जिहादियों की क्रूरता और हिन्दुओं का आक्रोश : ‘द कश्मीर फाइल्स’

फिल्म समालोचन

कश्मीर में १९ जनवरी १९९० के दिन और उसके उपरांत निश्चित रूप से क्या हुआ ?, कश्मीर में हुए हिन्दुओं के वंशविच्छेद का दायित्व किसका है ?, जब दिनदहाडे कानून-व्यवस्था को साख पर बिठाया जा रहा था, तब पुलिस, प्रशासन और प्रसारमाध्यम नाकाम क्यों रहे ?, हिन्दू स्वयं की रक्षा क्यों नहीं कर सके ?, कश्मीर की तत्कालीन सरकार ने इस वंशविच्छेद की किस प्रकार सहायता की ?, आज कौन से लोग उस परिस्थिति का लाभ उठा रहे हैं ? इन और ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर खोजने के लिए प्रवृत्त करनेवाली अप्रतिम फिल्म है ‘द कश्मीर फाइल्स’ ! श्री. विवेक रंजन अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित यह फिल्म ११ मार्च को पूरे विश्व में प्रदर्शित हुई । ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों के विशेष प्रतिनिधि श्री. सागर निंबाळकर द्वारा की गई इस फिल्म की समालोचना यहां दे रहे हैं ।

१. जिहादी आतंकवाद की वास्तविकता से भिडनेवाली अप्रतिम फिल्म !

अ. उत्कृष्ट कथा-पटकथा, अप्रतिम छायाचित्रण, कलाकारों का सुयोग्य चुनाव, परिणामकारी निर्देशन, उच्चतम निर्मितिमूल्य एवं स्थल, दिनांक और प्रमाण सहित किया गया घटनाओं का उल्लेख इस फिल्म की शक्ति के स्रोत हैं ।

आ. यह फिल्म कश्मीर की तत्कालीन स्थिति पर प्रकाश डालती है । पडोसी मित्र के रूप में रहनेवाले धर्मांधों द्वारा ही हिन्दुओं से द्रोह करना, धर्मांधों द्वारा अच्छे प्रशासनिक अधिकारियों को काम न करने देना, पुलिस अधिकारी को चुप रहने के लिए ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से सम्मानित करना, व्यवस्था के कारण पत्रकारों का दमनतंत्र सहन करना, शरणार्थी शिविरों में विस्थापित हिन्दुओं का दमन होना, स्वयं के नाती-पोते को भी धर्मांधों के अत्याचार न बता पाना इत्यादि हिन्दुओं द्वारा सहे गए अन्याय और अत्याचारों को जनमानस पर अंकित करने में यह फिल्म सफल रही है ।

इ. इस फिल्म में कदम-कदम पर ‘पूरे विश्व में कश्मीरी हिन्दुओं की व्यथा पहुंचे’; इसके लिए हिमालय जितनी लालसा प्रतीत होती है । जिहादी आतंकी और उनके संरक्षकों (उदा. राजकर्ता, निष्क्रिय अधिकारी, बुद्धिजीवी, धर्मनिरपेक्षतावादी इत्यादि) के विरुद्ध असंतोष जागृत करने में यह फिल्म सफल रही है ।

ई. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कश्मीरी युवक को ही कश्मीरी पंडितों के विरुद्ध उकसाया जाता है । ऐसे विश्वविद्यालयों में ‘आजादी’ के नाम पर विभाजनकारी शक्तियों को बल दिया जाता है, इस सूत्र को इस फिल्म में दृढता के साथ रखा गया है ।

उ. ‘आज कश्मीर जल रहा है, तो कल संपूर्ण भारत जलेगा !’, कश्मीरी हिन्दुओं को न्याय क्यों नहीं मिलता ?’, ‘कश्मीरी हिन्दू अपने ही देश में विस्थापित क्यों बन गए हैं ?’, ‘कश्मीरी हिन्दुओं की दुर्दशा के लिए सर्वसामान्य हिन्दू भी उत्तरदायी हैं’, इन जैसे अनेक संवाद दर्शकों को अंतर्मुख बनाते हैं । इसके अतिरिक्त मुख्य किरदारों के अतिरिक्त अन्य किरदारों के द्वारा पृष्ठभूमि पर बोले गए संवाद और कश्मीरी गीत इस फिल्म की धार को तीव्र बनाते हैं ।

२. श्री. अनुपम खेर और अन्य कलाकारों का सर्वाेत्कृष्ट अभिनय !

श्री. सागर निंबाळकर

इस फिल्म में वरिष्ठ अभिनेता अनुपम खेर ने जो अप्रतिम अभिनय किया है, उसके लिए उनका सम्मानपूर्वक उल्लेख किया जाना चाहिए । मूलतः कश्मीरी रहे श्री. खेर के चेहरे पर प्रकट प्रत्येक भाव कश्मीरी हिन्दुओं की व्यथा को सीधे दर्शकों के हृदय तक पहुंचाते हैं । श्री. खेर ने अबतक के उनके अभिनय-जीवन की सर्वाेत्कृष्ट भूमिका साकार की है । चिन्मय मांडलेकर, मिथुन चक्रवर्ती, दर्शन कुमार, पल्लवी जोशी सहित सभी कलाकारों ने ही अपने सर्वाेत्कृष्ट अभिनय से इस फिल्म को उच्चतम स्तर तक पहुंचाया है । उसके कारण दर्शक कभी दुखी होता है, कभी उत्कृष्ट संवाद के लिए तालियां बजाता है, कभी राष्ट्रप्रेमी नारा लगाता है, तो कभी आतंकियों को गालियां भी देता है ।

३. ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म निर्देशक श्री. विवेक रंजन अग्निहोत्री का असामान्य साहस ही है !

आजतक किसी ने भी ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी फिल्म बनाने का साहस नहीं दिखाया है । यह फिल्म बनाते समय श्री. विवेक रंजन अग्निहोत्री को धर्मांध और फिल्मजगत के प्रस्थापितों द्वारा तीव्र विरोध का सामना करना पडा, वे तब भी डगमगाए नहीं । इसके आगे कदाचित श्री. अग्निहोत्री पर धर्मांधों द्वारा आक्रमण भी किए जा सकते हैं । उन्होंने इस फिल्म में सस्ती लोकप्रियता पाने के लिए कोई भी अतिरंजित प्रसंग, प्रेमकथा अथवा गाने नहीं घुसाए हैं । ‘कश्मीर में हिन्दुओं का वंशविच्छेद ही हुआ है’, यह फिल्म यही रेखांकित करती है । यह फिल्म इस अन्याय को उजागर करती है । यह फिल्म केवल हिन्दू ही नहीं, अपितु पूरे विश्व के गैरमुसलमानों पर भी ऐसी स्थिति न आए; इसके लिए दर्शकों की आंखों में झनझनाता हुआ नेत्रांजन भी डालती है ।

४. हिन्दुओं का आवाहन और श्रीगुरुचरणों में प्रार्थना !

प्रत्येक हिन्दू को ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म बनाने के लिए श्री. अग्निहोत्री की केवल प्रशंसा कर ही नहीं रुकना चाहिए । फिल्मजगत के १०० वर्ष के इतिहास में ऐसी एकाध ही फिल्म बन सकती है । सहस्रों करोड की कमाई करनेवाली किसी भी मनोरंजक फिल्म की अपेक्षा यह फिल्म अनेक गुना श्रेष्ठ है । इस फिल्म से मिलनेवाले पैसे आतंकवाद को बल देनेवाले कलाकारों को नहीं मिलेंगे । यह फिल्म देखनेवाले प्रत्येक हिन्दू में आतंकवाद के विरुद्ध क्षोभ जागृत हो और उसे राष्ट्र एवं धर्म के लिए कार्यरत होने की प्रेरणा मिले, यह श्रीगुरुचरणों में प्रार्थना !

– श्री. सागर निंबाळकर, ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों के विशेष प्रतिनिधि, कोल्हापुर.

इस फिल्म के हृदय विदीर्ण करनेवाले कुछ भयानक प्रसंग !

१. हिन्दू महिला को उसके बच्चे और ससुर के प्राण बचाने के लिए रक्तमिश्रित चावल खाने के लिए बाध्य बनाना

२. भरे चौक पर प्रशासनिक अधिकारियों की हत्या करना और तिरंगा ध्वज हटा देना

३. धर्मांध महिलाओं द्वारा हिन्दू महिलाओं को राशन का अनाज मिलने न देकर आतंकी कृत्यों में सम्मिलित होने के लिए बाध्य करना

४. मुसलमानों पर कविता की रचना करनेवाले हिन्दू को भी मारकर उसे पेड पर लटका देना

५. भागकर जानेवाली एक हिन्दू युवती को मिठाई के डिब्बे में मूत्रविसर्जन करने के लिए बाध्य करना

६. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में (‘जेएनयू’ में) किया जानेवाला हिन्दू युवकों का भयानक दिशाभ्रम (ब्रेनवॉशिंग)

७. चिकित्सालय में भी हिन्दुओं को उपचार न मिलने देना और आतंकी के लिए रक्तदान करनेवाले हिन्दू के रक्त की बोतल फोडकर उसके द्वारा दिया गया रक्त व्यर्थ गंवाना

८. हिन्दुओं के वंशविच्छेद के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्ला और तत्कालीन केंद्रीय गृहमंत्री गुलाम नबी आजाद का गुप्त समर्थन होना, साथ ही तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी का निष्क्रिय रहना

९. सभी लोगों के सामने हिन्दू महिला के कपडे फाड देना और उसे गोदाम में स्थित आरे से खडा चीर देना

१०. अत्यंत निर्दयता से २५ लोगों को एक के पश्चात एक मार डालना

क्षणिकाएं

१. संपूर्ण फिल्मघर दर्शकों से खचाखच भरा था; परंतु उनमें एक भी धर्मांध दर्शक नहीं था ।

२. शहर में दिन में केवल दो फिल्मघरों में इस फिल्म के केवल तीन शो ही दिखाए जा रहे हैं; परंतु इन तीनों शोज की सभी टिकटों की बिक्री अंतरिम पद्धति से (एडवान्स) हुई थी ।

३. दर्शकों में अधिकांश युवकों सहित मध्यम आयुसमूह के लोग भी अंतर्भूत थे ।

– श्री. सागर निंबाळकर, कोल्हापुर

विगत १५ वर्षाें से कश्मीरी हिन्दुओं के लिए कार्यरत हिन्दू जनजागृति समिति की प्रदर्शनी का स्मरण होना !

‘हिन्दू जनजागृति समिति’ की ओर से वर्ष २००७ से लेकर ‘फाऊंडेशन अगेन्स्ट कंटिन्युइंग टेररिज्म’ (फैक्ट) संस्था की ओर से कश्मीरी हिन्दुओं के साथ किया गया अन्याय दर्शानेवाली ‘… और विश्व शांत रहा !’, यह जनजागरण करनेवाली प्रदर्शनी लगाई जाती थी । इस प्रदर्शनी में स्थित अनेक प्रसंग देखकर वास्तविकता के भयानक दर्शन होते हैं ।’
– श्री. सागर निंबाळकर, कोल्हापुर

प्रसारमाध्यमों का हिन्दूद्वेष !

बॉलीवूड में हिन्दूद्वेषी और धर्मांधप्रेमी फिल्मों की फसल उग आई है । कथित समालोचक ऐसी फिल्मों को अपने सिर पर उठा लेते हैं और आज के प्रमुख प्रसारमाध्यमों में इस प्रकार की समालोचना प्रसारित की जाती है; परंतु हिन्दुओं के अत्याचारों को उजागर करनेवाली फिल्म ‘द कश्मीर फाइल्स’ की समालोचना करना तो दूर; अपितु अधिकांश प्रसारमाध्यम उस विषय में कुछ टिप्पणी करने के लिए भी तैयार नहीं हैं । आनेवाले समय में हिन्दुओं ने ऐसे प्रसारमाध्यमों का बहिष्कार किया, तो उसमें अनुचित क्या है ?

– श्री. सागर निंबाळकर

दर्शकों की कुछ प्रतिक्रियाएं !

१. ‘इस फिल्म में दर्शकों को सहन हों और उन्हें ‘सेन्सर’ की अनुमति मिले, ऐसे ही दृश्य दिखाए गए हैं । उस समय की स्थिति इससे भी अधिक भयानक थी । उस समय हिन्दू महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार करना, उनके पतियों के सामने उन पर अत्याचार करना इत्यादि ने मानवता की सभी सीमाएं लांघ दी थीं ।’
– एक भारतीय सैनिक,

२. ‘हम सिंधी पाकिस्तान से भारत आए; परंतु कश्मीर को पाकिस्तान बनाने के लिए किए जा रहे कृत्य देखकर हमारा अंतःकरण विदीर्ण हो गया । तत्कालीन राजकर्ताओं को फांसी दी जानी चाहिए ।’
– एक सिंधी नागरिक

३. ‘यह फिल्म देखकर हिन्दुओं को बोध लेना चाहिए । आज के समय में धर्मांध मित्रों से कितनी निकटता रखनी चाहिए, एक न एक दिन यह सुनिश्चित करना ही पडेगा । आज के समय में हिन्दुओं के अस्तित्व पर ही संकट मंडरा रहा है । उसके लिए समय रहते ही कुछ करना होगा ।‘
– दो हिन्दू युवक