सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी (गुरुदेवजी) ने वर्ष १९९८ में ५६ वर्ष की आयु में यह विचार सार्वजनिक रूप से रखा कि ‘भारत में हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना’ ही हिन्दुओं की सामाजिक, राष्ट्रीय एवं धार्मिक समस्याओं का एकमात्र उपाय है ।’ ‘केवल भारत में ही नहीं, अपितु पृथ्वी पर सर्वत्र ‘हिन्दू राष्ट्र (ईश्वरीय राज्य, सनातन धर्म राज्य, रामराज्य) स्थापित करना’, यह केवल राजनीतिक, सांस्कृतिक, वांशिक अथवा भौगोलिक प्रक्रिया नहीं है, अपितु वह मुख्य रूप से आध्यात्मिक प्रक्रिया है’, यह उन्होंने समय-समय पर स्पष्ट किया है । इसके लिए वे ८३ वर्ष की आयु में भी कार्यरत हैं !

१. हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के संदर्भ में आध्यात्मिक स्तर पर दिशा देनेवाले एकमात्र सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी (गुरुदेवजी)
अनेक विचारकों ने ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द की व्याख्या भूप्रदेश, इतिहास, संस्कृति एवं तत्त्वज्ञान के आधार पर की है, परंतु गुरुदेवजी ने ‘हिन्दू राष्ट्र’ का विषय आध्यात्मिक दृष्टिकोण से प्रतिपादित किया है ।
अ. गुरुदेवजी ने ‘विश्वकल्याण के लिए कार्यरत सत्त्वगुणी लोगों (शासक व प्रजा) का राष्ट्र’, ऐसी ‘हिन्दू राष्ट्र’ शब्द की आध्यात्मिक व्याख्या की है । वे स्वयं ‘हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के लिए आवश्यक सत्त्वगुणी समाज की रचना हेतु प्रयत्नरत हैं ।
आ. ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना केवल शारीरिक अथवा मानसिक स्तर के प्रयासों से नहीं होगी; अपितु उसके लिए आध्यात्मिक स्तर पर भी प्रयास करना आवश्यक है’, ऐसा मार्गदर्शन गुरुदेवजी कर रहे हैं । हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए वे स्वयं भी आध्यात्मिक स्तर पर कार्यरत हैं ।
२. गुरुदेवजी द्वारा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु ‘क्षात्रधर्म साधना’ की सीख
‘क्षात्रधर्म साधना’ अर्थात धर्म की ग्लानि होने पर काल की आवश्यकता के अनुरूप सत्त्वगुणी मानवों की रक्षा एवं दुष्प्रवृत्तियों को संवैधानिक मार्ग से दूर करने के लिए सभी वर्ण के लोगों द्वारा की जानेवाली साधना ! गुरुदेवजी वर्ष १९९६ से यह साधना बता रहे हैं । यह साधना बतानेवाले गुरुदेवजी आधुनिक काल के पहले संत हैं !
३. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु गुरुदेवजी का वैचारिक स्तर का कार्य
३ अ. हिन्दू राष्ट्र-स्थापना सम्बन्धी ग्रन्थमाला का निर्माण : गुरुदेवजी ने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की भूमिका स्पष्ट करने के लिए ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ सम्बन्धी ग्रन्थमाला का संकलन किया है एवं उसमें ‘ईश्वरीय राज्य की स्थापना’, ‘हिन्दू राष्ट्र क्यों आवश्यक है ?’, ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना की दिशा’, ‘हिन्दू राष्ट्र : आक्षेप एवं खण्डन’ इत्यादि ग्रन्थों का समावेश है ।
३ आ. हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के कार्य के लिए समाजमन को तैयार करनेवाला नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’ आरम्भ करना
३ आ १. गुरुदेवजी ‘सनातन प्रभात’ के संस्थापक-सम्पादक : ‘सन्तों को आगामी काल की अचूक पहचान होती है । गुरुदेवजी ने दूरदृष्टि से ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ के ध्येय हेतु प्रयत्नशील ‘सनातन प्रभात’ की नींव रखी ।
गुरुदेवजी ने ३०.४.१९९८ को साप्ताहिक ‘सनातन प्रभात’ आरंभ किया तथा दैनिक के गोवा-सिंधुदुर्ग संस्करण का प्रारंभ ४.४.१९९९ को हुआ । वर्तमान में ‘सनातन प्रभात’ ‘मराठी दैनिक के ४ संस्करण (‘गोवा-सिंधुदुर्ग’, ‘मुंबई, ठाणे, रायगड, उत्तर महाराष्ट्र एवं विदर्भ’, ‘पश्चिम महाराष्ट्र एवं मराठवाडा’ तथा ‘रत्नागिरी’ संस्करण), मराठी एवं कन्नड में साप्ताहिक तथा हिन्दी एवं अंग्रेजी में पाक्षिक’, इस रूप में प्रकाशित किया जा रहा है । गुरुदेवजी स्वयं इस नियतकालिक के संस्थापक-संपादक हैं । उन्होंने १९.४.२००० तक ‘संस्थापक-संपादक’ इस नाते ‘सनातन प्रभात’ का कार्यभार संभाला । ‘इतने उच्च स्तर के संत किसी नियतकालिक के संस्थापक-संपादक होना’, यह अवश्य ही पत्रकारिता के इतिहास की एकमात्र घटना होगी !’
३ आ २. ‘सनातन प्रभात’ के मुख्य उद्देश्य
१. समाज, राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए हिन्दुओं में जागृति करना
२. हिन्दुओं को धर्मशिक्षा देना एवं धर्मद्रोही विचारों का खंडन करना
३. हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के लिए आवश्यक वैचारिक दिशा देना
४. भारत विरोधी एवं हिन्दू विरोधी झूठे कथानकों का (‘नैरेटिव्स’ का) स्वरूप उजागर करना
३ आ ३. ‘सनातन प्रभात’ की पत्रकारिता की कुछ विशेषताएं
३ आ ३ अ. आर्थिक हानि सहकर भी कार्यरत : समाजसहायता, राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति हेतु आर्थिक हानि सहकर भी चलाया जानेवाला ‘सनातन प्रभात’ एकमात्र नियतकालिक है ।
३ आ ३ आ. हिन्दुत्वनिष्ठों के आन्दोलनों का वैचारिक समर्थन करना
३ आ ३ इ. हिन्दुओं पर होनेवाले आघातों को निरन्तर उजागर करना : हिन्दू धर्मश्रद्धाओं का खण्डन तथा ‘लव जिहाद’, छल-बल-कपट से किए जानेवाले हिन्दुओं के धर्म-परिवर्तन, हिन्दुत्वनिष्ठों की हत्या आदि आघात ‘सनातन प्रभात’ जगत के सामने उजागर करता है ।
३ आ ३ ई. समाचारों को दृष्टिकोणात्मक सम्पादकीय टिप्पणी देने की अभिनव पद्धति : गुरुदेवजी जब ‘सनातन प्रभात’ के सम्पादक पद पर थे, तब उन्होंने समाचारों को समाज, राष्ट्र एवं धर्म के हित के दृष्टिकोण की सम्पादकीय टिप्पणी देने की अभिनव पद्धति पहले ही अंक से प्रारम्भ की । इसलिए समाचारों को सम्पादकीय दृष्टिकोण सहित देनेवाला ‘सनातन प्रभात’ संसार का एकमात्र नियतकालिक है ।
३ आ ३ उ. पाठकों को क्रियाशील बनानेवाला लेखन : ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित किए जानेवाले लेख एवं स्तम्भ पाठकसंख्या बढाने के लिए नहीं होते, अपितु पाठकों की व्यष्टि एवं समष्टि साधना अच्छी होने तथा उन्हें राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति का कार्य करने की दिशा देने हेतु होते हैं ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (४.४.२०१७)
समाज, राष्ट्र एवं धर्म के हित का दृष्टिकोण देनेवाले इन नियतकालिकों से प्रेरणा लेकर अनेक लोग राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति का कार्य, साथ ही साधना भी करने लगे हैं ।
३ आ ३ ऊ. व्यंगचित्र नहीं, अपितु बोधचित्र ! : ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित होनेवाले बोधचित्रों के माध्यम से गुरुदेवजी ने मनोरंजक व्यंगचित्रों की अपेक्षा समाज को राष्ट्र एवं धर्म हित का बोध करानेवाले चित्रों की अवधारणा पत्रकारिता के विश्व में पहली बार प्रारम्भ की ।
३ आ ३ ए. समाचार निर्माण करनेवाला समाचार-पत्र ! : ‘केवल समाचार छापनेवाला नहीं, अपितु समाचार निर्माण करनेवाला समाचार-पत्र है ‘सनातन प्रभात’ !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (२०.३.१९९९)
३ आ ३ ऐ. पाठकों को साधना करने के लिए प्रेरित करनेवाले लेखन का समावेश : ‘सनातन प्रभात’ में ३० प्रतिशत लेखन साधना के सन्दर्भ में होने के कारण पाठकों का अध्यात्म से परिचय होता है, जिससे कुछ लोग साधना करना आरम्भ कर जीवन सार्थक करते हैं । इसके विपरीत, अधिकतर नियतकालिकों में १ प्रतिशत लेखन भी साधना के सन्दर्भ में नहीं होता, जिससे पाठकों को उनका सही अर्थों में लाभ नहीं होता ।’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले (१८.५.२०१९)
३ आ ३ ओ. निष्काम भाव से सेवा करनेवाले साधक : ‘सनातन प्रभात’ के संवाददाताओं से लेकर सम्पादक तक कोई भी वेतन नहीं लेता । ‘हिन्दुत्वनिष्ठ विचारों का नियतकालिक चलाना’ कितना कठिन है !’, इसकी कल्पना कोई भी कर सकता है । गुरुदेवजी द्वारा प्रशिक्षित साधकों के कारण ही पिछले २७ वर्षों से ये नियतकालिक जारी हैं !
३ आ ४. ‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से साधक, पाठक एवं धर्मप्रेमियों को तैयार करनेवाले गुरुदेवजी ! : गुरुदेवजी ने अपने कार्यकाल में सम्पादन के सन्दर्भ में सेवा कर रहे साधकों को राष्ट्रनिष्ठ एवं धर्मनिष्ठ पत्रकारिता सिखाई, साथ ही उन्होंने इन साधकों के मन पर यह विचार भी अंकित किया कि ‘पाठक को प्रत्येक घटना को समाज, राष्ट्र एवं धर्म के हित की दृष्टि से देखना सिखाना चाहिए ।’ ‘राष्ट्रद्रोहियों एवं धर्मद्वेषियों पर प्रहार, सामाजिक कुरीतियों का निर्भीक विरोध एवं सिद्धान्तनिष्ठा’, ये ‘सनातन प्रभात’ की विशेषताएं उनकी ही देन है । ‘सनातन प्रभात’ की एक अन्य विशेषता यह है कि लाखों की संख्या में बिकनेवाले अन्य दैनिकों के पाठक जो नहीं कर सकते, ऐसा राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति का कार्य ‘सनातन प्रभात’ के कुछ हजार पाठक कर रहे हैं !
गुरुदेवजी के मार्गदर्शन के कारण ही आज ‘सनातन प्रभात’ हिन्दुत्व का कार्य करनेवालों के लिए मार्गदर्शक बन गया है !
३ आ ५. गुरुदेवजी द्वारा आज भी समाज का मार्गदर्शन करनेवाला लेखन ‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से करना : वर्ष २०१५ से ‘सनातन प्रभात’ नियतकालिकों में गुरुदेवजी का ‘ओजस्वी विचार’ यह स्तम्भ प्रकाशित हो रहा है । गुरुदेवजी का राष्ट्र, धर्म एवं विभिन्न तत्कालीन विषयों पर समाज का मार्गदर्शन करनेवाला लेखन भी ‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से समय-समय पर प्रकाशित होता रहता है ।
३ आ ६. नियतकालिक सनातन प्रभात द्वारा ‘प्रिंट’ के साथ, ‘डिजिटल’ एवं ‘सोशल’ जैसे मीडिया समूह का स्वरूप धारण करना : sanatanprabhat.org इस मराठी, हिन्दी, कन्नड एवं अंग्रेजी, इन ४ भाषाओं में उपलब्ध जालस्थल (वेबसाइट) के माध्यम से प्रतिदिन राष्ट्र-धर्म पर आधारित समाचार प्रसारित किए जाते हैं । इसके साथ ही ई-पेपर, सोशल मीडिया माध्यम, यूट्यूब चैनल आदि के माध्यम से एवं अधिक व्यापक होकर सनातन प्रभात ने ‘प्रिंट’ के साथ, ‘डिजिटल’ एवं ‘सोशल’ जैसे मीडिया समूह का स्वरूप धारण किया है ।
३ इ. अन्तरजाल (इण्टरनेट) की समाचार-वाहिनी ‘हिन्दू वार्ता’ के संकल्पक ! : ‘प्रमुख समाचार-वाहिनियां हिन्दुओं पर होनेवाले अन्याय एवं अत्याचारों के समाचार प्रसारित नहीं करते । अतः सामान्य हिन्दू धर्मसंकटों के सन्दर्भ में अनभिज्ञ रहते हैं ।’ इसलिए गुरुदेवजी ने वर्तमान में लोकप्रिय अन्तरजाल के माध्यम से ‘सनातन प्रभात’ में प्रकाशित समाचारों को दृश्य-श्रव्य स्वरूप में प्रसारित करने की अवधारणा प्रस्तुत की । २९ दिसंबर २०१४ से २९ जनवरी २०१६ में अर्थात १३ मास चले इस उपक्रम द्वारा हिन्दुओं की समाचार-वाहिनी की नींव रची गई । समाज में उचित विचारों का प्रसार होने हेतु वे स्वयं ‘हिन्दू वार्ता’ के समाचार प्रसारण का कार्यक्रम अन्तरजाल से प्रक्षेपित होने से पूर्व देखते थे तथा उसमें आवश्यक सुधार बताते थे । भविष्य में हिन्दुओं के सहयोग से ‘हिन्दू दूरदर्शन वाहिनी’ आरम्भ होगी ।
(क्रमश:)
(संदर्भ ग्रंथ : ‘विश्वकल्याण हेतु हिन्दू राष्ट्र का उद्घोष करनेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. जयंत आठवलेजी का संक्षिप्त चरित्र !’)