धर्मप्रसार हेतु अधिकाधिक संत बनने आवश्यक ! – बाल सुब्रह्मण्यम्, निदेशक, मंगलतीर्थ इस्टेट एवं ब्रुकफील्ड इस्टेट, चेन्नई, तमिलनाडू

वैश्‍विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव का चौथा दिन (२७ जून) : ग्रामीण क्षेत्रों में धर्म के प्रति जागरुकता लाने हेतु प्रयास

बाल सुब्रह्मण्यम्

विद्याधिराज सभागार – पहले मंदिरों से हिन्दुओं को संस्कार मिलते थे; परंतु अब सरकार की नीतियों के कारण वह बंद हुआ है । ऐसे संस्कार आश्रम में मिल सकते हैं । आश्रम में रहनेवाले संत-महात्माओं के कारण लोगों के धार्मिक प्रश्नों के उत्तर मिलते हैं, साथ ही गांव में संत अथवा महात्माओं के आने से वहां के वातावरण में अच्छा परिवर्तन आता है । अतः समाज में धर्म का प्रसार होने हेतु अधिकाधिक संत बनने चाहिएं, जिससे हिन्दू संस्कार जीवित रहेंगे, ऐसा प्रतिपादन ‘मंगलतीर्थ इस्टेट एवं ब्रुकफील्ड इस्टेट’के निदेशक श्री. बाल सुब्रह्मण्यम् यांनी ‘वैश्विक हिन्दू राष्ट्र महोत्सव’के चौथे दिन किया ।

श्री. बाल सुब्रह्मण्यम् ने कहा, ‘‘वेद, पुराणों, उपनिषदों, गीता, रामायण, महाभारत आदि धर्मग्रंथों में एक शब्द का भी परिवर्तन हुए बिना वे हम तक पहुंचे हैं । यह केवल गुरु-शिष्य परंपरा के कारण संभव हुआ है; इसलिए हमें गुरु-शिष्य परंपरा का सम्मान करना चाहिए । इस अमूल्य ज्ञान को अगली पीढी तक पहुंचाना हमारा दायित्व है । हमारे धर्म का ज्ञान हमारी संस्कृति है । अंग्रेजों का शासन आने से पूर्व भारत में लाखों गुरुकुल थे, जिनके कारण समाज को धर्म की शिक्षा तथा नैतिक मूल्यों की शिक्षा मिलती थी । आज लोगों को धर्म की शिक्षा नहीं मिलती; उसके कारण धर्मांतरण हो रहा है । स्वामी विवेकानंदजी ने कहा था, ‘‘बच्चे यदि विद्यालय नहीं जाते हों, तो विद्यालयों को उन तक पहुंचाना चाहिए’’, इसे ध्यान में लेकर हमने ‘बनवासी लोगों को शिक्षा मिले’, इसके लिए गांवों में ‘एकल विद्यालय’ खोले । उस माध्यम से गांव के बच्चों को प्राकृतिक वातावरण मूल्यों पर आधारित शिक्षा दी जाती है । इस प्रकार संपूर्ण देश में ७० सहस्र एकल विद्यालय चल रहे हैं ।’’