१. श्रीलंका की अध्ययन यात्रा करते समय वहां के बडे सरकारी अधिकारी द्वारा श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को ‘दैवी स्त्री’ कहकर सभी प्रकार से उनकी सहायता करना
१ अ. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को देखकर श्रीलंका के बडे प्रशासनिक अधिकारी ने उनका हालचाल पूछा
‘जनवरी २०१८ में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी जब श्रीलंका भ्रमण पर थीं, उस समय वे श्रीलंका के प्रसिद्ध शिवमंदिर ‘नगुलेश्वरम्’ में दर्शन करने गई थीं । यह प्राचीन शिवमंदिर ५ सहस्र वर्ष प्राचीन है । प्रत्यक्ष प्रभु श्रीराम ने इस मंदिर में पूजा की है । इस मंदिर में जाने पर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने मंदिर के पुजारी से भेंटवार्ता की । इस अवसर पर श्रीलंका के कुछ बडे प्रशासनिक अधिकारी वहां उपस्थित थे । उनमें से एक अधिकारी ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी से कहा, ‘‘आप कौन हैं ?’’ उस पर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने बताया, ‘‘हम भारत से आए हैं । हम श्रीराम के सेवक हैं तथा श्रीराम से संबंधित स्थानों का अवलोकन करने आए हैं । भारत में हमारा एक आश्रम है, जहां के हम सेवक हैं ।’’
१ आ. अधिकारी ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को ‘दैवी स्त्री’ कहकर उनका आशीर्वाद लेने के लिए उन्हें अपने कार्यालय में बुलाया
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी से बात करते हुए वे अधिकारी कहने लगे, ‘‘मैं यहां का प्रशासनिक अधिकारी हूं । मैं बौद्ध हूं; परंतु मुझे हिन्दू धर्म के प्रति आत्मीयता लगती है । आपको देखकर मुझे लगा कि ‘आप कोई दैवी स्त्री हैं’ और मैं आपकी ओर अपनेआप आकर्षित हुआ ।’’ उस समय हमने उन्हें बताया कि ‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ‘संत’ हैं ।’ उस पर वे अधिकारी कहने लगे, ‘माताजी, आप कल हमारे कार्यालय आइए, उससे हमें आपका आशीर्वाद मिलेगा ।’
१ इ. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी से साधना की जानकारी लेकर अधिकारी ने उनका यथोचित सम्मान किया
अधिकारी द्वारा बताए अनुसार दूसरे दिन श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी जब उनसे मिलने उनके कार्यालय गईं, तो उस अधिकारी ने उनके साथ २ घंटे तक ‘अध्यात्म एवं साधना’ के विषय पर बातचीत की । उस समय वहां कुछ अन्य अधिकारी भी उपस्थित थे । अधिकारी कहने लगे, ‘‘माताजी, आपको कभी भी किसी प्रकार की सहायता की आवश्यकता पडी, तो आप मुझसे संपर्क कीजिए । श्रीलंका में आप जिस स्थान पर जानेवाली हैं, वहां हम यथासंभव आपकी सहायता करेंगे ।’’ हम जब वहां से निकले, उस समय अधिकारी ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को एक ‘स्मरण पदक’ दिया ।
२. सीतामाता ने जहां अग्निपरीक्षा दी थी, उस स्थान पर कार्यरत वयोवृद्ध व्यवस्थापक ने बताया, ‘श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी सीतामाता के समान दिख रही हैं !’
२ अ. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को देखकर वृद्ध व्यवस्थापक ने उन्हें ‘दैवी स्त्री’ कहा तथा उनसे प्रवेश टिकट के पैसे नहीं लिए
‘श्रीलंका में एक स्थान है, ‘सीतामाता द्वारा अग्निपरीक्षा दिया हुआ स्थान’ । यह स्थान जिस गांव में है, उस गांव का नाम है ‘दिविरुंपोला’ ! श्रीलंका के मध्य प्रांत में ऊंचे पर्वतों के स्थान पर स्थित ‘नुवारा एलिया’ शहर से यह गांव १८ कि.मी. की दूरी पर है । श्रीलंका के अनेक हिन्दुओं को भी इस स्थान की जानकारी नहीं है । श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के साथ यह स्थान ढूंढते-ढूंढते गुरुकृपा से हम उस स्थान पर पहुंचे । बाहर हमें बौद्ध भिक्षुक तथा उस मंदिर के वयोवृद्ध बौद्ध व्यवस्थापक मिले । हमने जब उन्हें सीतामाता द्वारा अग्निपरीक्षा दिए हुए स्थान के विषय में पूछा, तब उस बौद्ध भिक्षुक ने व्यवस्थापक दादाजी से कहा, ‘‘आप उन्हें वह स्थान दिखाइए ।’’
दादाजी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की ओर देखकर कहने लगे, ‘‘आप कोई दैवी स्त्री हैं’, ऐसा मुझे लगता है । मैं यहां विगत ५० वर्ष से काम कर रहा हूं । आज तक हमारे पास आपके जैसे कोई नहीं आए थे । मैं आपसे प्रवेश टिकट के पैसे नहीं लूंगा, आपके साथ जो लोग आए हैं, उन्हीं के पैसे लूंगा ।’’ तब हम आश्चर्यचकित रह गए ।
२ आ. वृद्ध व्यवस्थापक ने मंदिर के प्रवेशद्वार का ताला खोलने के लिए श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के हाथ में चाबी दे दी
वे दादाजी हमें सीतामाता द्वारा अग्निपरीक्षा दिए अश्वत्थ वृक्ष के पास लेकर गए । उस वृक्ष के पास एक मंदिर है । उसका प्रवेश द्वार बंद था । दादाजी कहने लगे, ‘‘माताजी, आप मुझे सीतामाता की भांति दिखाई देती हैं । आज तक मैंने किसी को भी इस मंदिर की चाबी नहीं दी है । आज मैं इस सीतामाता मंदिर की चाबी आपको देता हूं । अब आप ही ताला खोलिए ।’’ दादाजी के ऐसा कहते ही हम सभी की भावजागृति हुई । दादाजी ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी को वह चाबी सौंपी । वह चाबी इतनी बडी है कि उसे दोनों हाथों में पकडना पडता है । चाबी हाथ में लेते ही श्रीचित्शक्ति गाडगीळजी की आंखों में भावाश्रु आ गए ।
३. इंडोनेशिया में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के तेजस्वी मुखमंडल की ओर आकर्षित होकर स्थानीय लोगों ने उनके साथ छायाचित्र खिंचवाया
हम ९ मार्च २०१८ को श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के साथ इंडोनेशिया के जकार्ता के राष्ट्रीय स्मारक ‘मोनास’ गए । वहां प्रतिदिन सहस्रों की संख्या में लोग आते हैं । हम जब टिकट लेने के लिए प्रवेशद्वार के पास खडे थे, तब कुछ लडकियां श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के पास आकर कहने लगीं, ‘हमें आपके साथ एक छायाचित्र खिंचवाना है ।’ सद्गुरु गाडगीळजी ने उसके लिए सहमति दी । कुछ समय पश्चात एक और समूह वहां आया । उस दिन के उपरांत हम इंडोनेशिया में जहां-जहां गए, वहां अनेक लोग आकर श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के साथ खडे रहकर अपना छायाचित्र खिंचवाते थे ।
‘योग्यकर्ता’ शहर में सुल्तान के राजमहल में जाने पर वहां की महिला गाइड ने श्रीचित्शक्ति गाडगीळजी को देखकर कहा, ‘आप रानी जैसी दिखाई देती हैं ।’ वहां विद्यालयीन छात्रों का एक समूह पर्यटन के लिए आया था, तब उसमें आए छात्रों ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के साथ अपने छायाचित्र खिंचवाए, साथ ही उनकी बही में श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के हस्ताक्षर लिए ।
४. श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी की ओर देखकर मंदिर के एक न्यासी को ‘उनके रूप में साक्षात कोल्हापुर की श्री महालक्ष्मी माता ही इस मंदिर में आई हैं’, ऐसा लगा तथा उन्होंने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) गाडगीळजी के करकमलों से मंदिर के राजगोपुर के लिए अर्पण दिया
‘२३.७.२०२२ को श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी ने अरेयूरु (कर्नाटक) के श्री वैद्यनाथेश्वर मंदिर का अवलोकन किया । उस समय देवता का पूजन होने पर मंदिर के एक न्यासी हमें कहने लगे, ‘‘आज मेरी पत्नी और मैंने मंदिर के नए राजगोपुर के निर्माण के लिए (मंदिर के पूर्व में स्थित मुख्य प्रवेशद्वार के निर्माण के लिए) एक कलश अर्पण करने का निश्चय किया था । हम मंदिर आए और इन्हें (श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी को) देखा, उस समय मुझे लगा, ‘साक्षात कोल्हापुर की श्री महालक्ष्मीदेवी ही आज हमारे मंदिर में पधारी हैं; इसलिए मंदिर के राजगोपुर के लिए दिया जा रहा अर्पण इन्हीं के करकमलों से देना पुण्यदायक सिद्ध होगा ।’’
उस न्यासी ने श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी के करकमलों से मंदिर को अर्पण दिया ।’
श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी इस संतत्व की कोई विविधता न रखकर सामान्य साधकों की भांति व्यवहार करती हैं । मान्यवरों को अपना परिचय देते हुए वे कहती हैं, ‘मैं सनातन के आश्रम में कार्यरत सेविका हूं ।’ भले ही ऐसा हो; परंतु उनके मुख पर विद्यमान तेज अध्यात्म में उनके अधिकार को दर्शाता है । सूर्य के उदित होने पर फूलों को बताना नहीं पडता कि ‘अब तुम खिल जाओ ।’ उसी प्रकार खरे संतों को बताना नहीं पडता कि ‘मैं संत हूं ।’ उनमें विद्यमान संतत्व की ओर समाज स्वयं ही आकर्षित होता है, इसकी हम सर्वत्र अनुभूति लेते हैं । स्थान के अभाववश विवरण के लिए यहां कुछ ही प्रसंग दिए हैं ।
ऐसी तेजस्वी श्रीचित्शक्ति (श्रीमती) अंजली गाडगीळजी एवं उन्हें तैयार करनेवाले सच्चिदानंद परब्रह्म डॉ. आठवलेजी के चरणों में कोटि-कोटि कृतज्ञता !’
– श्री. विनायक शानभाग (अध्यात्मिक स्तर ६७ प्रतिशत), सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा. (९.११.२०२२)