
अमेरिका की राष्ट्रवादी समाचार वाहिनी ‘फॉक्स न्यूज’ ने राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प एवं ‘डीओजीई’ के (‘डिपार्टमेंट ऑफ गवर्नमेंट एफिशियेंसी’ अर्थात सरकारी कार्यक्षमता विभाग) प्रमुख एलन मस्क से भेंटवार्ता की । उसमें मस्क ने प्रौद्योगिकी, साथ ही राष्ट्रपति के निर्णयों के प्रभावी कार्यान्वयन का महत्त्व रेखांकित किया । उन्होंने कहा कि अपने पहले कार्यकाल में ट्रम्प द्वारा लिए गए निर्णयों का प्रभावी कार्यान्वयन नहीं होता था । लोकतंत्र द्वारा चुने व्यक्ति अर्थात जनता द्वारा लिए गए निर्णयों का अपेक्षित कार्यान्वयन नहीं होता था । उसके कारण ‘क्या अमेरिका में लोकतंत्र के स्थान पर नौकरशाही कार्यरत थी ?’, यह प्रश्न निर्माण हुआ था । इस बार हम प्रौद्योगिकी की सहायता से, साथ ही निर्णयों के कार्यान्वयन के लिए प्रयास कर रहे हैं तथा लोकतंत्र को सबल बनाने के लिए आगे बढे हैं । मस्क के इस वक्तव्य में बहुत कुछ छिपा है । ट्रम्प का राजनीतिक दल दक्षिणपंथी विचारधारावाला अर्थात राष्ट्रवादी विचारों से अभिप्रेत माना जाता है । उसके कारण साम्यवादी तथा वर्तमान समय के ‘वोक’ विकृतिवाले तथा ‘डीप स्टेट’ वाले तिलमिला उठे हैं । ४ माह पूर्व संपन्न हुए राष्ट्रपतिपद के चुनाव में राजधानी वॉशिंग्टन डीसी का विचार किया जाए, तो यहां के ९२ प्रतिशत लोगों ने ‘डीप स्टेट’ की बिचौलिया (दलाल) प्रत्याशी कमला हैरिस को मतदान किया था । इसका अर्थ सीधा है कि अमेरिका का प्रशासन ट्रम्प के लिए प्रतिकूल है । ट्रम्प के पहले कार्यकाल में निर्णयों के कार्यान्वयन के लिए ये प्रशासनिक अधिकारी बाधा सिद्ध हो रहे थे । ट्रम्प ने समय रहते इस बात को गहराई से समझ लिया । उसके कारण वे एक प्रभावशाली, सक्षम, राष्ट्रनिष्ठ तथा सफल व्यक्तित्व की खोज में थे तथा मस्क में उन्हें यह व्यक्तित्व दिखाई दिया । उनके नेतृत्व में उन्होंने कुशाग्र, बुद्धिमान तथा राष्ट्र का विचार करनेवाले लोगों को नियुक्त किया तथा उसके अंतर्गत ‘डीओजीई’ की स्थापना हुई ।
ट्रम्प उनके दूसरे कार्यकाल में अपने देश की नीतियों में सीधा तथा पूरी शक्ति के साथ परिवर्तन लाते हुए दिखाई दे रहे हैं । केवल इतना ही नहीं, अपितु प्रशासन के माध्यम से उसे कार्यान्वित करने के लिए बाध्य करनेवाला ‘डीओजीई’ तो है ही ! संक्षेप में कहा जाए, तो अमेरिकी प्रशासन में एलॉन मस्क ट्रम्प के ‘ट्रम्प कार्ड’ सिद्ध हो रहे हैं । ट्रम्प ने ‘यू.एस.ए.आई.डी.’ के माध्यम से विश्व स्तर पर किए जानेवाले अनावश्यक खर्चे पर रोक लगाने का निर्णय लिया । इसके पीछे भी मस्क की ही सोच थी । ४ वर्ष के कार्यकाल का आरंभ कुछ दिन पूर्व ही हुआ है । आज अमेरिकी सरकार का गठन हुए १ माह पूरा हो गया है; परंतु इतने अल्प समय में उनके द्वारा लिया गया यह निर्णय पिछले अनेक दशकों की भूलों में सुधार लाने की दिशा में एक निर्णायक आरंभ है ।
भारतयुग !

इन बातों को भारत के दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है । प्रधानमंत्री मोदी साढे दस वर्ष पूर्व सत्ता में आए तथा जो निर्णय दशकों से लंबित थे, उन्हें एक के बाद एक लेते गए । ‘वन रैंक वन पेंशन’ के माध्यम से सेवानिवृत्त भारतीय सेनाधिकारियों तथा सैनिकों को न्याय देने के लिए उठाया गया कदम हो अथवा ‘जी.एस.टी.’ अर्थात ‘वस्तुएं एवं सेवा कर’ लागू कर करप्रणाली की जटिलता नष्ट करने का निर्णय हो । आतंकवाद, नक्सलवाद, आपराधिक कृत्य आदि को पोषित करनेवाले काले धन पर प्रहार कर उनकी आर्थिक कमर तोडने के लिए लागू किया हुआ ‘नोटबंदी’ का निर्णय मील का पत्थर सिद्ध हुआ । सामान्य जनता को आनेवाली समस्याएं दूर करने हेतु चलाई गई ‘जन धन योजना’,‘भारत के प्रत्येक गांव में विद्युतीकरण (अर्थात बिजली की सुविधा)’ आदि योजनाओं की संख्या भी बढी है तथा उसके लिए प्रधानमंत्री तथा उनकी सरकार प्रशंसा के पात्र हैं । दूसरे कार्यकाल में अनुच्छेद ३७० रद्द करने के साथ ही पडोस के मुसलमान राष्ट्रों से पलायन कर आए शरणार्थी हिन्दू नागरिकों को नागरिकता दी जाए, इसके लिए लाया गया ‘सीएए २०१९ अधिनियम’ भी एक महत्त्वपूर्ण निर्णय था । कोरोना महामारी का सफलतापूर्वक सामना करने के साथ ही निरंतर सबल बनी विदेश नीति तथा आर्थिक क्षेत्र में लगाई गई छलांग, ये सभी बातें प्रधानमंत्री के उल्लेखनीय नेतृत्व के दर्शक हैं । ६ दशकों से अधिक काल तक कांग्रेस द्वारा की गई देश की दुरवस्था को सुधारना आवश्यक था तथा उस दिशा में सरकार की ओर से पर्याप्त पहल करना एक नए भारतयुग का आरंभ कहा जा सकता है ।
अमेरिका से शिक्षा लें !

डॉनल्ड ट्रम्प ने उनके दूसरे कार्यकाल में अमेरिका को ‘स्वर्णिम युग’ का (‘द गोल्डन एज ऑफ अमेरिका’ का) सपना दिखाते हुए धडाधड निर्णय लिए । इस समय ऐसा कहना साहसिक ही होगा कि ये निर्णय भारत द्वारा लागू किए गए ‘मॉडल’ को सामने रखे गए योजनाबद्ध ढांचे का भाग है । भले ही ऐसा हो, तब भी ट्रम्प ने कुछ दशकों से अमेरिका की मुख्य समस्याओं पर कार्रवाई की । उन्होंने उसका ‘होमवर्क’ अच्छे ढंग से किया है, ऐसा दिखाई देता है । इसमें किसी पर दया नहीं दिखाई जाती । सरकार के सहस्रों कर्मचारियों को नौकरी से मुक्त करने का राष्ट्रीय निर्णय हो अथवा देश में बसे घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने के लिए चलाया जा रहा अभियान हो, ये बातें उनकी सरकार की सक्षमता, राष्ट्रनिष्ठा तथा योजनाबद्धता का दर्शन कराती हैं । ऊपर से भले ही ये आनन-फानन में लिए जा रहे निर्णय लगते हों; परंतु ये निर्णय देश का चेहरा बदलने के लिए अपनाए गए निर्णय हैं । ये निर्णय विचारपूर्वक लिए गए हैं अथवा नहीं, यह तो आनेवाला समय बताएगा; परंतु चाहे कुछ भी हो, प्रयास अच्छा है तथा अमेरिका की दृष्टि से अभिनंदन के पात्र हैं । अमेरिका जहां घुसपैठ की समस्या को शाश्वतरूप से समाप्त करने के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास कर रहा है, वैसा प्रयास ५ करोड घुसपैठियों को सहन कर रहे भारत को क्यों नहीं करना चाहिए ? प्रायोगिक स्तर पर अमेरिका तथा भारत की किसी भी सूत्र के संदर्भ में तुलना करना उतना युक्तिसंगत नहीं हो सकता, कुछ विचारक ऐसा कहते हैं । दोनों देशों की सामाजिक व्यवस्था, वैचारिक दिशा, जनसंख्या, धर्मांधता, विश्व पटल पर उनकी छवि, अर्थव्यवस्था आदि विभिन्न पहलुओं में अंतर है, यह स्वीकार्य है; परंतु भारत सरकार को ‘निर्णय लेने की गति तथा उनकी कार्य शैली पर विचार करना आवश्यक है’, देश की संवेदनशील जनता को ऐसा लगता है । प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में विश्व को आश्चर्यचकित करनेवाले एलन मस्क अब अमेरिकी राजनीति में भी उसी प्रकार की क्रांति करने निकले हैं । आरंभ में किसी भी क्रांति का ‘विरोध’ ही होता है । क्रांतिकारी की भले ही दूरदृष्टि हो, तब भी ‘परिवर्तन का भय’ तथा ‘परिवर्तन के विषय में असुरक्षा की भावना’ मानवसमूह का गुणधर्म है । उसके कारण मस्क ने उनके व्यावसायिक क्षेत्र में जो निर्णय लिए, उसे विश्व ने मूर्खतापूर्ण ठहराया; परंतु इसमें मस्क के सफल होने पर विश्व को उनका पुरुषार्थ स्वीकार करना पडा । अमेरिकी नीतियों में अब उसका अनुभव हो रहा है ! यदि भारत ने भी इसी प्रकार से अपनी दिशा रखी तथा ‘सनातन राष्ट्र’ का शंखनाद कर इतिहास रचा, तो अमेरिका को पीछे रखकर ‘भारत का स्वर्णिम युग’ आने में समय नहीं लगेगा, यह ध्यान में रखें !
यदि सरकारी स्तर पर क्रांतिकार्य किया गया, तो उससे स्वर्णिम युग आने में समय नहीं लगेगा, यह जानकर कमर कसना समय की मांग है ! |