फ्रेंच यात्री तावर्निए द्वारा गंगाजी के जल की स्वच्छता के विषय में किया लेखन

गंगा सप्तमी अर्थात गंगोत्पत्ति (३ मई) के उपलक्ष्य में…

गंगा स्नान की प्रतीकात्मक चित्र

१. मूर्तिपूजक ब्राह्मणों द्वारा गंगाजी का स्वच्छ क्षेत्र पानी लेकर ९०० कि.मी. से अधिक दूर बिक्री हेतु ले जाना !

१७ वीं शताब्दी के एक फ्रेंच यात्री तावर्निए गंगाजी के जल के विषय में हमें थोडीसी जानकारी देते हैैं ।

‘इन सभी बातों की अपेक्षा गंगाजी का जल पीने की मूर्तिपूजकों की प्रबल इच्छा होती है; क्योंकि उनकी मान्यता है कि उसे पीने के उपरांत उनके सभी पाप धुल जाते हैं । इसलिए प्रतिदिन ये ब्राह्मण बडी संख्या में गंगाजी के सबसे स्वच्छ क्षेत्र से लगभग बाल्टीभर जल, छोटे मुखवाली मिट्टी की मटकियों में भरने के लिए जाते दिखाई देते हैं । उसमें जल भर लेने के उपरांत इन मटकियों को मुख्य पुरोहित के पास ले जाया जाता है । उसके पश्चात वह पुरोहित इन मटकियों के मुख मुलायम भगवा रंग के ३ – ४ गज कपडे से बांधने के लिए कहता है तथा उसपर उसकी मुद्रा अंकित करता है । ये ब्राह्मण एक सपाट लकडी के सिरों पर बंधी हुई ६ छोटी रस्सियों से १-१ मटकी लटकाकर ले जाते हैं । मटकियों को ले जाते समय वे अनेक बार कंधा बदलकर थोडासा अवकाश लेते हैं तथा कभी-कभी तो वे इतना बोझ लेकर ३०० – ४०० लीग (लगभग ९६५ से १२८५ कि.मी.) की दूरी भी पार करते हैं । वहां जाकर वे इस जल को बेचते हैं अथवा जो धनी व्यक्ति उन्हें कोई पुरस्कार दे सकता है, ऐसे व्यक्ति को उपहार के रूप में देते हैं ।’

२. मटकी में भरा जल प्रदूषित न हो; इसके लिए उस काल के अनुसार प्रचलित पद्धति से ध्यान रखना !

अतीत को आधुनिक शास्त्र के नियम लागू नहीं किए जा सकते; परंतु ‘नदी के कौनसे क्षेत्र से गंगाजल भरना है, इसका ज्ञान तत्कालीन मान्यताओं के अनुसार लोगों को था ।’ यह इससे स्पष्ट होता है । इसके साथ ही मटकी में भरा जल प्रदूषित नहीं होगा, इसका भी ध्यान तत्कालीन मान्यता के अनुसार वे लेते थे, यह इससे स्पष्ट होता है । तावर्निए बताते हैैं कि यह जल लेकर ये लोग लगभग ३००-४०० लीग अर्थात लगभग उतने ही कोस मान लें तथा उसकी दोगुनी अर्थात लगभग ६०० से ८०० मील अर्थात ९६५ से १ सहस्र २८५ कि.मी. की दूरी पार करते थे । इसमें दोगुनी अतिशयोक्ति है, ऐसा भी यदि मान लिया जाए, तब भी लगभग ५०० से ६०० कि.मी. की यह एक प्रकार की कांवडयात्रा ही थी तथा यह १७ वीं शताब्दी के मार्गाें से की गई पैदल यात्रा है !

आज भी गंगा का पानी खराब नहीं होता

३. गंगाजी का पानी कभी दूषित न होना अथवा उसमें कीडे न होना, इस विषय में तावर्निए द्वारा बताया जाना

इसके आगे जाकर वह यह भी बताते हैं कि ‘गंगाजी के जल का इतना महत्त्व होने का मुख्य कारण है कि वह कभी दूषित नहीं होता तथा उसमें कीडे नहीं होते; परंतु गंगाजी में निरंतर छोडे जानेवाले शवों की संख्या देखी जाए, तो ऐसा कहना कितना विश्वसनीय है ?, यह बडा प्रश्न है ।’ (तत्कालीन काल में कुछ अवधारणाओं के कारण गंगाजी के पानी में शव छोडे जाते थे; परंतु वर्तमान में यह प्रथा बंद की गई है । – संपादक)

गंगाजी के विषय में उन्होंने और बहुतसी जानकारी दी है; परंतु तावर्निए ने लगभग ३५० वर्ष पूर्व, वर्तमान समय में गंगाजी के जल के प्रति श्रद्धालुओं की भावनाएं तथा इस सन्दर्भ में दूसरों से पूछे जा रहे प्रश्नों  का जो निरीक्षण लिखा है, वह बहुत चौंकानेवाला है; परंतु इन सभी में शतकों से गंगाजी का जल इस विषय से अछूता रहते हुए हमारे सामने ‘कालातीत’ शब्द के अर्थ को उजागर करता हुआ अनवरत बहता जा रहा है ।

– सर्वश्री सत्येन वेलणकर एवं रोहित सहस्रबुद्धे, पुणे, महाराष्ट्र (१३.३.२०२५)