जयपुर (राजस्थान) – यहां २००८ के बम विस्फोटों से संबंधित एक महत्वपूर्ण प्रकरण में एक विशेष न्यायालय ने चार जिहादी आतंकवादियों को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई । उनके नाम सरवर आज़मी, सैफुर रहमान, मोहम्मद सैफ और
तथा शाहबाज़ अहमद हैं । विशेष बात यह है कि दंड सुनाए जाने के बाद भी सभी दोषी आतंकवादी मुस्कुराते हुए न्यायालय कक्ष से बाहर निकले । उनके चेहरे पर भय का लेशमात्र भी भाव नहीं था । (जिहादी आतंकवादी जानबूझकर और जानबूझकर अपने धर्म के लिए जिहाद के रूप में हिन्दुओं के विरुद्ध आतंकवादी कृत्य करते हैं और इसके परिणाम जानते हुए भी ऐसा करते हैं । इसलिए, केवल फांसी देने से ऐसा आतंकवाद नहीं रुकेगा, अपितु जिहाद सिखाने वालों और उससे संबंधित साहित्य पर भी कार्यवाई होनी चाहिए ! – संपादक )
🚨 Rajasthan: 4 terrorists — Saifurrahman, Mohammad Saif, Mohammad Sarwar Azmi & Shahbaz Ahmed — sentenced to life for planting live bombs in the 2008 Jaipur blasts that had claimed 72 lives.
📜⚖️Yet 3 of them were acquitted in the actual serial blast case by the High Court.… pic.twitter.com/8B4A2PJzWv
— Sanatan Prabhat (@SanatanPrabhat) April 8, 2025
क्या है प्रकरण ?
१३ मई २००८ को जयपुर में ८ सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे । इसमे ७१ लोग मारे गये तथा अनुमानतः २०० घायल हुए । वहीं, ९ वां जिंदा बम चांदपोल बाजार स्थित गेस्ट हाउस के पास मिला था । इसे नाकाम कर दिया गया । इस प्रकरण में अलग से मामला दर्ज किया गया । इस प्रकरण में उपरोक्त आरोपियों को दोषी पाया गया और दंड सुनाया गया ।
राजस्थान उच्च न्यायालय ने बम विस्फोट मामलों में आतंकवादियों को बरी कर दिया था !यह समझ से परे है कि जिन जिहादी आतंकवादियों को जीवित बम लगाने का दोषी ठहराया गया, उन्हें बम विस्फोटों के आरोप से बरी कर दिया गया । क्या पुलिस जांच विफल रही अथवा कुछ और ? जनता को इसका उत्तर मिलना चाहिए ! इन बम विस्फोट मामलों में विशेष न्यायालय ने सभी आरोपियों को दोषी करार देते हुए फांसी का दंड सुनाया था; लेकिन राजस्थान न्यायालय ने २९ मार्च २०२३ को सभी आरोपियों को बरी कर दिया था । न्यायालय ने कहा था कि पुलिस का आतंकवाद निरोधक दस्ता कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका और विस्फोट को षड्यंत्र प्रमाणित करने के लिए कोई आधार प्रमाणित नहीं कर सका । जांच के दौरान कई त्रुटियां पाई गईं, जिन्हें सुधारा गया और एक पूरक आरोपपत्र प्रस्तुत किया गया । अब आरोपियों को जीवित बम मामले में दंड सुनाया गया है । बम विस्फोटों में निर्दोष लोगों को बरी करने के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में एक याचिका लंबित है । |
संपादकीय भूमिका१७ वर्ष उपरांत न्याय नहीं, अपितु अन्याय ! अपराधी, आतंकवादी आदि को कानून का भय नहीं रहता, क्योंकि उन्हें निर्णय देर से मिलते हैं ! |