Madras High Court : विवाह के पश्चात पत्नी को इस्लाम स्वीकार करने के लिए बाध्य करना, यह क्रूरता ! – मद्रास उच्च न्यायालय

मुसलमान पति द्वारा हिन्दू पत्नी पर इस्लाम स्वीकार करने हेतु बलप्रयोग करने का प्रकरण !

चेन्नई – मद्रास उच्च न्यायालय ने एक मुसलमान पति द्वारा प्रविष्ट की याचिका से संबंधित एक महत्त्वपूर्ण निर्णय देते हुए कहा ‘यदि आंतर्धर्मीय विवाह में पति अथवा पत्नी को अन्य धर्म स्वीकार कराना, अनिवार्य किया जाता होगा, तो यह क्रूरता मानी जाएगी ।’ न्यायालय ने कहा है कि ऐसा करना संविधान की धारा २१ (जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) एवं धारा २५ (धर्म का अधिकार) के विरुद्ध है । (जिहादी मानसिकता के मुसलमानों को अन्यों का जीवन अथवा व्यक्तिगत स्वतंत्रता का कुछ भी महत्त्व नहीं होता । वह केवल ‘लव जिहाद’ होता है, यदि कोई ऐसा कहे, तो इसमें चूक क्या है ? – संपादक)

१. न्यायालय ने कहा, ‘यदि एक व्यक्ति को अपने धर्म पर विश्‍वास रखना एवं उसके पालन की स्वतंत्रता न दी जाए, तो उसका अपने जीवनयापन पर गंभीर परिणाम होता है तथा उसका जीवन निर्जीव बन जाता है । विवाह के नाम पर किसी को धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य करना, यह विवाह की नींव ही हिला देता है ।’

२. मुसलमान अपराधी की हिन्दू पत्नी ने क्रूरता एवं परित्याग इन दोनों कारणो से विवाहविच्छेद की मांग की थी । तब पारिवारिक न्यायालय ने हिन्दू पत्नी के साथ विवाह निरस्त करने का आदेश दिया था । इस आदेश को अपराधी मुसलमान पति ने मद्रास उच्च न्यायालय में चुनौति दी थी । पत्नी ने आरोप लगाते हुए कहा था ‘मेरा पति मुझे निरंतर इस्लाम स्वीकार करने हेतु बाध्य करता था तथा मैं हिन्दू हूं, इसलिए मेरे धर्म के नाम पर मेरा अनादर करता था ।’

३. उच्च न्यायालय के निर्णय में कहा है कि मुसलमान पति द्वारा पत्नी का निरंतर शारीरिक एवं मानसिक शोषण किया गया है, उसका नाम परिवर्तित किया एवं उसे इस्लाम स्वीकार करने पर बाध्य किया गया ।

४. न्यायालय ने कहा है कि पति के आचरण से पत्नी को गंभीर मानसिक कष्ट पहुंचा है उसका विश्वास एवं विवेक आहत हुए हैं ।

५. न्यायालय ने क्रूरता एवं त्याग के आधार पर विवाहविच्छेद को अनुमति देते हुए कहा है कि किसी को बिना सहमति धर्मांतरण करने के लिए बाध्य करना, यह हिंसा करने जैसा ही है ।