सिंह राशि में गुरु एवं सिंह राशि में ही सूर्य होने पर नासिक-त्र्यंबकेश्वर में सिंहस्थ कुम्भपर्व होता है । इसमें भाद्रपद कृष्ण पंचमी, भाद्रपद कृष्ण अमावस्या तथा भाद्रपद शुक्ल पंचमी (केवल नासिक में), जबकि वामन जयंती (केवल त्र्यंबकेश्वर में) को पर्वकाल रहता है । उस दिन राजयोगी (शाही) स्नान किया जाता है । सिंहस्थ महापर्व में गोदावरी स्नान करन से सर्व तीर्थस्नानों पर स्नान करने का फल मिलता है । ‘गुरु सिंह राशि में हो तो एक वर्ष तक सभी तीर्थ, नदियां, समुद्र, क्षेत्र, अरण्य तथा आश्रम गोदावरी नदी के तट पर (सूक्ष्मरूप में) निवास करते हैं ।’ ऐसा स्कन्दपुराण में कहा गया है । ६० सहस्र वर्ष भागीरथी (गंगा) नदी में स्नान करने से जितना पुण्य मिलता है, उतना पुण्य गुरु के सिंह राशि में आने पर गोदावरी में किए केवल एक स्नान से प्राप्त होता है । सिंहस्थ तीर्थयात्रा में पुण्याहवाचन एवं नांदीश्राद्ध कर गोदावरी में स्नान करना, तत्पश्चात, वहीं श्राद्धादि कृत्य कर पंचवटी स्थित श्रीराम के दर्शन करना, कुशावर्त में पितृतर्पण करना, भगवान त्र्यंबकेश्वर के दर्शन, पंचवटी में श्रीराम के दर्शन, गोदावरी की पूजा, फलयुक्त अर्घ्य, ब्राह्मणों को दान, क्षौर (मुंडन) करना, बिन लवण के (नमक के) उपवास करना आदि बताया है ।
कुम्भ मेले में ‘किसने क्या पहना है’, इसकी ओर किसी का भी ध्यान नहीं रहता । जब कोई नग्न साधु अपने अखाडेसहित गंगा में कूदता है, वह दृश्य अत्यन्त मनोहर होता है । यहां स्त्री-पुरुष के लिंगभेद का विस्मरण होता है तथा कामवासना का विचार तो दूर ही रहता है । ‘यह व्यक्ति नग्न है अथवा वस्त्र धारण किए हुए हैं’, यह विचार भी मन को स्पर्श नहीं करता ! स्नान के उपरान्त अनेक स्त्रियां अपनी साडियां सुखाती दिखाई देती हैं; परन्तु किसी का ध्यान उनकी ओर नहीं जाता । कामशास्त्र का अध्ययन करनेवालों को कुम्भ मेले में अवश्य जाना चाहिए । इस वातावरण में मन में कामवासना उत्पन्न ही नहीं हो सकती, इसका अध्ययन उनके लिए एक चुनौती है ! कहीं भी बलात्कार नहीं, असभ्य वर्तन नहीं, कानून व्यवस्था का प्रश्न नहीं ! सब को बस एक ही धुन होती है कि गंगाजी में स्नान करने के लिए मिले ।’
(दैनिक ‘लोकसत्ता’, ६.२.२००१)
माघ मेला :इस पवित्र त्रिवेणी संगम पर प्रतिवर्ष माघ मास में मेला लगता है । इसे ‘माघ मेला’ कहा जाता है । माघ मास की अमावस्या के दिन संन्यासियों का विशाल समुदाय स्नान करने हेतु जुटता है । पद्मपुराण के अनुसार माघ मास में प्रयाग में गंगास्नान का सौभाग्य मिलना अति दुर्लभ है । अग्निपुराण के अनुसार प्रयाग में माघ मास में प्रतिदिन गंगास्नान करने से करोडों गायें दान करने का, ब्रह्मपुराण के अनुसार अश्वमेध यज्ञ करने का और मत्स्यपुराण के अनुसार दस करोड से अधिक तीर्थयात्रा करने का फल मिलता है । महाग्रन्थ महाभारत में लिखा है कि प्रयाग में मकर संक्रांति पर्व पर किए गए स्नान और दान का फल इतना अधिक है कि यह बता पाने में स्वयं ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं ! (संदर्भ : सनातन का ग्रंथ ‘कुम्भ पर्व की महिमा’) |
सिंहस्थ कुम्भमेला:
सिंह राशि में गुरु एवं सिंह राशि में ही सूर्य होने पर नासिक-त्र्यंबकेश्वर में सिंहस्थ कुम्भपर्व होता है । इसमें भाद्रपद कृष्ण पंचमी, भाद्रपद कृष्ण अमावस्या तथा भाद्रपद शुक्ल पंचमी (केवल नासिक में), जबकि वामन जयंती (केवल त्र्यंबकेश्वर में) को पर्वकाल रहता है । उस दिन राजयोगी (शाही) स्नान किया जाता है । सिंहस्थ महापर्व में गोदावरी स्नान करन से सर्व तीर्थस्नानों पर स्नान करने का फल मिलता है । ‘गुरु सिंह राशि में हो तो एक वर्ष तक सभी तीर्थ, नदियां, समुद्र, क्षेत्र, अरण्य तथा आश्रम गोदावरी नदी के तट पर (सूक्ष्मरूप में) निवास करते हैं ।’ ऐसा स्कन्दपुराण में कहा गया है । ६० सहस्र वर्ष भागीरथी (गंगा) नदी में स्नान करने से जितना पुण्य मिलता है, उतना पुण्य गुरु के सिंह राशि में आने पर गोदावरी में किए केवल एक स्नान से प्राप्त होता है । सिंहस्थ तीर्थयात्रा में पुण्याहवाचन एवं नांदीश्राद्ध कर गोदावरी में स्नान करना, तत्पश्चात, वहीं श्राद्धादि कृत्य कर पंचवटी स्थित श्रीराम के दर्शन करना, कुशावर्त में पितृतर्पण करना, भगवान त्र्यंबकेश्वर के दर्शन, पंचवटी में श्रीराम के दर्शन, गोदावरी की पूजा, फलयुक्त अर्घ्य, ब्राह्मणों को दान, क्षौर (मुंडन) करना, बिन लवण के (नमक के) उपवास करना आदि बताया है ।