म्हार्दोल (गोवा) में गोमंतक मंदिर-धार्मिक संस्था परिषद संपन्न
म्हार्दोळ, १० दिसंबर (संवाददाता) : गोवा की प्रतिमा संपूर्ण देश में ‘भोगभूमि’ के रूप में प्रचालित हुई है । गोवा अर्थात अर्थ कैसिनो, अर्धनग्न महिलाओं से युक्त समुद्रतट, ‘सनबर्न’ जैसा प्रचार किया जाता है; परंतु क्या सचमुच में यह गोवा की संस्कृति है ? गोवा की मंदिर संस्कृति का प्रचार नहीं किया जाता; परंतु आज के समय में गोवा सरकार ने मंदिर संस्कृति का प्रचार करना आरंभ किया है, जो एक अच्छी बात है । उत्तर प्रदेश में ‘काशी विश्वेश्वर कॉरिडोर’ का (काशी विश्वेश्वर सुसज्जित मार्ग का) निर्माण होने पर वहां एक वर्ष में ८ करोड पर्यटक आए, जबकि गोवा में समुद्रतट होते हुए, कैसिनो खेले जाने के समय, साथ ही ‘सनबर्न’ जैसे महोत्सवों का आयोजन कर भी तथा उसका बडे स्तर पर प्रचार-प्रसार करने के पश्चात भी पिछले एक वर्ष में गोवा में केवल ७३ लाख पर्यटक आए । उत्तर प्रदेश की भांति गोवा में भी मंदिर पर्यटन को आगे बढाया जाना चाहिए; परंतु मंदिर पर्यटन के नाम से केवल पर्यटन नहीं, अपितु मंदिरों की पवित्रता टिकाए रखनेवाले धार्मिक एवं आध्यात्मिक पर्यटन को आगे बढाया जाना चाहिए, ऐसा प्रतिपादन हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे ने किया । सिंहपुरुष सभागार, श्री महालसा देवस्थान, म्हार्दोल, फोंडा में आयोजित ‘गोवा राज्यस्तरीय मंदिर-धार्मिक संस्था परिषद’ को संबोधित करते हुए वे ऐसा बोल रहे थे । इस अवसर पर व्यासपीठ पर गोमंतक मंदिर महासंघ के सचिव श्री. जयेश थळी तथा हिन्दू जनजागृति समिति के धर्मप्रचारक सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी भी उपस्थित थे ।
सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी, ‘सोशल मीडिया इंफ्लूएंजर ’ तथा प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठ श्रीमती शेफाली वैद्य, श्री. रमेश शिंदे एवं श्री. जयेश थळी इन मान्यवरों के करकमलों से दीपप्रज्वलन कर गोमंतक मंदिर-धार्मिक संस्था परिषद का आरंभ किया गया । उसके उपरांत सनातन संस्था के संस्थापक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी, कवळे के श्री गौड पादाचार्य मठ के पीठाधीश प.पू. श्रीमद् शिवानंद सरस्वती स्वामीजी एवं तपोभूमि, कुंडई के सद्गुरु ब्रह्मेशानंदाचार्य स्वामीजी द्वारा परिषद के लिए भेजे गए शुभसंदेश का वाचन किया गया ।
फोंडा के उद्यमी श्री. जयंत मिरींगकर के हस्तों सद्गुरु नीलेश सिंगबाळजी को, महिला सहकारी संस्था की श्रीमती हेमश्री गडेकर के हस्तों श्रीमती शेफाली वैद्य को, हिन्दुत्वनिष्ठ श्री. विनोद वारखंडकर के हस्तों हिन्दू जनजागृति समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री. रमेश शिंदे को तथा हिन्दुत्वनिष्ठ श्री. सत्यवान म्हामल के हस्तों गोमंतक मंदिर महासंघ के सचिव श्री. जयेश थळी को सम्मानित किया गया । उसके उपरांत सचिव श्री. जयेश थळी ने प्रस्तावना करते हुए ‘आज के भागदौडभरे जीवन में केवल मंदिर ही मनःशांति प्रदान करनेवाले केंद्र हैं तथा उसके कारण मंदिरों का संवर्धन एवं जतन होना आवश्यक है । मंदिर के न्यासियों को एक-दूसरे के साथ निकटता बढाकर संगठन को मजबूत करना अतिआवश्यक है’, ऐसा प्रतिपादित किया ।
श्री. रमेश शिंदे ने आगे कहा,
१. गोमंतकवासियों के पूर्वजों ने प्राणों की बाजी लगाकर पोर्तुगिजों के आक्रमणों से मंदिरों की रक्षा की; परंतु इन पूर्वजों के नामों का कहीं पर भी उल्लेख नहीं मिलता ।
२. गोवा के कुछ मंदिरों में न्यासी, महाजन, पुरोहित आदियों में विवाद होने का देखने को मिलता है । इसके कारण ये विवाद न्यायप्रविष्ट बन चुके हैं । आज न्यायालय में ८ करोड अभियोग लंबित हैं तथा न्याय मिलने हेतु पीढी दर पीढी प्रतीक्षा करनी पड रही है । ऐसे न्यायतंत्र से न्याय की अपेक्षा रखना गंभीर बात होगी । मंदिरों के आंतरिक विवादों का संवाद से समाधान किया जाना चाहिए ।
३. न्याय मिलने हेतु हम यदि इस ‘सेक्युलर’ व्यवस्था पर निर्भर रहे, तो आगे जाकर हमें उसके गंभीर परिणाम भुगतने पडेंगे । गोवा को छोडकर अन्य स्थानों पर मंदिरों का सरकारीकरण किया गया है तथा गोवा में ऐसी स्थिति नहीं होनी देनी चाहिए ।
४. मुघलों द्वारा ध्वस्त किए गए अयोध्या के प्रभु श्रीराम के मंदिर का पुनर्निर्माण हो रहा है, जबकि गोवा में पोर्तुगिजों द्वारा ध्वस्त किए गए मंदिरों का पुनर्निर्माण क्यों नहीं हो सकता ? गोवा में भी इस प्रकार के अनेक ‘अयोध्या’ हैं; इसलिए पोर्तुगिजों द्वारा ध्वस्त किए गए मंदिरों का पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए ।
मंदिर शैक्षणिक, सामाजिक एवं अध्यात्म के केंद्र ! – श्रीमती शेफाली वैद्य, ‘सोशल मीडिया इंफ्लूएंजर’ तथा प्रखर हिन्दुत्वनिष्ठपहले गोवा में एक भव्यदिव्य मंदिर संस्कृति थी । ये मंदिर मराठी शिक्षा के तथा संस्कृति के केंद्र थे । इन मंदिरों के माध्यम से गोवा भारतीय संस्कृति के साथ जुड गया । पोर्तुगिजों ने इसे भांपकर हिन्दुओं की इस संस्कृति को नष्ट करने के उद्देश्य से पहले मराठी भाषा में दी जानेवाली शिक्षा बंद की तथा उसके पश्चात मंदिर नष्ट किए । मंदिर शैक्षणिक, सामाजिक एवं अध्यात्म के केंद्र हैं । मंदिर में पहले विद्यालय चलाए जाते थे, साथ ही वहां कीर्तन, भजन एवं पूजा-अर्चना होती थी । उसके कारण हिन्दू बच्चे बचपन से ही मंदिरों के साथ जुड जाते थे । मंदिर एक प्राचीन संस्थाएं हैं तथा उनमें भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के दर्शन होते हैं । मंदिरों की रचना मुखमंडप, सभामंडप, गर्भगृह एवं शिखर इस प्रकार से है तथा इस रचना की मानवीय शरीर से समानता है । मंदिरों में स्थित मूर्तियां तो साक्षात परमात्मा एवं मनुष्य की आत्मा का संबंध दर्शाती हैं । |
संतों के संदेशदेवताभक्तों, मंदिर हिन्दुओं की उपासना के केंद्र बनें ! – सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी, संस्थापक, सनातन संस्थामंदिर में साक्षात भगवान का वास होने से उसे ‘देवस्थान’ कहा जाता है । देवालयों में चलनेवाली नित्य पूजा-अर्चना, अभिषेक आधि धार्मिक अनुष्ठानों के समय, साथ ही आरती के समय साक्षात देवता का चैतन्य प्रक्षेपित होता रहता है; इसलिए मंदिर हिन्दुओं के लिए सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करनेवाले चैतन्य के स्रोत हैं । अनेक लोगों को मंदिर जाने पर मनःशांति का अनुभव होता है । उसके लिए मंदिरों की पवित्रता बनाए रखना आवश्यकता है, अतः हे देवताभक्तों, मंदिर हिन्दुओं की उपासना के केंद्र बनने चाहिएं । मंदिरों एवं धार्मिक संस्थाओं का संगठन बनना समय की मांग ! – प.पू. श्रीमद् शिवानंद सरस्वती स्वामीजी, पीठाधीश, श्री गौड पादाचार्य मठ, कवळे, फोंडागोमंतक मंदिर धार्मिक संस्था परिषद का आयोजन एक प्रशंसनीय उपक्रम है । आज के समय में हिन्दू धर्म पर हो रहे कुठाराघातों का प्रतिकार करने हेतु मंदिरों एवं धार्मिक संस्थाओं का संगठन होना समय की मांग है । इस कार्य के लिए मेरे आशीर्वाद हैं । |
उद्घाटन सत्र के उपरांत विभिन्न विषयों पर उद्बोधन सत्र एवं विचारगोष्ठी संपन्न हुई । इस परिषद में लगभग २५० मंदिरों के न्यासी, समिति के सदस्य, भक्त आदि उपस्थित थे । श्रीमती सुमेधा नाईक एवं श्री. राहुल वझे ने इस परिषद का सूत्रसंचालन किया ।