वैश्‍विक हिन्दू राष्‍ट्र अधिवेशन का पांचवां दिन (२८ जून) – उद़्‍बोधन सत्र : मंदिर संस्‍कृति का पुनर्जीवन

मंदिरों से हिन्दुओं को धर्मशिक्षा मिलनी चाहिए ! – पू. प्रा. पवन सिन्‍हा गुरुजी, संस्‍थापक, पावन चिंतन धारा आश्रम, गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश

पू. प्रा. पवन सिन्‍हा गुरुजी

विद्याधिराज सभागृह – मंदिर के पुरोहितों का धर्म केवल लोगों को तिलक लगाने तक ही मर्यादित नहीं है । हिन्दुओं को धर्म की शिक्षा देना भी उनसे अपेक्षित है । उससे हिन्दुओं का धर्माभिमान बढकर उनका मनोबल बढेगा औेर सभी संगठित होंगे । वर्तमानकाल में हिन्दू धर्म के विषय में निधर्मीवादियों द्वारा दुष्प्रचार किया जाता है । उसे मिटाने के लिए पुरोहितों से शास्त्र का प्रामाणिक ज्ञान मिलना आवश्‍यक है, ऐसा मार्गदर्शन पावन चिंतन धारा आश्रम के संस्‍थापक पू. प्रा. पवन सिन्‍हा गुरुजी ने ‘वैश्‍विक हिन्दू राष्ट्र महोत्‍सव’ के पांचवें दिन की । वे ‘मंदिर संस्‍कृति के पुनरुज्‍जीवन के लिए आवश्‍यक प्रयत्न’ इस विषय पर बोल रहे थे ।

मंदिरों की स्वच्छता करना आवश्‍यक

पू. पवन सिन्‍हा गुरुजी बोले, ‘‘मंदिरों का वैभव नष्‍ट न हो; इसलिए प्रयत्न होना आवश्‍यक है । मंदिरों के कारण भक्‍त के जीवन में परिर्वतन होता है । वहां जाते समय कुछ नियम होने चाहिए । हम मंदिरों में जाकर पाप की गठरी और अपेक्षा छोडकर आते हैं । वर्तमान में हिन्दू वहां जाने पर अस्वच्छता भी छोडकर आते हैं । मंदिरों की स्वच्छता की सेवा किए बिना व्यक्ति की चेतना का उत्‍थान नहीं हो सकता । इसलिए हमें स्वयं ही मंदिरों की स्‍वच्‍छता करनी चाहिए ।’’

सुव्यवस्थापन संपन्न आश्रमों की निर्मिति होना भी आवश्‍यक !

मंदिरों सहित आश्रम व्‍यवस्था को भी साथ में लेकर चलना चाहिए । आश्रमव्‍यवस्था मेें विचारों को परिपक्‍व किया जाता है । वहां व्यष्टि और समष्टि का मिलन होता है । आश्रम में कच्ची मिट्टी को आकार देकर पक्का मटका बनाया जाता है । वहां वह आध्‍यात्मिक उन्‍नति और धर्म की शिक्षा प्राप्त कर सकता है । जब समाज में हाहाकार मचा हुआ था, तब आचार्य और संतजनों ने लोगों को मनोबल टिकाए रखा था । आज वही स्थिति निर्माण हो गई है । इसलिए सुव्‍यस्‍थापन संपन्न आश्रमों की निर्मिति आवश्‍यक है, ऐसा मार्गदर्शन पू. प्रा. पवन सिन्‍हा गुरुजी ने किया ।


मंदिरों का सरकारीकरण टालने हेतु न्यासियों को नियमों का पालन करना होगा ! – भूतपूर्व मुख्‍य जिला न्‍यायाधीश अधिवक्‍ता दिलीप देशमुख

अधिवक्‍ता दिलीप देशमुख

विद्याधिराज सभागृह – यहां अधिवक्‍ता दिलीप देशमुख ने  ‘मंदिर व्‍यवस्‍थापन पर सरकारी नियंत्रण टालने हेतु योग्य प्रयास’ इस विषय पर कहा, ‘यदि मंदिरों के न्यासी मंदिरों की सुव्यवस्था सुचारू रूप से बनाए रखें, मंदिरों से संबंधित नियमों का पालन करें और न्यासियों के आंतरिक वाद-विवाद सुलझा लें, तो सरकार को किसी भी मंदिर पर सरकारी नियंत्रण लाने का अवसर नहीं मिलेगा । मंदिर सरकार के नियंत्रण में जाने से बच जाएगा ।’

आगे वे ‘मंदिरों का सरकारीकरण रोकने हेतु क्या कर सकते हैं,’ इस विषय पर बोले, ‘सरकार ने उच्‍च न्‍यायालय में स्‍पष्‍टीकरण दिया है कि महाराष्‍ट्र के पंढरपुर के सुप्रसिद्ध श्री विठ्ठल मंदिर के व्‍यवस्‍थापन के विषय में परिवाद होने के कारण उसे सरकार ने अपने नियंत्रण में ले लिया ।’ किसी भी मंदिर का सरकारीकरण टालने हेतु मंदिर को अनुमानपत्रक (बजट) प्रस्तुत करना चाहिए, मंदिर की संपत्ति एवं खर्च का खाता रखना चाहिए, संबंधित मंदिर के न्यासी-मंडल को स्थावर (अचल) एवं जंगम (चल) संपत्ति के विषय में प्रविष्टियां रखनी चाहिए, प्रत्‍येक ३ मास के उपरांत आर्थिक व्यवहार की जांच की जाए । इसके साथ ही धर्मादाय आयुक्‍तों द्वारा आदेशित परिपत्रों का पालन करना अत्यंत आवश्‍यक है । इतना ही नहीं, अपितु मंदिर न्यासियों को अनुचित स्थान पर व्‍यय (खर्च) करना टालना चाहिए, मंदिर के न्यासी पर कोई भी गंभीर स्वरूप का अपराध प्रविष्ट नहीं होना चाहिए । मंदिर के व्‍यवस्‍थापन अंतर्गत वाद-विवाद सबसे बडी समस्या है । इस कारण सरकार को हमारे मंदिर नियंत्रण में लेने का अवसर मिल जाता है ।’’

शेगांव मंदिर का आदर्श व्‍यवस्‍थापन प्रशंसनीय !

भारत में सुव्‍यवस्‍थान मंदिर के अच्छे उदाहरण के रूप में महाराष्‍ट्र के शेगांव मंदिर का नाम ले सकते हैं । वहां की स्‍वच्‍छता और व्‍यवस्‍था प्रशंसनीय है । वहां अधिकांशत: सेवकवर्ग ही है और नौकर अल्प हैं । वहां सेवा देने हेतु २ वर्षों की प्रतीक्षा सूची है । यदि मंदिरों के न्यासी इस मंदिर का १० प्रतिशत भी अनुकरण करें, तब भी उनके मंदिरों की व्‍यवस्‍था में बडा परिवर्तन दिखाई देगा । – भूतपूर्व मुख्‍य जिला न्‍यायमूर्ति अधिवक्‍ता दिलीप देशमुख, पुणे


‘जहां हिन्दुत्व, वहीं बंधुत्‍व’ यह विचार मंदिरों की सुरक्षा के लिए आवश्‍यक ! – सुनील घनवट, महाराष्‍ट्र और छत्तीसगढ समन्‍वयक, हिन्दू जनजागृति समिति

श्री. सुनील घनवट

विद्याधिराज सभागार – अनेक मंदिरों के निकट ऐसे अहिन्दुओं की दुकानें हैं, जो हिन्दू धर्म अथवा मूर्तिपूजा मानते नहीं । इससे हिन्दुओं का पैसा अन्‍य धर्मियों के पास जाकर उसका उपयोग हिन्दुओं के ही विरोध में होता है । दंगों के समय ये धर्मांध लोग हिन्दुओं के मंदिरों को अपना लक्ष्य बनाते हैं । इसलिए ‘जहां हिन्दुत्व, वहीं बंधुत्‍व’ यह विचार मंदिरों की सुरक्षा के लिए आवश्‍यक है । पंढरपुर जैसे महाराष्‍ट्र के प्रसिद्ध मंदिर के परिसर में भी अन्य धर्मियों के होटल हैं परंतु उन होटलों का नाम हिन्दूपद्धति से रखा गया है । इन होटलों में जानेवालों को हलाल (इस्‍लामी पद्धतिनुसार बनाया हुआ) भोजन दिया जाता हो, तो इसमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए । कुछ स्थानों पर मंदिरों के जीर्णोद्धार के लिए हिन्दू कारागीर नहीं मिलते; इसलिए मुसलमान कारीगरों को बुलवाया जाता है । मूर्ति को न माननेवाले औेर गोमांस भक्षण करनेवाले मंदिर निर्माण का काम करते हैं ।

महाराष्ट्र के शनिशिंगणापुर देवस्थान में ६-७ मुसलमान कर्मचारी कार्यरत हैं । किसी भी मस्जिद में हिन्दुओं को विश्वस्त के रूप में नियुक्‍त किया जाता है क्या ? फिर सरकारीकरण किए गए मंदिरों में अन्य धर्मियों की नियुक्ति कैसे की जाती है ? इस विषय पर हिन्दुओं को गंभीरता से विचार करने की आवश्‍यकता है । यदि मंदिर सुरक्षित रहे, तो राष्‍ट्र और हिन्दू भी सुरक्षित रहेंगे । अयोध्या में श्री रामलल्ला की स्थापना होेेेने पर संपूर्ण भारत सहित विश्‍व में भी उत्‍साह निर्माण हुआ । यह उत्‍साह आज भी है । इसलिए केवल काशी, मथुरा नहीं, अपितु सरकार के नियंत्रण में जो देश के साढे चार लाख मंदिर हैं, उन्हें सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर भक्तों को सौंपना चाहिए । प्रत्‍येक मंदिर सनातन धर्मरक्षा का केंद्र होना चाहिए, ऐसे वक्‍तव्‍य हिन्दू जनजागृति समिति के महाराष्‍ट्र और छत्तीसगढ राज्यों के समन्‍वयक श्री. सुनील घनवट ने ‘मंदिरों का व्‍यवस्‍थापन एवं परिसर में अहिन्दुओं को स्थान नहीं’, इस विषय पर बोलते हुए किए ।