आज की अधिकांश महिलाओं को देखा जाए, तो उनका विश्व मैं, मेरा, पैसा, फैशन, खरीदारी (शॉपिंग), इतने तक ही सीमित है । पाश्चात्यों का अंधानुकरण कर केवल मौज-मस्ती में ही अपना जीवन खर्च करनेवाली आज की भारतीय स्त्री है । केवल ‘स्व’ का विचार करनेवाली स्त्रियों में राष्ट्र एवं धर्म का विचार कैसे उत्पन्न होगा ? उसके कारण वर्तमान में स्त्री द्वारा अपने सामर्थ्य का उचित उपयोग होता दिखाई नहीं देता । उसका यह सामर्थ्य लय की ओर बढ रहा है । वासनांध लोग इसी का लाभ उठाते हैं । अब और कितनी स्त्रियों को इसका शिकार होता हुआ आंखों से देखना होगा ? वासनांधों की कुदृष्टि का कितने समय तक सामना करना होगा ? हमारी दृष्टि में तेज होना चाहिए । हमारा शरीर शक्तिशाली तथा सामर्थ्यशाली होना चाहिए । हमारे हाथ चेहरा रंगने के लिए (मेकअप करने के लिए) अथवा रिश्वत लेकर भ्रष्ट होने के लिए नहीं हैं, अपितु वासनांधों को पाठ पढाने के लिए तत्पर रहने चाहिए । इसके लिए स्वयं में रणरागिनी जागृत होना आवश्यक है ।
वास्तव में देखा जाए, तो स्त्री शक्ति का रूप है । इस शक्ति के कारण ही भारत का अब तक का इतिहास गौरवशाली रहा है । प्रत्येक स्त्री को इस गौरवशाली इतिहास का स्मरण करना समय की मांग है । वैसा करने से ही स्त्री रणरागिनी बनेगी तथा उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेगी !
अब केवल विकास के पीछे लगकर धन अर्जित करने की इच्छुक महिलाएं नहीं चाहिए; अपितु वास्तव में उसे वीरांगना बनकर अपना अमूल्य समय राष्ट्र एवं धर्म के हित के लिए लगाना आवश्यक है । वर्तमान में राष्ट्र एवं धर्म, दोनों संकट में हैं । ऐसी स्थिति में हमारा दायित्व क्या है ?, यह पहचानकर स्त्री को आचरण करना चाहिए । जैसे स्त्री परिवार की आधारशिला होती है, वैसे ही वह राष्ट्रोद्धार में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानेवाली रणरागिनी बन सकती है ।
इससे पूर्व भी अनेक स्त्रियों ने राष्ट्र एवं धर्म की रक्षा के लिए त्याग किया तथा आवश्यकता पडने पर प्राणों का भी बलिदान दिया । यह उनके लिए कैसे संभव हुआ ? केवल और केवल धर्माचरण तथा उनमें विद्यमान कर्तव्यतत्परता के बल पर ! वर्तमान में इसी त्याग की आवश्यकता है । छत्रपति शिवाजी महाराज को तैयार करनेवाली तथा कर्तव्यनिष्ठ जीजामाता की धरोहर प्राप्त संस्कृति में हम जी रहे हैं । इस धरोहर को आगे बढाना हिन्दू संस्कृति की प्रत्येक स्त्री का दायित्व है । जीजामाता के संस्कारों की धरोहर को संजोते हुए छत्रपति शिवाजी महाराज ने राष्ट्रहित के लिए स्वराज्य स्थापित किया । वर्तमान काल में हमें हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करनी है तथा उसके लिए धर्माचरणी, व्रतस्थ तथा राष्ट्रहितैषी कार्य करनेवाली स्त्री का होना अपेक्षित है । अब विकट काल निकट आया है; इसलिए इस विषय में स्त्रियों में जागृति लाना हमारा धर्मकर्तव्य है, यह ध्यान में रखें !
हिन्दू स्त्रियो, अधिक से अधिक धर्माचरणी बनने का प्रयास करो । उसी में आपका भला है । श्रद्धा, दृढता, संयम, स्वधर्म के प्रति गर्व, निःस्वार्थता, क्षात्रतेज, व्यापकता, निर्भयता, नेतृत्व, पराक्रम, त्याग तथा स्वयं में विजीगिषु वृत्ति उत्पन्न करने का प्रयास करें । पहले किसी भी स्त्री की ओर कुदृष्टि से देखने का किसी में साहस नहीं था; क्योंकि वह देवी के समान पवित्र होती थी । उस पवित्रता को पुनः स्वयं में उत्पन्न कर धर्मनिष्ठ बनें । क्षणिक सुख के अधीन होकर स्वयं का पतन न होने दें तथा जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करें । हमें दुख नहीं, अपितु आनंद ही चाहिए । इसके लिए हिन्दू धर्म का आचरण करें । वर्तमान स्थिति में धर्म ही हमें पार लगा सकता है । हिन्दू धर्म की सीख अपनाएं तथा अपना कल्याण कर लें ! राष्ट्र एवं धर्म के लिए तन-मन-धन से समर्पित हों ! प्रत्येक स्त्री यदि इस प्रकार क्रियाशील एवं रणरागिनी बन गई, तो हिन्दू राष्ट्र की स्थापना भी शीघ्र गति से होगी, यह निश्चित है !
– श्रीमती नम्रता दिवेकर, सनातन आश्रम, देवद, पनवेल, महाराष्ट्र. (२२.२.२०२३)