Church of North India : ‘चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया’ नामक संस्था को विदेशी धनदान लेने पर लगाया प्रतिबंध, अनुज्ञप्ति निरस्त !

  • देश का सबसे बडा ईसाई संगठन !

  • धनदान के नियमों का उल्लंघन !

स्वयंसेवी ईसाई संगठन ‘चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया’

नई देहली – केंद्रीय गृह मंत्रालय ने देश के सबसे बडे स्वयंसेवी ईसाई संगठन ‘चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया’ (सी.एन्.आई.) की एफ्.सी.आर.ए. (विदेशी योगदान नियमन कानून) अनुज्ञप्ति (परवाना) निरस्त की है । विदेशी धनदान के नियमों का उल्लंघन करने के कारण गृह मंत्रालय द्वारा यह कार्यवाही की गई । अब यह संगठन विदेशी धनदान का स्वीकार नहीं कर पाएगा । पीछले ५ दशकों से यह संगठन भारत में ईसाई धर्म का प्रसार कर रहा है । इसे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा तथा यूरोप से धनदान मिलता है ।

१. वर्ष १९७० में ६ विविध संस्थाओं को एकत्रित कर ‘चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया’ की स्थापना हुई । इसके अंतर्गत चर्च ऑफ इंडिया, पाकिस्तान, बर्मा (म्यांमार), सिलोन (श्रीलंका) और अन्य कुछ ईसाई संगठन समाविष्ट हैं । यह संगठन उत्तर भारत के चर्च का नियंत्रण करता है ।

२. संगठन का दावा है कि २२ लाख लोग उसके सदस्य हैं । इसके अतिरिक्त भारत के २८ प्रदेशों में उसके अपने बिशप हैं, जो वहां के चर्च नियंत्रित करते हैं । अन्य एक दावे के अनुसार २ सहस्र २०० से अधिक पादरी और ४ सहस्र ५०० से अधिक चर्च उसके नियंत्रण में हैं ।

३. ‘चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया’ के ५६४ विद्यालय और महाविद्यालय तथा ६० नर्सिंग एवं चिकित्सा महाविद्यालय कार्यरत हैं । लक्ष्मणपुरी का देश में विख्यात ‘लॉ मार्टिनियर कॉलेज’ भी इसमें समाविष्ट है । इसके अतिरिक्त उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड के अनेक मिश्नरी विद्यालय भी इसके अंतर्गत आते हैं ।

‘चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया’ के पादरियों पर १० सहस्र करोड रुपयों की भूमि के घोटालों का आरोप !

‘चर्च ऑफ नॉर्थ इंडिया’ के कुछ पादरियों पर वर्ष २०१९ में १० सहस्र करोड रुपयों की भूमि के घोटालों का आरोप था । इस प्रकरण में संस्था के कुछ पादरियों ने अपने सहयोगियों पर दस्तावेजों में अनियमितता कर सैंकडो एकए भूमि बेचने का आरोप किया था ।

हाल ही में विदेश से धनदान लेकर भ्रष्टाचार करनेवाली अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं की अनुज्ञप्ति निरस्त की गई है । ये स्वयंसेवी संस्थाएं विदेश से प्राप्त धन का लेखा भी ठीक से नहीं रखती थी । ऑक्सफॅम, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च और राजीव गांधी फाऊंडेशन जैसी कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी इसमें समाविष्ट हैं ।

संपादकीय भूमिका 

‘हिन्दुओं के मंदिरों में कथित भ्रष्टाचार का कारण देकर उनका सरकारीकरण करनेवाली सरकारें अब चर्च का सरकारीकरण क्यों नहीं करती ?’, यह प्रश्न अब हिन्दुओं को पूछना चाहिए !