2008 Jaipur Blasts : २००८ जयपुर बम विस्फोट प्रकरण में ४ जिहादी आतंकवादियों को आजीवन कारावास का दंड

जयपुर (राजस्थान) – यहां २००८ के बम विस्फोटों से संबंधित एक महत्वपूर्ण प्रकरण में एक विशेष न्यायालय ने चार जिहादी आतंकवादियों को दोषी ठहराया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई । उनके नाम सरवर आज़मी, सैफुर रहमान, मोहम्मद सैफ और

तथा शाहबाज़ अहमद हैं । विशेष बात यह है कि दंड सुनाए जाने के बाद भी सभी दोषी आतंकवादी मुस्कुराते हुए न्यायालय कक्ष से बाहर निकले । उनके चेहरे पर भय का लेशमात्र भी भाव नहीं था । (जिहादी आतंकवादी जानबूझकर और जानबूझकर अपने धर्म के लिए जिहाद के रूप में हिन्दुओं के विरुद्ध आतंकवादी कृत्य करते हैं और इसके परिणाम जानते हुए भी ऐसा करते हैं । इसलिए, केवल फांसी देने से ऐसा आतंकवाद नहीं रुकेगा, अपितु जिहाद सिखाने वालों और उससे संबंधित साहित्य पर भी कार्यवाई होनी चाहिए ! – संपादक )

क्या है प्रकरण ?

१३ मई २००८ को जयपुर में ८ सिलसिलेवार बम धमाके हुए थे । इसमे ७१ लोग मारे गये तथा अनुमानतः २०० घायल हुए । वहीं, ९ वां जिंदा बम चांदपोल बाजार स्थित गेस्ट हाउस के पास मिला था । इसे नाकाम कर दिया गया । इस प्रकरण में अलग से मामला दर्ज किया गया । इस प्रकरण में उपरोक्त आरोपियों को दोषी पाया गया और दंड सुनाया गया ।

राजस्थान उच्च न्यायालय ने बम विस्फोट मामलों में आतंकवादियों को बरी कर दिया था !

यह समझ से परे है कि जिन जिहादी आतंकवादियों को जीवित बम लगाने का दोषी ठहराया गया, उन्हें बम विस्फोटों के आरोप से बरी कर दिया गया । क्या पुलिस जांच विफल रही अथवा कुछ और ? जनता को इसका उत्तर मिलना चाहिए !

इन बम विस्फोट मामलों में विशेष न्यायालय ने सभी आरोपियों को दोषी करार देते हुए फांसी का दंड सुनाया था; लेकिन राजस्थान न्यायालय ने २९ मार्च २०२३ को सभी आरोपियों को बरी कर दिया था । न्यायालय ने कहा था कि पुलिस का आतंकवाद निरोधक दस्ता कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सका और विस्फोट को षड्यंत्र प्रमाणित करने के लिए कोई आधार प्रमाणित नहीं कर सका ।

जांच के दौरान कई त्रुटियां पाई गईं, जिन्हें सुधारा गया और एक पूरक आरोपपत्र प्रस्तुत किया गया । अब आरोपियों को जीवित बम मामले में दंड सुनाया गया है । बम विस्फोटों में निर्दोष लोगों को बरी करने के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में एक याचिका लंबित है ।

संपादकीय भूमिका

१७ वर्ष उपरांत न्याय नहीं, अपितु अन्याय ! अपराधी, आतंकवादी आदि को कानून का भय नहीं रहता, क्योंकि उन्हें निर्णय देर से मिलते हैं !