E. Sreedharan On Kerala Temples : हिन्दुओं के मंदिरों को आनेवाली समस्याएं दूर करने के लिए विख्यात अभियंता ई. श्रीधरन् द्वारा केरल उच्च न्यायालय में याचिका

केरल की भरतपुझा नदी पर बनाए जानेवाले पुल की संरचना में परिवर्तन करने की  सरकार से की मांग अस्वीकार होने पर प्रविष्ट की याचिका

ई. श्रीधरन्

थिरूवनंतपुरम् (केरल) – केरल की भरतपुझा नदी पर राज्य सरकार द्वारा पुल बनाया जानेवाला है । इस पुल की संरचना के संदर्भ में विख्यात निवृत्त अभियंता ई. श्रीधरन् ने केरल उच्च न्यायालय में याचिका प्रविष्ट कर पुल की संरचना में कुछ परिवर्तन सुझाए हैं । उन्होंने यह बात स्पष्ट की है कि पुल के निर्माणकार्य से उत्पन्न होनेवाली सामाजिक और धार्मिक समस्याएं दूर करने का यह एक प्रयत्न है । वर्तमान पुल की संरचना के कारण वहां के ३ मंदिरों को समस्याएं उत्पन्न होनेवाली हैं । मुख्य न्यायाधीश ए. महंमद मुस्ताक और न्यायमूर्ति एस्. मनू के खंडपिठ ने याचिका स्वीकार करने को नकार दिया है और कहा है कि, ‘इस प्रकरण में पहले राज्य सरकार की भूमिका समझ ली जाएगी ।’ न्यायालय ने राज्य को इस प्रकरण पर ९ सितंबर तक निवेदन प्रस्तुत करने के निर्देश दिए है । उसके पश्चात याचिका स्वीकार करना है अथवा नहीं ? इसका निर्णय होगा ।

१. श्रीधरन् ने पुल के दक्षिण किनारे को २०० मीटर दूर हटाने का प्रस्ताव रखा था । उन्होंने इसके लिए राज्य को निःशुल्क तकनीकी सहायता प्रदान की थी और वर्ष २०२२ में केरल के मुख्यमंत्री और सार्वजनिक निर्माण विभाग के मंत्री को पत्र भी प्रस्तुत किया था; परंतु श्रीधरन् को कोई प्रतिसाद नहीं मिला । इसलिए उन्हें न्यायालय में जाना पडा और न्यायालय को विनती करनी पडी कि, ‘प्रस्तावित पुल की पुनर्संरचना करने के उनके प्रस्ताव पर विचार करने के निर्देश राज्य को दें ।’

२. श्रीधरन् की याचिकानुसार, प्रस्तावित पुल की वर्तमान संरचना के कारण भरतपुझा के किनारे के उत्तर दिशा में स्थित थिरुनावया का श्री विष्णु मंदिर और थवानूर के दक्षिण किनारे के श्री शिव एवं श्री ब्रह्माजी के मंदिर विभाजित होनेवाले हैं । इसलिए याचिका में कहा है कि पुल की वर्तमान  योजना अवैज्ञानिक है । यह संरचना अभियांत्रिकी के सिद्धांतों का उल्लंघन करती है और ‘केरल के गांधी’ कहे जानेवाले आदरणीय स्वतंत्रता सेनानी के. केलप्पन् की समाधी जैसी ऐतिहासिक वास्तुओं को हानि पहुंचने की संभावना है । याचिका में कहा गया है कि, निर्माणकार्य का व्यय न्यून कर राज्या की तिजोरी की बचत करनेवाले वैकल्पिक और व्यावहारिक प्रस्ताव की उपेक्षा करना, अत्यंत अन्यायकारी तथा अवैध है ।

३. इस संदर्भ में सरकारी अधिवक्ता ने कहा कि पुल के ‘पायलिंग’ का काम पहले से ही आरंभ हो चुका है और ठेकेदार ने निर्माणकार्य के स्थान पर सभी प्रकार के संसाधन एकत्रित किए हैं । इस प्रक्रिया में मंदिर की कोई भी संपदा अधिग्रहित नहीं की गई है । यह याचिका चल रहे  विकासात्मक कार्यों में केवल बाधा डालने का एक प्रयत्न है ।

संपादकीय भूमिका 

प्रश्न हिन्दुओं के मंदिरों का है, इसीलिए केरल की साम्यवादी गठबंधन सरकार ने ई. श्रीधरन् के प्रस्ताव की उपेक्षा की, इसमें कोई आश्चर्य नहीं  !