मंदिरों में अर्पण के रूप में आनेवाले धन का उपयोग मंदिरों के ही जीर्णोद्धार तथा रखरखाव के लिए करना आवश्यक ! – गिरीश शाह, न्यासी, महाजन एन्.जी.ओ., मुंबई  

वैश्‍विक हिन्दू राष्‍ट्र अधिवेशन का पांचवां दिन (२८ जून) : उद़्‍बोधन सत्र – मदिंरों का सुव्‍यवस्‍थापन

गिरीश शाह

विद्याधिराज सभागार : मंदिर संस्कार, संस्कृति तथा सुरक्षा का मुख्य केंद्र होता है । काल के प्रवाह में जो मंदिर जीर्ण हुए हैं, उनका पुनर्निर्माण तथा रखरखाव आवश्यक है । पुनर्निर्माण का यह कार्य करते समय प्राचीन मंदिरों की मूल संरचना को बनाए रखना भी आवश्यक है । शिखर, गर्भगृह, रंगमंडल एवं सभामंडप, इस प्रकार से मंदिर की रचना होती है । प्रत्येक मंदिर की रचना में थोडा अंतर होता है । भारत के कोने-कोने में लाखों मंदिर हैं । मंदिरों ने ही हमारी संस्कृति की रक्षा की है । भारत में रहनेवाले प्रत्येक व्यक्ति को इस संस्कृति को मानना ही पडेगा, ऐसा प्रतिपादन मुंबई, महाराष्ट्र के महाजन एन्.जी.ओ. के न्यासी गिरीश शाह ने किया । वैश्विक हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन के पांचवें दिन ‘मंदिर स्थापत्य का नियोजन’ विषय पर वे ऐसा बोल रहे थे । अर्पण के रूप में मंदिरों में आनेवाले धन का उपयोग मंदिरों के जीर्णाेद्धार तथा रखरखाव के लिए ही किया जाना चाहिए । गोमाता की सुरक्षा भी मंदिरों का ही दायित्व है । मंदिरों को गुरुकुल परंपरा जारी रखनी चाहिए । मंदिरों को भारत की गौरवशाली परंपरा के जतन तथा प्रसार का दायित्व उठाना चाहिए, ऐसा भी उन्होंने कहा ।


मंदिरों का सौंदर्यीकरण करने वो कोई पर्यटनस्थल नहीं हैं, अपितु तीर्थस्थल हैं ! – अनिल कुमार धीर, संयोजक, ‘इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’, ओडिशा

रामनाथी, गोवा – ओडिशा के सुप्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर का सौंदर्यीकरण करने हेतु २२ प्राचीन मठ तोडे गए । इसके विरोध में हम न्यायालय गए, तो वहां हम पर ही १ लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया । जो मंदिर मूलतः ही सुंदर हैं, उनका सौंदर्यीकरण किसलिए करना ? प्लास्टिक के पेड तथा स्तंभ खडे करना, सबकुछ चकाचक बनाने जैसे काम करने मंदिर कोई पर्यटनस्थल नहीं हैं, अपितपु वो तीर्थस्थल हैं । फलवाले, फूलवाले तथा बाहर बैठनेवाले बाबा, ये सभी मंदिरों के ‘वर्नाक्यूलर इकोसिस्टम’ का (एक-दूसरे पर निर्भर स्थानीय व्यवस्था) के भाग हैं । उन्हें वहां से हटाकर कैसे चलेगा ? जगन्नाथ मंदिर में २ रत्नभंडार हैं; उनमें से एक को विगत ४६ वर्षाें से खोला नहीं गया है । उनकी जीर्ण स्थिति हुई है । रथयात्रा के काल में वहां की नई सरकार के द्वारा उसमें सुधार करने के काम को रथयात्रा की अवधि में केवल ७ दिन में करने के लि, कहा गया है । वास्तव में देखा जाए, तो केवल ७ दिन में यह काम करना संभव नहीं है । हमारी दृष्टि से मंदिर की स्थापत्यरचना सुचारू रूप से बनी रहना महत्त्वपूर्ण है; वहां धन मिला भी नहीं, तब भी चलेगा; ऐसा प्रतिपादन ‘इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ के संयोजक श्री. अनिल कुमार धीर ने वैश्विक हिन्दू राष्ट्र अधिवेशन में ‘पुरातत्त्व विभाग की ओर से संरक्षित मंदिरों की रक्षा होने हेतु भारत सरकार से अपेक्षाएं’, इस सत्र में बोलते हुए किया ।

श्री. धीर ने आगे कहा कि हम किस आधार पर विश्वगुरु बननेवाले हैं ? मोहंजोदडो एवं हडप्पा के शोधकार्य के उपरांत अन्य कोई भी बडा शोधकार्य नहीं हुआ है । शोधकार्य के लिए खुदाई करने की आवश्यकता नहीं है । देश के अन्य भागों में भी प्राचीन संस्कृति के अनेक प्रमाण मिलते हैं; परंतु उस विषय में शोधकार्य ही नहीं किया जाता । वर्तमान समय में वैज्ञानिक प्रगति के कारण लोगों में कौनसे गुणसूत्र (जींस) हैं, यह ज्ञात होता है । उसके आधार पर प्राचीन काल में यहां से ही लोग बाहर गए हैं, यह आनेवाले समय में ध्यान में आ सकता है । इसे ‘रिवर्स इंवेंशन  (विपरीत शोध) कहा जाएगा । इस विषय में शोधकार्य हुआ, तो आनेवाले समय में इतिहास का पुनर्लेखन करने की स्थिति आनेवाली है ।

ओडिशा के सूर्यमंदिर के निर्माण के समय ३७ टन वजन की शिला शिखर पर पहुंची कैसे ?, इसका संतोषजनक उत्तर अभी तक नहीं मिला है । उस निर्माणकार्य में यदि १ इंच की भी चूक हुई होती, तो संपूर्ण निर्माणकार्य ही निष्फल हो जाता । ऐसे मंदिरों का निर्माणकार्य कैसे हुआ ?, ऐसे प्रश्नों के उत्तर के लिए मंदिर संस्कृति से संबंधित शोधकार्य की आवश्यकता है ।

‘इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’के माध्यम से श्री. धीर द्वारा किया जा रहा कार्य

१. ‘इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ (इनटैक) इस संस्था को केंद्र सरकार ने ‘सेंटर फॉर एक्सलंस’की श्रेणी देकर १०० करोड रुपए दिए हैं तथा और १०० करोड रुपए मिलनेवाले हैं । भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण इस संस्था के बाद ‘इंडियन नैशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ दूसरे क्रम की संस्था है ।

२. ओडिशा में ३०० मंदिरे पुरातत्त्व विभाग के अंतर्गत संरक्षित हैं । १०० वर्ष पूर्व का मंदिर पुरातत्त्व विभाग के अधीन होता है । मैंने ओडिशा के १७ जिलों में स्थित ३०० वर्ष पूर्व के ६ सहस्र ५०० मंदिरों की खोज की है तथा शेष शोधअभियान चलाया गया, तो बडी सहजता से ऐसे और १५ सहस्र मंदिर मिल सकते हैं ।

३. महानदी छत्तीसगढ से ओडिशा आती है । उसके आधे क्षेत्र में अर्थात ४०० कि.मी.के परिसर में नदी के दोनों तटों पर हमने बैलगाडी से घूमकर सर्वेक्षण किया । इस नदी में स्थित पिछले ८० वर्षाें में ६३ मंदिर पानी के नीचे गए हैं । हमने उनमें से न्यूनतम २-३ मंदिरों को उठाकर बाहर निकालकर उनके पुनर्निर्माण की मांग की थी ।

४. भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण पुरानी तथा सक्षम लोगों का सरकारी विभाग है । संपूर्ण विश्व में अनेक काम किए गए हैं; परंतु वर्तमान समय में ताजमहल, कुतुबमिनार आदि से उसे आर्थिक सहायता मिलती रही है; इसलिए उसका उनकी ओर ध्यान है । आज बंगाल में नए मंदिरों की अपेक्षा ध्वस्त (जिनके केवल अवशेष ही बचे हैं), ऐसे मंदिरों की संख्या ही बहुत अर्थात लगभग एक पंचमांश है । जहां काेई भी नहीं जाता है, ऐसे पुराने मंदिरों का रखरखाव सरकारी पैसों से होता है । आज हिन्दुओं के प्राचीन मंदिर देखने के लिए पैसे देने पडते हैं । हमारे पूर्वजों की धरोहर को हमें भावी पीढी को यथास्थिति में सौंपनी चाहिए ।

५. आज अनेक चोरी की गई प्राचीन मूर्तियां वापस मिली हैं, जो जिलाधिकारियों तथा पुलिस प्रशासन के पास पडी हुई हैं; क्योंकि वो मूर्तियां कहां की हैं, इसकी कोई प्रविष्टियां ही नहीं हैं । इसलिए हमने प्रत्येक मंदिर में स्थित मूर्तियों की संपूर्ण जानकारी की प्रविष्टि का काम आरंभ किया है ।