ष !

यह अभियोग अनुसंधान के आधार पर चल रहा है । हम कोई राजनीतिज्ञ नहीं हैं । ‘ज्ञानवापी हिन्दू मंदिर का परिसर है’, हम यह सच्चाई विश्व के सामने रख रहे हैं । वहां किया जा रहा नमाज-पठन अनुचित है । मंदिर परिसर को ही मस्जिद का रूप देने का प्रयास किया गया है । यह अभियोग का कटु सत्य है । ‘वहां १७ वीं सदी तक भव्य मंदिर था एवं उसे तोड दिया गया’, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने विवरण में ऐसा लिखा है । उन्होंने यह वास्तविकता अनुसंधान के आधार पर दर्शाई है । कोई चाहे कुछ भी कहे, परंतु हमारा पक्ष अत्यंत बलशाली है । इस कारण इसमें हम शीघ्र ही विजयी होंगे । भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने कहा है, ‘जी.पी.आर.’ सर्वेक्षण के समय उन्होंने निर्माणकार्य देखा । इसे तंत्रज्ञान के माध्यम से जितना प्रस्तुत कर सकते हैं, उतना उन्होंने किया है ।

४. ज्ञानवापी के बदले में मुस्लिम पक्ष को वैकल्पिक भूमि देंगे, ऐसा नहीं चलेगा !

मैं श्रीराम जन्मभूमि के समझौते के समय उपस्थित था । उस समय की गई चर्चा में कहा गया था कि ‘श्रीराम मंदिर हिन्दुओं को देंगे; परंतु इसके अतिरिक्त और किसी बात पर बोलना नहीं है ।’ तब यदि श्रीराम मंदिर विषय पर समझौता हुआ होता, तो आज काशी एवं मथुरा के संदर्भ में बोल नहीं सकते थे । आज यदि काशी के विषय में समझौता हुआ, तो भोजशाला (मध्य प्रदेश) में स्थित सरस्वतीदेवी के स्थान के विषय में, कुतुब मीनार में हिन्दू एवं जैन मंदिर तोडकर मस्जिद बनाई गई इस विषय में नहीं बोल सकते । इसलिए काशी के अतिरिक्त अन्य विषय पर चर्चा नहीं होगी, यदि यह विषय रहा, तो मैं किसी भी चर्चा में सहभाग नहीं लूंगा । इसलिए मुस्लिम समाज को ज्ञानवापी का परिसर छोडकर चले जाना चाहिए, यह चर्चा हो सकती है । मुस्लिम पक्ष को ज्ञानवापी के बदले में वैकल्पिक भूमि देना, ऐसा नहीं चलेगा । वे ३५० वर्षाें से हिन्दू समाज की आत्मा से खिलवाड कर रहे हैं । इलाहाबाद उच्च न्यायालय की भूमि पर अवैधानिक पद्धति से मस्जिद का निर्माण किया गया था । वर्ष २०१७ तक यह भूमि उनके नियंत्रण में थी । वहां अनुचित पद्धति से मस्जिद का निर्माण किया गया था, सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा ऐसा स्पष्ट करने के उपरांत भी कट्टरपंथियों को वैकल्पिक भूमि दी गई । यदि ऐसी समाधान योजना निकलती है, तो मैं अथवा मेरे पक्षकार ऐसी किसी भी चर्चा को स्वीकार नहीं करेंगे ।

५. सम्मान पुनः प्राप्त करना, यह बहुसंख्यक हिन्दू समाज का अधिकार है !

दासता की अवधि में इस देश में अनंत मंदिर तोडे गए । आज संविधान द्वारा वे मंदिर पुनः प्राप्त करने का अधिकार दिया गया है । यदि आपने असीम घटनाएं की हैं, तो आपसे वापस भी असीम घटनाएं ली जाएंगी । मध्य प्रदेश की जनता भोजशाला का दु:ख सहन कर रही है । विदेशियों ने ये सभी नियंत्रण में ली हैं, यह अनुचित है । इस कारण हमारा सम्मान पुनः प्राप्त करना, यह बहुसंख्यक हिन्दू समाज का अधिकार है ।

६. ज्ञानवापी प्रकरण में ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ (प्रार्थना स्थल कानून) लागू होना असंभव !

हम केवल उसी विषय में बोल रहे हैं, ‘जहां मंदिर, जो हमारे आस्था के केंद्र हैं, तोडकर मस्जिदों का निर्माण किया गया
है ।’ ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ काशी में लागू नहीं हो सकता; क्योंकि वहां मस्जिद में ही शिवलिंग रखा है । जहां अधिकृत मस्जिद अथवा मंदिर का निर्माण किया गया है, वहां ‘प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट’ लागू होता है । इस कारण उस वास्तु में कोई भी परिवर्तन नहीं कर सकता; परंतु यदि मंदिर परिसर का ही मस्जिद के रूप में उपयोग होता होगा; तो यहां वह कानून लागू नहीं होता । यह कानून धार्मिक स्वरूप की चर्चा करता है । वर्ष १९४७ के पूर्व काशी में हिन्दू मंदिर का स्वरूप था ।

– अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, सर्वाेच्च न्यायालय


जो धर्म की रक्षा करता है, उसकी रक्षा धर्म करता है !

‘प्रत्येक व्यक्ति की रक्षा ईश्वर करते हैं । मेरे पिताजी (पू. [अधिवक्ता] हरि शंकर जैनजी) को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पूछा था, ‘क्या आपको सुरक्षा चाहिए ?’, तब मेरे पिताजी ने कहा था, ‘‘मेरी रक्षा मेरे प्रभु श्रीराम कर रहे हैं !’’ इस कारण जिनके साथ ईश्वर एवं सत्य हैं, उन्हें रक्षा का भय नहीं रहता । ‘नथिंग टू गेन एंड नथिंग टू लूज’ (प्राप्त करने जैसा एवं गंवाने जैसा कुछ भी नहीं), ऐसी हमारी स्थिति है । हिन्दू मंदिर वापस मिलने के विषय में मैं सर्वत्र बोलता रहता हूं । हमारे धर्म के साथ जो अन्याय हुआ है, उसके विरुद्ध हम यह संघर्ष कर रहे हैं । यदि मैं चला जाऊं, तो आगे की पीढी संघर्ष जारी रखेगी । यह पीढी एवं संस्कृति के मध्य का युद्ध है । वह चलता रहेगा ।’

– अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन