पुरातत्त्व विभाग के दावे के कारण नागपंचमी के दिन पूजा-अर्चना की मांगी गई अनुमति जिलाधिकारी ने अस्वीकार की !
विदिशा (मध्य प्रदेश) – यहां का प्राचीन विजय सूर्य मंदिर ‘मंदिर न होकर मस्जिद है’, ऐसा पत्र भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के द्वारा जिलाधिकारी को भेजे जाने पर विवाद उत्पन्न हुआ है । वर्तमान समय में यह मंदिर पुरातत्व विभाग के ही अधीन है ।
१. विगत अनेक दशकों से हिन्दू श्रद्धालु नागपंचमी के दिन इस मंदिर के परिसर में धार्मिक अनुष्ठान करते आए हैं । इस वर्ष कुछ हिन्दू संगठनों ने प्रशासन से ९ अगस्त को अर्थात नागपंचमी के दिन यहां के परिसर में प्रवेश कर पूजा की अनुमति मांगी थी । श्रद्धालुओं की इस मांग का पत्र जिलाधिकारी बुद्धेश वैश्य ने पुरातत्व विभाग को भेजा था । पुरातत्त्व विभाग ने इस पत्र का उत्तर देते हुए वर्ष १९५१ के राजपत्र का (गैजेट) के आधार पर कहा है कि ‘पुरातत्व विभाग ने इस स्थान का वर्गीकरण ‘बिजमंडल मस्जिद’ के नाम से किया है ।’ इस उत्तर के उपरांत जिलाधिकारी ने पूजा की अनुमति अस्वीकार करने से हिन्दू संगठनों में क्षोभ फैल गया । जिलाधिकारी बुद्धेश वैश्य ने स्थानीय प्रसारमाध्यमों को बताया कि इस प्रकरण में पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के नियमों के अनुसार कार्यवाही की जाएगी ।
२. हिन्दू संगठन पुरातत्व विभाग के इस दावे का विरोध कर रहे हैं । हिन्दू संगठनों का यह कहना है कि प्राचीन काल से यह सूर्य मंदिर हिन्दुओं की आस्था का केंद्र है । विधायक टंडन ने ‘मंदिर का स्वामित्व’ प्रमाणित करने हेतु सर्वेक्षण की मांग की है । विधायक मुकेश टंडन विधानसभा में यह सूत्र उठानेवाले हैं, साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं केंद्रीय मंत्री गजेंद्रसिंह शेखावत से मिलने हेतु देहली जाने के प्रयास में हैं । अप्रैल १९९२ में इसी प्रकार की स्थिति उत्पन्न हुई थी, उस समय पुरातत्व विभाग एवं जिलाधिकारी के मध्य सफल बातचीत हुई तथा उसके उपरांत ११ श्रद्धालुओं के दल को मंदिर में पूजा की अनुमति दी गई ।
विजय सूर्य मंदिराचा इतिहास
विजय सूर्य मंदिर भोपाल से लगभग ६० कि.मी. तथा सांची के स्तूप से लगभग १० कि.मी. की दूरी पर स्थित है । पुरातत्व विभाग के भोपाल विभाग के जालस्थल पर कहा गया है कि बिजमंडल मस्जिद एक हिन्दू मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई है तथा मंदिर के एक स्तंभ पर मिले शिलालेखों में ‘यह देवी चार्चिका का मंदिर था’, ऐसा कहा गया है । ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर ११ वीं अथवा १२ वीं शताब्दी में सूर्यदेव के सम्मान में बनाया गया था । मुघल कार्यकाल में विशेषरूप से औरंगजेब के कार्यकाल में मंदिर को बडी क्षति पहुंचाई गई थी । उसके उपरांत १७ वीं शताब्दी में ‘मस्जिद’ के रूप में उसका पुनर्निर्माण किया गया; परंतु मराठा कार्यकाल में इस मस्जिद का स्थानांतरण किए जाने से उस स्थान की अवस्था दयनीय हुई, ऐसा स्थानीय लोगों का कहना है ।
वर्ष १९३४ में मंदिर के अवशेष मिलने से हिन्दू महासभा के नेतृत्व में मंदिर के संवर्धन हेतु आंदेालन चलाया गया, इसका राजनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण परिणाम हुआ । यहां के चुनाव में हिन्दू महसभाग के प्रत्याशी चुनकर आए । तब से यह मंदिर वर्ष में केवल एक ही बार नागपंचमी के दिन पूजा के लिए खोला जाता है । वर्ष १९६५ में यहां का धार्मिक तनाव दूर होने हेतु तत्कालिन मुख्यमंत्री द्वारकाप्रसाद मिश्रा ने यहां मुसलमानों के लिए स्वतंत्र ईदगाह (नमाज पढने का स्थान) बनाई । अब जब कि यह विवाद पुनः भडक गया है, तो हिन्दू संगठनों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नियमित पूजा-अर्चना हेतु ‘बिजमंडल विजय मंदिर’ पुनः खोलने की मांग की है ।
संपादकीय भूमिका
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