वर्षगांठ के उपलक्ष्य में जिसकी पूजा की जाती है, ऐसा एकमात्र नियतकालिक है ‘सनातन प्रभात’ !
‘सनातन प्रभात’ हमारे गुरुदेवजी का रूप होने के कारण हमारे लिए गुरुपूर्णिमा के जितना ही ‘सनातन प्रभात’ की वर्षगांठ भी महत्त्वपूर्ण होती है । इस दिन ‘सनातन प्रभात’ के कार्यालय में ‘सनातन प्रभात’ के अंक की पूजा की जाती है । पूरे विश्व के अधिकतर सभी समाचार पत्र उनके समाचार पत्र की वर्षगांठ मनाते हैं; परंतु ऐसा कौनसा नियतकालिक है, जिसकी वर्षगांठ के उपलक्ष्य में पूजा की जाती हो ?
‘सनातन प्रभात’ हमारे लिए ईश्वर ही हैं । उसे नियमितरूप से शब्दपुष्प अर्पण कर उसकी पूजा करना हमारी साधना है ! पिछले २५ वर्ष ईश्वर ने हमसे यह शब्दपूजा अखंड करवा ली, यह हमपर स्थित कृपा ही है !

‘सनातन प्रभात’ का आरंभ होकर अब २५ वर्ष पूरे हो रहे हैं । पहले दिन से ही ‘सनातन प्रभात’ की इस यात्रा के साक्षी अनेक साधक आज भी पत्रकार के रूप में, कोई संपादकीय विभाग में, तो कोई वितरण विभाग में सेवा कर रहे हैं । इन सभी के लिए वर्षगांठ का यह दिन विशेष है । वर्तमान युग ‘डिजिटल’ युग है । उस परिप्रेक्ष्य में ‘सनातन प्रभात’ भी अपना रूप बदल रहा है । इन २५ वर्षाें में ‘सनातन प्रभात’ की यह तैयारी केवल बाह्य अंग से नहीं है, अपितु ‘सनातन प्रभात’ में कार्यरत साधक भी हैं । २५ वर्षाें की यह यात्रा संघर्षपूर्ण थी; परंतु ‘सनातन प्रभात’ की सेवा करनेवाले साधकों पर स्थित अखंड गुरुकृपा के कारण यह यात्रा आनंदमय हुई !
वर्षगांठ का यह अवसर सिंहावलोकन का है ! अगले ध्येय-नीतियों को सुनिश्चित करने का ! उसी प्रकार से यह अवसर परमपूज्य गुरुदेवजी के प्रति (सनातन प्रभात नियतकालिक समूह के संस्थापक संपादक सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के प्रति) कृतज्ञता व्यक्त करने का तथा पाक्षिक के प्रति उनकी अपार प्रीति का अनुभव करने का भी है । ‘सनातन प्रभात’ के माध्यम से समाज में हिन्दूतेज जगानेवाले तथा समाज के लोगों को हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु क्रियाशील बनानेवाले गुरुदेवजी के लिए यह शब्दसुमनांजलि…!
१. ‘सनातन प्रभात’ की निर्मिति एवं कार्य तो चमत्कार ही है !
कोई समाचार पत्र आरंभ करने के लिए बडे स्तर पर पैसा तथा मानव संसाधन की आवश्यकता होती है । उसके साथ ही पत्रकारिता के क्षेत्र में लंबा अनुभव रखनेवाले लोगों का बडा समूह होने की आवश्यकता होती है । ‘सनातन प्रभात’ के पास इसमें से क्या था ? न ही आर्थिक क्षमता तथा न ही कुशल मानव संसाधन ! संवाददाता से वितरण एवं विज्ञापन, इन विभागों में सेवा करनेवाले साधक उसके कुछ ही दिन पूर्व उनकी शिक्षा पूरी कर पूर्णकालीन बने साधक थे । ऐसा होते हुए भी हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के उच्चतम ध्येय से प्रेरित होकर ‘सनातन प्रभात’ का उस दिशा में अग्रसर होना केवल गुरुकृपा से ही संभव है । भले ही ध्येय निश्चित हो, तब भी उस ध्येय की पूर्ति हेतु आवश्यक दिशादर्शन, उसके लिए आवश्यक अनुशासन तथा आध्यात्मिक बल के लिए गुरुकृपा की ही आवश्यकता होती है । साधकों के पास उक्त किसी भी बात का अनुभव न होते हुए भी प.पू. गुरुदेवजी के संकल्प से ही ‘सनातन प्रभात’ का कार्य चल रहा था तथा भविष्य में भी जारी रहेगा !
१ अ. बुद्धिजीवियों को चमत्कार देखने हों, तो वे सनातन प्रभात के दैवी कार्य की समीक्षा करें ! : ९० के दशक में ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना अथवा धर्मजागृति के विषय में सार्वजनिक रूप से बोलना’ अपराध माना जाता था; परंतु वर्तमान में लगभग सभी प्रसारमाध्यम हिन्दुत्व का पक्ष लेते हुए दिखाई दे रहे हैं । परंतु उस समय की सामाजिक स्थिति को देखा जाए, तो राष्ट्ररक्षा एवं धर्मजागृति के लिए समाचार पत्र चलाना तथा २५ वर्षाें से उसे अविरत चलाते रहना क्या चमत्कार नहीं है ? यह चमत्कार संभव हुआ ‘सनातन प्रभात’ में सेवा करनेवाले साधकों पर स्थित अखंड गुरुकृपा के
कारण ! बुद्धिजीवियों अथवा अंधश्रद्धा निर्मूलन समितिवालों से ‘चमत्कार दिखाओ और २५ लाख रुपए लो’, जैसी बचकाना चुनौतियां दी जाती हैं । ऐसे लोगों का वैचारिक सामना करनेवाले नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’ का विगत २५ वर्षाें से विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए चलाते रहना’, यही बडा चमत्कार है, यह हम आज भी हमारे विरोधियों को बताना चाहते हैं ।
२. ‘सनातन प्रभात’ नहीं केवल नियतकालिक । है वह पितृतुल्य छत्र ।।
‘सनातन प्रभात’ तथा उस विभाग में सेवा करनेवालों के मध्य अटूट नाता है । ‘सनातन प्रभात’ हमें सिखाता है, तैयार करता है, हमारी चूकें दिखाता है तथा साधना के अगले स्तर का मार्गदर्शन भी करता है । वह हमारे लिए केवल १६ पृष्ठोंवाला कागद का अंक नहीं है, अपितु वह सजीव है ! वह भव्य, चैतन्यदायी एवं प्रकाशमान है । वह हमारा पिता है तथा हम उसकी संतान हैं । बच्चों को संस्कार देकर उसे ज्ञानी, विवेकशील बनाना तथा उसके दोषों का निर्मूलन कर उसे सर्वांगीण पद्धति से विकसित करने का कार्य पिता का होता है । उस प्रकार से ‘सनातन प्रभात’ हम अज्ञानियों को तैयार कर रहा है ।
३. नियतकालिक विभाग के साधकों की हो रही वैचारिक शुद्धि !
‘समाचार में रज-तमजन्य समाचार होते हैं । निरंतर उसी से संबंधित विचार अथवा उसके संदर्भ में लेख अथवा चौखटें बनानी पडती हैं । अनेक लोग यह पूछते हैं कि दिन में १०-१२ घंटे उसी वातावरण में रहकर क्या साधना पर उसका परिणाम होता है ? स्थूल से भले ही रज-तमात्मक विषय दिखाई देते हों, तब भी उसका विचार उदात्त एवं सात्त्विक होने के कारण साधकों को उससे कष्ट न होकर वह सेवा आनंददायक ही होती है । ‘अधूरे मानव संसाधन में भी ‘सनातन प्रभात’ की नियमित सेवा निर्विघ्न संपन्न होना’, ‘समाचार अथवा लेखों के प्रति नए-नए दृष्टिकोण सूझना’ जैसी अनुभूति साधक सदैव ही लेते रहते हैं । ‘ईश्वर के संकल्प से चल रहा कार्य ईश्वर ही पूरा कर लेते हैं’, इसकी प्रतीति ‘सनातन प्रभात’ के साधक प्रतिदिन कर रहे हैं ।
३ अ. शब्दशक्ति के बल पर कार्य करने हेतु ईश्वर के द्वारा ‘सनातन प्रभात’ के विभाग के साधकों को चुनना गुरुकृपा ही है ! : ईश्वर की शब्दशक्ति के बल पर ‘सनातन प्रभात’ का कार्य चल रहा है तथा उसके लिए माध्यम के रूप में उन्होंने इस विभाग के साधकों को चुना जाना हमपर स्थित कितनी बडी गुरुकृपा है ! ईश्वर के शुद्ध एवं दैवी विचार को शब्द रूप के द्वारा समाज तक पहुंचाने का दायित्व बडा होता है तथा साधकों के द्वारा उसे अचूकता से पूरा करने हेतु प.पू. गुरुदेवजी साधकों की अखंड वैचारिक शुद्धता कर उन्हें इस दायित्व के लिए तैयार कर रहे हैं ।
‘इन २५ वर्षाें की यात्रा में ईश्वर से हम साधकों को भर-भरकर सबकुछ दिया, हम साधकों का जीवन चमकाया तथा मानसिक, बौद्धिक तथा उससे अधिक आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध किया, यह कृतज्ञता का भान हम साधकों के मन में निरंतर जागृत रहे’, यही इस मंगल दिवस पर गुरुदेवजी के चरणों में प्रार्थनाहै !
– श्रीमती समीक्षा गाडे, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (१२.४.२०२४)