नामजप का अधिकाधिक लाभ लेने के लिए भावपूर्ण ध्वनिमुद्रण सभी को उपलब्ध करवानेवाले परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी !

‘अनेक संप्रदायों के गुरु अथवा संत समाज को बताते हैं, ‘नामस्मरण करें’; परंतु ‘किस प्रकार नामस्मरण करने पर अधिक लाभ होगा’, यह कोई भी नहीं बताता । इसके विपरीत, परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी साधकों को कालानुसार भावपूर्ण नामस्मरण सिखाते हैं ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

प.पू. दादा (आध्यात्मिक स्तर ८३ प्रतिशत) और पू. ताई (मां) (आध्यात्मिक स्तर ७५ प्रतिशत) बचपन से ही हम पांचों भाईयों पर व्यावहारिक शिक्षा के साथ ही सात्त्विकता और साधना के संस्कार किए, इसलिए हम साधनारत हुए ।

सच्चा सुख !

‘सच्चा सुख केवल साधना से मिलता है, भ्रष्ट मार्ग से मिले पैसों से नहीं !’ – (परात्पर गुरु) डॉ. आठवले

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

अधिकांश समाचार पत्र केवल समाचार देने के अतिरिक्त और क्या करते हैं ? इसके विपरीत ‘सनातन प्रभात’ राष्ट्र एवं धर्म कार्य करने हेतु प्रोत्साहित करता है।

सनातन के ग्रंथ : न केवल ज्ञान, अपितु चैतन्य के दिव्य भंडार !

श्रीमद्गवद्गीता, महाभारत आदि धर्मग्रंथ ईश्वरीय वाणी द्वारा साकार हुए हैं; इसलिए उनमें चैतन्य है, उसी प्रकार सनातन के ग्रंथ भी ईश्वरीय संकल्प द्वारा साकार हुए हैं । वेदों के समान महतीवाले ये ग्रंथ स्वयंभू चैतन्य के स्रोत हैं ।

परिजनों की भी साधना में अद्वितीय प्रगति करवानेवाले एकमेवाद्वितीय पू. बाळाजी (दादा) आठवलेजी ! (परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के पिता)

तीर्थस्वरूप दादा और श्रीमती ताई के कारण हमारे घर का वातावरण आध्यात्मिक था । उनके निरंतर सहज वार्तालाप और आचरण के कारण हम पर साधना के संस्कार हुए ।

कलियुग में स्वभावदोष निर्मूलन सभी प्रकार की साधनाओं का मूलाधार !

वर्तमान कलियुग में अधिकांश लोग रज-तम प्रधान होने के कारण उनमें स्वभावदोष और अहं की तीव्रता अधिक है । इसलिए नामजप करना उन्हें कठिन होता है ।

विजयादशमी का संदेश

हिन्दुओं की विजय होने हेतु अपराजिता देवी का भावपूर्ण पूजन करें ! इस वर्ष विजयादशमी को खरा सीमोल्लंघन करने का आरंभ अर्थात अपने क्षेत्र की संदेहास्पद आतंकवादी गतिविधियों की जानकारी पुलिस-प्रशासन को दें !

परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी के ओजस्वी विचार

‘स्वतंत्रता से अभी तक भारत में राज्य करनेवाले किसी भी राजनीतिक दल ने जनता को साधना सिखाकर सात्त्विक नहीं बनाया । इस कारण भारत में प्रतिदिन अनेक प्रकार के सहस्रों अपराध हो रहे हैं ।’

सनातन में ‘मैंने किया’, ऐसा कुछ भी न होना – परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी

‘कुछ आध्यात्मिक संस्थाएं अथवा संप्रदाय कोई अभियान अथवा कार्यक्रम करने पर ‘हमने यह किया, हमने वह किया’, ऐसा बताते हुए दिखाई देते हैं; परंतु सनातन में सभी कार्य महर्षि, संत आदि के अर्थात भगवान के मार्गदर्शन अनुसार किया जाता है ।