Mahakumbh Stampede : नियोजन में अपरिपूर्णता एवं अति आत्मविश्‍वास से हुई हानि !

महाकुंभपर्व में मची भगदड घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है । इसमें निर्दोष भक्तों की अकारण मृत्यु हुई । इस घटना के पीछे के कारण, प्रशासकीय कमियां एवं उपाय पर डाला हुआ प्रकाश !

१. अत्यधिक एवं अनियंत्रित भीड ! : इस बार का महाकुंभपर्व १४४ वर्षों के उपरांत आने से देश-विदेश से भक्त बडी संख्या में प्रयागराज आए हैं । प्रशासन आरंभ से ही ‘मौनी अमावस्या को न्यूनतम १० करोड भक्त आएंगे’, ऐसा कह रहा था । उस दृष्टि से पुलिस एवं प्रशासन ने नियोजन भी किया; परंतु वह अचूक सिद्ध नहीं हुआ । तथा यही भगदड मचने का सबसे प्रमुख कारण सिद्ध हुआ । मौनी अमावस्या के १-२ दिन पूर्व से ही प्रयागराज में देशभर से करोडों भक्त आए । इसका कुंभक्षेत्र के साथ ही संपूर्ण प्रयागराज के यातायात पर बडी मात्रा में परिणाम हुआ । १ कि.मी. दूरी पार करने के लिए १ से २ घंटे जितना समय लगता था । घटना के १-२ दिन पूर्व ही भीड अनियंत्रित होती हुई दिख रही थी । तभी प्रशासन ने इस पर उपाययोजना क्यों नहीं निकाली ?, यही प्रश्न है ।

२. अधिकांश पांटुन पुल बंद रखना, यह बडी चूक ! : प्रशासन द्वारा पांटुन पुल पर हो रही (नदी पर से आने-जाने हेतु निर्माण किया हुआ तात्कालिक पुल की) भक्तों का यातायात, यह अत्यंत मह‌त्त्वपूर्ण सूत्र बनाया था । १३ जनवरी को प्रथम प्रमुख स्नान एवं १४ जनवरी को सम्पन्न प्रथम अमृत स्नान के दिन भी इस नदी पर निर्मित ३० पांटून पुलों में से भक्तों के लिए आरंभ में केवल १ एवं तदनंतर २-३ पांटून पुल, जबकि अखाडों के लिए २ पुल चालू रखे थे । अर्थात् तब भी भगदड समान परिस्थिति का निर्माण हुआ ही था । ‘शेष पुल बंद रखकर प्रशासन द्वारा क्या साध्य किया गया ?’, यह समझ में नहीं आ रहा । इसे बहुत बडी चूक ही कहना होगा ।

पांटुन पुल

३. प्रशासन की सही में क्या भूल थी ?

अ. साढे तीन करोड एवं १० करोड भक्तों के लिए एक समान नियोजन ! : शासन ने मौनी अमावास्या के अमृत स्नान की जोरशोर से तैयारियां की थी । इससे पूर्व हुए २ यशस्वी स्नानों के कारण पुलिस-प्रशासन का आत्मविश्‍वास दुगुना हो गया था । तथापि प्रथम अमृत स्नान की अपेक्षा मौनी अमावस्या के अमृत स्नान हेतु होनेवाली तीनगुना भीड के लिए भी समान नियोजन रखा । संक्षेप में साढेतीन करोड भक्त एवं १० करोड भक्त आएं तो थोडे-बहुत अंतर से वही नियोजन ! संगम जोन की क्षमता मर्यादित होने के कारण किसी भी परिस्थिति में भक्तों को संगम जोन की ओर न जाने देना, यह पुलिस एवं प्रशासन की नीति थी । तब भी भक्त रात्रि में ही संगम जोन के पास कैसे पहुंचे ? उस समय पुलिस क्या कर रही थी ?, इसका उत्तर जनता को मिलना चाहिए ।

आ. भक्तों में जनजागृति ही नहीं ! : दूसरी बात यह कि ‘भक्त संगम जोन की ओर जाने की अपेक्षा अन्यत्र निर्माण किए घाट पर स्नान करें’, इस संदर्भ में सरकार ने भक्तों में जागृति नहीं की । केवल १-२ बार मुख्यमंत्री के भाषण में उन्होंने यह उल्लेख किया था; परंतु ऐसी बातें भक्तों को न्यूनतम ८-१० दिन पूर्व से निरंतर बतानी पडती हैं । इसके लिए प्रसारमाध्यम, सोशल मीडिया, साथ ही अन्य जनजागृति करनेवाले माध्यमों का प्रयोग करना पडता है । वह हुआ नहीं । प्रशासन ने केवल ‘जनता को क्या करना चाहिए ? एवं क्या न करें ?, इसका एक प्रसिद्धपत्रक निकालकर दिया ।

इ. कहीं भी सूचना अथवा दिशादर्शक फलक नहीं ! : भाविकों को संगम जोन की ओर जाना नहीं हैं, यह ध्यान में आने का कोई कारण ही नहीं था; क्योंकि कुंभक्षेत्र में नहीं, अपितु प्रत्यक्ष संगम जोन पर भी किसी भी प्रकार की सूचना अथवा दिशादर्शक फलक आज भी नहीं हैं । इस कारण श्रद्धालुओं को भ्रम होता है एवं पुलिस द्वारा रोके जाने पर विवाद निर्माण होता है । यहां पुलिस शक्ति भी अनावश्यक व्यय हो जाती है । नए आए भक्तों को संगम कहां है ? कहां जाना है, यह कैसे समझ में आएगा ? यदि इस प्रकार के फलक प्रशासन द्वारा लगाए जाते, तो संगम जोन पर हो रही भीड टल जाती । प्रशासन द्वारा फलक लगाने सदृश्य प्राथामिक उपाययोजना भी न करना, यह समझ से परे है ।

४. ध्वनिक्षेपकों का प्रभावी उपयोग नहीं ! : सरकार ने कुंभक्षेत्र में, विशेषतः संगम जोन पर बडी मात्रा में ध्वनिक्षेपक लगाए थे । उसका कहने जैसा प्रभावी उपयोग नहीं दिखाई दिया । यहां भी दो-चार बार सूचना देकर दिखावा किया जा रहा था । विशेष बात ऐसी थी कि इन ध्वनिक्षेपकों द्वारा जो घोषणाएं की जा रही थीं, वे स्पष्ट एवं बडी आवाज में सुनाई नहीं देती थी । यदि इन ध्वनिक्षेपकों के द्वारा भक्तों को निरंतर उचित सूचनाएं स्पष्ट रूप से दी गई होती, तो कदाचित् भगदड की दुर्घटना टाली जा सकती थी ।

कुल मिलाकर प्रशासन द्वारा मौनी अमावस्या के अमृत स्नान नियोजन की अपरिपूर्णता एवं अतिआत्मविश्‍वास, के कारण यह घटना हुई, ऐसा कह सकते हैं ।

५. श्रद्धालुओं में संयम होना ही चाहिए ! : भगदड के पीछे श्रद्धालुओं में अनुशासन की कमी, यह प्रमुख कारण है । हम स्नान कर सके, इसलिए प्रयास करते समय अन्यों को उससे कष्ट तो नहीं हो रहा ? अथवा उनकी क्या हानि हो रही है ?, इस ओर श्रद्धालुओं को ध्यान देना आवश्यक था । इस हेतु उन्हें धर्मशिक्षा देना आवश्यक है, जिससे उनमें संयम, समय सूचकता, अन्यों का विचार करना आदि गुण भी वृद्धिंगत होंगे तथा ऐसी घटनाएं आगामी काल में दोबारा नहीं होंगी !

– श्री. नीलेश कुलकर्णी, विशेष प्रतिनिधि, सनातन प्रभात, प्रयागराज

‘सनातन प्रभात’ ने १५ दिन पूर्व ही विविध समस्याओं के बारे में प्रशासन को सूचित किया था !

१३ जनवरी का प्रथम पर्व स्नान के समाचार देते समय ‘सनातन प्रभात’ ने १४ जनवरी के अंक में ‘युनिट टेस्ट में पुलिस-प्रशासन को मिले ३५ प्रतिशत मार्कस; प्रबंध सुधार सकते हैं !’, इस हेतु के शीर्षक से चौखट प्रकाशित की थी । उसमें पांटुन पुल की अव्यवस्था, दिशादर्शक फलकों का अभाव आदि सूत्रों की ओर प्रशासन को निर्देश किया गया था । यदि उस पर तभी उपाययोजना निकाली होती, तो आज भगदड जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटना न हुई होती ।

– श्री. नीलेश कुलकर्णी, विशेष प्रतिनिधि, सनातन प्रभात, प्रयागराज.