साधको, ‘आध्यात्मिक कष्ट के कारण नहीं, अपितु स्वयं में विद्यमान स्वभावदोषों एवं अहं के पहलुओं के कारण चूकें हो रही हैं’, इसे ध्यान में लेकर उनके निर्मूलन के लिए प्रयास कीजिए !

‘अनेक साधकों को तीव्र अथवा मध्यम स्तर का आध्यात्मिक कष्ट है । ‘व्यष्टि अथवा समष्टि साधना में चूकें होने पर कुछ साधकों के मन में ‘मुझे हो रहे आध्यात्मिक कष्ट के कारण यह चूक हुई’, यह विचार आ रहा है, ऐसा ध्यान में आया है ।

सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी ने ‘साधना के आरंभिक काल में विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से कैसे तैयार किया ?’, इस विषय में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली मुकुल गाडगीळजी द्वारा चुने क्षण मोती !

जब साधना आरंभ की, उस समय मुझे परात्पर गुरुदेवजी का प्रत्यक्ष सान्निध्य मिला । ‘उस समय उन्होंने मुझे कैसे तैयार किया ?’, उसके कुछ चुनिंदा प्रसंग यहां बताती हूं ।

पापोंपर प्रायश्चित्त

आत्मज्ञानसे संचित कर्मफल नष्ट होते हैं ।’, इस पूर्वमें लिखे लेखमें गीता और उपनिषदोंने बताये, कर्मफल नष्ट करनेके उपाय स्पष्ट किये हैं । वे श्रुतिग्रंथोंपर आधारित हैं ।

आध्यात्मिक पीडाओंके निवारण हेतु उपयुक्त सनातनका ग्रन्थ !

किसी व्यक्ति की कुदृष्टि उतारने से उसे कौनसे लाभ होते हैं ?

भावविभोर होकर नृत्य करनेवालीं तथा नृत्यकला से दैवी आनंद का अनुभव करनेवालीं देहली की कत्थक नृत्यांगना श्रीमती शोभना नारायण !

‘४०-५० वर्षाें से अधिक संगीत के लिए समर्पित इन कलाकारों की ‘संगीत साधना’ अगली पीढी के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हो’, इस उद्देश्य से महर्षि अध्यात्म विश्वविद्यालय की ओर से इन कलाकारों के साथ संवाद किया गया ।

धार्मिक कृतियोंका ज्ञान और आत्मज्ञानका अंतर

ग्रंथ पढकर अथवा गुरुओंसे सीखकर धार्मिक कृतियोंका ज्ञान हुवा तो भी उनका कार्य शेष रहता है । जपका मंत्र, संख्या आदि जाना तो भी आगे प्रत्यक्ष जप करना और उसका फल पाना शेष रहता है तथा जप पुन: पुन: प्रतिदिन करना होता है ।

साधको, कलियुग में भगवद्गीता समान नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’ का पठन और अध्ययन नियमित करें !

‘बहुत से साधक नियतकालिक ‘सनातन प्रभात’ नहीं पढते, यह ध्यान में आया है । ऐसे साधक ध्यान दें कि ‘उनमें सीखने की वृत्ति का अभाव है’ और उसे बढाने के लिए प्रयत्न करें ।

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी में विद्यमान तेजतत्त्व एवं वायुतत्त्व के कारण उनकी देह, वस्तुओं एवं वाहन में आए विशेष परिवर्तन !

हिन्दू राष्ट्र-स्थापना के ध्येय हेतु अखंड कार्यरत, अलौकिक कार्यक्षमता, सभी का आधारस्तंभ एवं महर्षिजी द्वारा ‘श्री महालक्ष्मी का अवतार’ कहकर गौरवान्वित श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी का मार्गशीर्ष शुक्ल १४ को ५२ वां जन्मदिवस है ।

सभी को सहजता से प्रतीत होनेवाली श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी की अलौकिकता !

सीतामाता ने जहां अग्निपरीक्षा दी थी, उस स्थान पर कार्यरत वयोवृद्ध व्यवस्थापक ने बताया, ‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी सीतामाता के समान दिख रही हैं !’

श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के वाहन के संदर्भ में होनेवाली विभिन्न आध्यात्मिक अनुभूतियां !

जैसे-जैसे जीव की साधना बढती है, वैसे-वैसे देह में विद्यमान पंचमहाभूतों में जागृति आती है । उपासनामार्ग के अनुसार अथवा साधना के स्तर के अनुसार संबंधित तत्त्व का स्तर बढता है । उस समय देह पर उसके दृश्य परिणाम दिखाई देते हैं ।